भेदभावपूर्ण डीयू कट-आॅफ के खिलाफ केवाईएस का प्रदर्शन

नई दिल्ली। क्रांतिकारी युवा संगठन(केवाईएस) कार्यकर्ताओं और दिल्ली के सरकारी स्कूल के छात्रों ने डीयू प्रशासन के ऊँचे एडमिशन कट-आॅफ निकालने के कदम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। कार्यकर्ताओं ने विश्वविद्यालय परिसर में कट-आॅफ का एक सांकेतिक पुतला जलाकर उसके द्वारा वंचित छात्रों से किये जा रहे भेदभाव की भर्त्सना कीे इस प्रदर्शन में सरकारी स्कूल के छात्र भी मौजूद थे, जिनको ऊँचे कट-आॅफ के कारण उच्च शिक्षा का स्वप्न छोड़ना पड़ेगो ज्ञात हो कि यह कट-आॅफ शैक्षणिक रंगभेद ही कहा जा सकता है क्योंकि कट-आॅफ के माध्यम से बहुसंख्यक छात्र, जो वंचित परिवारों से आते हैं उन्हें उच्च शिक्षा से बाहर किया जाता रहा है।
ज्ञात हो कि हर वर्ष दिल्ली के सरकारी स्कूलों के छात्रों के बढ़ते औसतन अंक और पास प्रतिशत की चर्चा होती है। परन्तु, इसके बावजूद सच्चाई है कि सरकारी स्कूलों के बहुसंख्यक छात्रों को डीयू के रेगुलर कॉलेज में एडमिशन नहीं मिलता है। केवाईएस के हरीश गौतम का कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने के इच्छुक सरकारी स्कूल के छात्रों को एडमिशन लेने के लिए प्राइवेट स्कूल के छात्रों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। इस प्रतिस्पर्धा में वो ऊँचे कट-आॅफ होने के कारण हार जाते हैं और ज्यादातर छात्रों के लिए उच्च शिक्षा का यहीं अंत हो जाता है। ज्ञात हो कि सरकारी स्कूल के यह छात्र ज्यादातर सामाजिक और आर्थिक तौर पर वंचित वर्ग से आते हैं और स्लम और झुग्गी बस्ती में रहते हैं। इन छात्रों को को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी उच्च शिक्षा की ज्यादा जरुरत है। इसके विपरीत हर साल उन्हें कट-आॅफ के नाम पर बाहर कर दिया जाता है। साथ ही, इस व्यवस्थागत भेदभाव पर मीडिया में बहस भी नहीं होता, कि किस प्रकार वंचित छात्रों को वंचित रखने में किस तरह कट-आॅफ की नीति काम आती है।
ज्ञात हो कि इस साल 2.7 लाख से अधिक छात्रों ने स्नातक के विभिन्न कोर्सों के लिए आवेदन किया है, परन्तु विश्वविद्यालय में बस 56000 सीटें है जिसका मतलब है कि करीब 2.2 लाख छात्रों को विश्विद्यालय और उच्च शिक्षा से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा। ये वही सरकारी स्कूल के छात्र हैं जिन्होंने खस्ताहाल सरकारी स्कूल व्यवस्था में पढ़ा है। यह वो छात्र होते हैं जिन्हें कट आॅफ के नाम पर विश्वविद्यालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। यह एक तथ्य है कि दिल्ली विश्विद्यालय ने पिछले 30 वर्षो में मात्र दो या तीन कॉलेज ही खोले है जिसकी वजह से सरकारी स्कूलों से पढ़कर आये गरीब छात्रों को उच्च शिक्षा में दाखिला नहीं मिल पाता है। कट-आॅफ के जरिये इस सीट की कमी को सरकार द्वारा छिपा लिया जाता है। केवाईएस का कहना है कि यही नहीं, बजाये की नए कॉलेज खोलकर इस सीट की कमी को पूरा किया जाए सरकार विश्विद्यालय से सम्बन्ध कॉलेजों को स्वायत्ता देने के नाम पर निजीकरण करने की कोशिश में जुटी है जिसके कारण वंचित वर्ग से आये छात्रों से उनके जीवन को बेहतर बनाने का एकमात्र रास्ता भी छीन लिया जायेगा। एक बार यदि कॉलेज को स्वायत्ता मिल जाये तो वे ट्रस्ट जो इन कॉलेजों को चला रहे है उन्हें छात्रों से अत्यधिक फीस लेना पड़ेगा, क्योंकि तब विश्विद्यालय अनुदान आयोग द्वारा दी जा रही राशि इन कॉलेजों से वापस ले ली जाएगी जो कि पूरे खर्चे का 95% है।

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