लील तो नहीं रहा विटामिन डी की कमी?

एक शोध के अनुसार पेशी-कंकाल दर्द से परेशान 93 फीसदी मरीज़ विटामिन डी की कमी से पीड़ित हैं, जबकि भारत में 80 फीसदी गर्भवती महिलाएं विटामिन डी की कमी का शिकार हैं, जो गर्भावस्था व प्रसव सम्बन्धी जटिलताओं का कारण बन सकता है। शायद इन आंकड़ों से परिचित होकर भी आप अपरिचित वाला रवैया अपनाएं। लेकिन यहां आप सरासर गलत हैं।

दीप्ति अंगरीश

समाज और देश स्वस्थ हो, इसके लिए परम आवश्यक है कि देश का हर व्यक्ति स्वस्थ हो। हर बच्चा सेहतमंद रहे। लेकिन, जिस प्रकार से हाल के विटामिन डी की कमी की बात देखने और सुनने में आ रही है, वह बेहद चिंताजनक है। हाल ही में हुए एक शोध के अनुसार पेशी-कंकाल दर्द से परेशान 93 फीसदी मरीज़ विटामिन डी की कमी से पीड़ित हैं, जबकि भारत में 80 फीसदी गर्भवती महिलाएं विटामिन डी की कमी का शिकार हैं, जो गर्भावस्था व प्रसव सम्बन्धी जटिलताओं का कारण बन सकता है। शायद इन आंकड़ों से परिचित होकर भी आप अपरिचित वाला रवैया अपनाएं। लेकिन यहां आप सरासर गलत हैं। आपको जागना होगा। अन्यथा दुश्मनों से हमारी पराजय निश्चित है। वो भी बिना यु़़द्ध के। सोचिए जब भविष्य ही पंगु पैदा होगा, तो कौन लड़ेगा ? कौन सीमा पार मुस्तैद रहेगा, कौन जन-मानस का सुरक्षा कवच बनेगा, कौन देश के लिए खेलेगा, कौन भारत का नाम रोशन करेगा….ेहमें सचेत होना होगा ?
यह गंभीर समस्या है। आज सर्तक होंगे, तभी भविष्य की जड़ें मजबूत होंगी। यदि समय रहते हमारी आवाम इस ओर मुस्तैद हो गई, तो आंकड़ों को र्निकुंश हो जाएगी। यहां बरती जरा-सी ढील अपंगता की दर देश में बढ़ा देगी। अन्यथा भारत में नवजात शिशुओं समेत विटामिन डी की कमी से पीड़ित एक बड़ी आबादी रिकेट्स, आॅस्टियोपोरोसिस, हृदय रोगों, मधुमेह, कैंसर और टीबी जैसे संक्रमण के जोखिम में पड़ जाएगी। शुरुआत गर्भावस्था से करनी होगी। भविष्य तो मां के पेट में सांसे ले रहा है। इस ओर हमें नहीं डाॅक्टरों, सरकार को आगे आना होगा। शोधकर्ताओं और डाॅक्टरों ने साबित किया है कि विटामिन डी की कमी को सप्लीमेंटस की सही मात्रा से रोका जा सकता हैै, जो गर्भावस्था एवं प्रसव सम्बन्धी जटिलताओं को कम करने में कारगर हैै। साथ ही यह हड्डियों के स्वास्थ्य में सुधार लाने और आॅस्टियोपोरोसिस से बचने में भी मददगार हो सकता है। यही नहीं इससे गर्भावस्था के दौरान मधुमेह, प्रीक्लैम्पिज़या और अस्थमा की सम्भावना कम हो जाती है।
डाॅ. होलिस पिछले 35 सालों से विटामिन डी पर अनुसंधान कर रहे हैं और इस विषय पर उनके द्वारा लिखे गए 200 से अधिक लेखों का प्रकाशन किया जा चुका है। नेशनल इन्सटीट्यूट आॅफ हेल्थ डाॅ. होलिस को अनुदान देता है जिसकी मदद से उनकी टीम गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए विटामिन डी की आदर्श खुराक निर्धारित करती है। टीम ने पाया है कि गर्भावस्था एवं प्रसव सम्बन्धी जटिलताओं को दूर करने के लिए गर्भावस्था के दौरान रोज़ाना 4000 आईयू सप्लीमेंटेशन की ज़रूरत होती है। इसके अलावा उन्होंने यह भी पता लगाया कि स्तनपान के दौरान रोज़ाना 6400 आईयू की खुराक नवजात शिशुओं में विटामिन डी की कमी को दूर कर सकती है।
आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि विटामिन डी सिर्फ हड्डियों के लिए ही जरूरी है, पर ऐसा नहीं है। हड्डियों की मजबूती के साथ ही इम्यून सिस्टम को बूस्ट करने के लिए भी विटामिन डी की जरूरत होती है। विटामिन डी का सबसे जरूरी काम यह है कि ये दूसरे विटामिन को भी सक्रिय करने का काम करता है। इसके अलावा लवणों को भी एक्टवि करता है। विटामिन डी की कमी होने पर हड्डियां मुलायम और कमजोर हो जाती हैं, जिससे इनके टूटने की आशंका बढ़ जाती है। विटामिन डी की कमी से एनर्जी लेवल पर बुरा असर पड़ता है। विषय के महत्व पर रोशनी डालते हुए पद्मश्री विजेता एवं डाॅ बी. सी. राॅय नेशनल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर डाॅ. जाॅन एबनेज़र जो बैंगलोर में अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के आर्थोपेडिशियन, स्पाइन एवं गैरिएट्रिक सर्जन हैं, उन्होंने कहा, ‘‘विटामिन डी की कमी आजकल आम हो गई है, भारतीय आबादी में विटामिन डी का स्तर कम है। ऐसे में लोगों को इस विषय पर जागरुक बनाना ज़रूरी है।’’’ विटामिन डी का स्तर 25;व्भ्द्धक् ढ 20 दहध्उस् होने पर कम माना जाता है, 20दृ29 दहध्उस् स्तर अपर्याप्त तथा ≥30 दहध्उस् स्तर पर्याप्त माना जाता है। विटामिन डी की कमी से जुड़े विभिन्न अध्ययन बताते हें कि 65-70 फीसदी भारतीय विटामिन डी की कमी से पीड़ित हैं। 15 फीसदी लोगों में विटामिन डी की मात्रा अपर्याप्त है। अध्ययनों के परिणाम हमें सतर्क करने के लिए पर्याप्त हैं कि अगर स्थिति का प्रबन्धन समय रहते नहीं किया जाता तो भारतीय आबादी में रिकेट्स, आॅस्टियोपोरोसिस, हृदय रोगों, मधुमेह, कैंसर और टीबी जैसे संक्रमणों की सम्भावना कई गुना बढ़ जाएगी।
विटामिन डी की कमी शहरी एवं ग्रामीण भारत के सभी सामाजिक-आर्थिक वर्गों और सभी क्षेत्रों में आम है। अध्ययनों में पाया गया है कि बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों में विटामिन डी की कमी की सम्भावना अधिक होती है। अगर आप खुद में विटामिन डी की कमी का कोई लक्षण महसूस होता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप सीधे अपने नजदीकी ड्रग स्टोर पर जाएं और खुद से विटामिन डी की गोलियां लेना शुरू कर दें। एक्सपर्ट्स का कहना है कि बिना डॉक्टर से कंसल्ट किए विटामिन डी की ओवरडोज लेना सीधे तौर आपकी हेल्थ के लिए नुकसानदायक हो सकता है। अगर आपको विटामिन डी की कमी महसूस भी होती है, तो आपको अपने डॉक्टर की सलाह से विटामिन डी सप्लिमेंट्स, कैप्स्यूल्स और टैबलेट्स लेने चाहिए। डॉक्टर मेहता बताते हैं, श्अगर आप लंबे समय तक रोजाना विटामिन डी की हाई डोज करीब 4000 इंटरनैशनल यूनिट रोजाना ले रहे हैं, तो इससे आपके ब्लड में कैल्शियम की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ सकती है। ब्लड में ज्यादा कैल्शियम न सिर्फ आपकी आर्टरीज को ब्लॉक कर सकता है, बल्कि दूसरी परेशानियां भी हो सकती हैं। इसके अलावा, विटामिन डी की ओवरडोज से आपके मुंह में खुश्की, थकान, कमजोरी और सिरदर्द जैसी परेशानियां हो सकती हैं।

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