नई दिल्ली। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि कृषि से आय बढ़ने का संकेत नहीं मिल रहा है। उन्होंने कृषि कर्ज माफी को प्रतिगामी कदम बताया और केंद्र सरकार की फसल बीमा योजना में खामी का उल्लेख किया। नीति आयोग की शासी परिषद की चौथी बैठक को संबोधित करते हुए मध्याह्न भोजन योजना के तहत खाना बनाने की परंपरा की जगह लाभ का प्रत्यक्ष अंतरण करने की मांग की। कुमार ने कहा कि किसानों को उनके उत्पादों का लाभकारी मूल्य नहीं मिल रहा है और कृषि से होने वाली आय में सुधार नहीं होने का संकेत है और यह सरकार की बड़ी चुनौती है।
Ñउनका बयान ऐसे वक्त आया है जब विभिन्न हलकों से किसानों की परेशानी की बात सामने आ रही है और विपक्ष ने केंद्र में भाजपा नीत राजग सरकार को लगातार निशाना बनाया है। कुमार ने बिहार को विशेष श्रेणी का दर्जा देने की भी मुखर पैरवी करते हुए कहा कि विकास के विविध मापदंडों पर राज्य राष्ट्रीय औसत से बहुत नीचे है। उन्होंने कहा कि विशेष दर्जा से राज्य का संसाधन बढ़ेगा, बाहरी संसाधनों तक पहुंच बढ़ेगी और निजी निवेश के लिए प्रेरक माहौल बनेगा। कुमार ने कृषि कर्ज माफी के प्रति आगाह किया और कहा कि अनुभव बताता है कि दीर्घावधि के लिहाज से यह प्रतिगामी कदम है। उन्होंने कहा कि इसका फायदा उन किसानों तक ही सीमित रहता है जिन्होंने कर्ज ले रखा है। कर्ज नहीं लेने वाले या गैर रैयत किसानों को फायदा नहीं मिलता और इन किसानों की संख्या बहुत ज्यादा है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि किसानों को लागत रियायत के जरिए मदद देनी चाहिए। ऐसा करके हम किसानों की कुल लागत घटा सकते हैं और फायदे बढ़ा सकते हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर अपना दृष्टिकोण साझा करते हुए कुमार ने कहा कि बहुत सारे किसानों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है।
ुइसके साथ ही नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार में आधारभूत संरचना की कमी को देखते हुए भारत सरकार द्वारा 12वीं पंचवर्षीय योजना में विशेष योजना (बी0आर0जी0एफ0) के तहत 12000 करोड़ की स्वीकृति दी गई थी। इसके विरूद्ध 9597.92 करोड़ रू0 की नयी परियोजनाओं की स्वीकृति नीति आयोग द्वारा दी गयी थी। अभी भी 902.08 करोड़ की राशि के विरूद्ध परियोजनाओं की स्वीकृति हेतु नीति आयोग के पास प्रस्ताव लंबित है। नीति आयोग से अनुरोध है कि पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि के माध्यम से विशेष योजना के तहत लंबित योजनाओं को पूरा करने के लिए अवशेष राशि 1651.29 करोड़ रू0 शीघ्र उपलब्ध कराने की कृपा की जाय, ताकि योजनाओं का काम ससमय पूर्ण किया जा सके। उन्होंने कहा कि नेपाल एवं अन्य राज्यों से उद्भूत होने वाली नदियों से प्रत्येक वर्ष आनेवाली बाढ़ के कारण भौतिक एवं सामाजिक आधारभूत संरचना में हुए नुकसान की भरपाई हेतु बिहार को अतिरिक्त वित्तीय भार उठाना पड़ता है। ऐसे कारण जो बिहार के नियंत्रण में नहीं हैं, की वजह से राज्य को प्रत्येक वर्ष बाढ़ का दंश झेलना पड़ता है और बाढ़-राहत, पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण कार्यों पर काफी राशि व्यय होती है। गंगा बेसिन के उपरी राज्यों में निर्मित बांधों, बराजों एवं अन्य संरचनाओं के चलते नदी के प्रवाह में कमी आई है। इसके अतिरिक्त पहाड़ी क्षेत्र में वनों के क्षरण एवं खनन गतिविधियों ने नदी के स्वाभाविक प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है जिसके कारण मैदानी क्षेत्रों में गाद अधिक मात्रा में पहुंच रही है। इससे बिहार में बाढ़ की तीव्रता एवं व्यापकता में वृद्धि हुई है। सोन नदी के मामले में भी पड़ोसी राज्यों – मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश के द्वारा कभी भी जल बँटवारे से संबंधित बाणसागर समझौते (1973) का अनुपालन नहीं किया गया है पर जब भी सोन नदी बेसिन में अधिक वर्षा होती है तो बाणसागर एवं रिहन्द बांध से अचानक अत्यधिक पानी छोड़ दिया जाता है जिसके कारण बिहार में बाढ़ आती है और नुकसान होता है। अत: राज्यों की हिस्सेदारी से संबंधित मानदंडों के निर्धारण के दौरान इन बाह्य कारणों का समावेशन किया जाना चाहिए।