लोक आस्था और सनातन संस्कृति का अनूठा पर्व है छठ: सरफराज सिद्दीकी

नई दिल्ली। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के डेलिगेट सरफराज अहमद सिद्दीकी कहते हैं कि अक्सर जीवन में लोग आगे बढ़ते हुए को ही प्रणाम करते हैं। जो आगे बढ़े सो मीर। हमारी सनातन संस्कृति में केवल आदिदेव सूर्य ही हैं, जिन्हें अस्ताचलगामी होने पर भी पूरे श्रद्धाभाव से लोक स्मरण करते हैं। उनका गुणगान करते हैं। उनकी महत्ता को याद करते हैं। असल में, छठ पर्व सूर्योपासना का अमोघ अनुष्ठान है। कहते हैं इससे समस्त रोग-शोक, संकट और शत्रु नष्ट होते हैं और संतान का कल्याण होता है। लोक परंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। लोक मातृ का षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। चार दिवसीय पर्व के बारे में मान्यता है कि पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है।

सरफराज अहमद सिद्दीकी कहते हैं कि इस पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। आजकल कुछ नई रीतियां भी आरंभ हो गई हैं, जैसे घाटों पर पंडाल और सूर्यदेवता की मूर्ति की स्थापना करना। उसपर भी काफी खर्च होता है और सुबह के अर्घ्यके उपरांत आयोजनकर्ता माईक पर चिल्लाकर प्रसाद मांगते हैं। पटाखे भी जलाए जाते हैं। कहीं-कहीं पर तो ऑर्केस्ट्राका भी आयोजन होता हैय परंतु साथ ही साथ दूध, फल, उदबत्ती भी बांटी जाती है। पूजा की तैयारी के लिए लोग मिलकर पूरे रास्ते की सफाई करते हैं।

सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल देने वाले इस पर्व को पुरुष और महिला समान रूप से मनाते हैं, परंतु आम तौर पर व्रत करने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक होती है। कुछ साल पहले तक मुख्य रूप से यह पर्व बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता था, परंतु अब यह पर्व पूरे देश में मनाया जा रहा है। वैसे आज आधुनिकता की दौड़ में छठ पर्व को लेकर कई बदलाव भी देखे जा रहे है।. नदी, तालाबों तथा जलाशयों में जुटने वाली भारी भीड़ से बचने के लिए लोग अपने घर के आसपास ही गड्ढा बनाकर उसमें जल डालकर अर्घ्य देने लायक बना ले रहे हैं। छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत जो एक कठिन तपस्या की तरह है।

असल में, छठ पर्व को अगर हम धार्मिक दृष्टि से हटकर व्यवहारिक दृष्टि से देखें तो छठ पर्व हमें जीवन का एक बड़ा रहस्य समझाता है। छठ पर्व के नियम पर गौर करें तो पाएंगे कि छठ पर्व में षष्ठी तिथि एवं सप्तमी तिथि में सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। षष्ठी तिथि के दिन शाम के समय डूबते सूर्य की पूजा करके उन्हें फल एवं पकवानों का अर्घ्य दिया जाता है। जबकि सप्तमी तिथि को उदय कालीन सूर्य की पूजा होती है। दोनों तिथियों में छठ पूजा होने के बावजूद षष्ठी तिथि को प्रमुखता प्राप्त है क्योंकि इस दिन डूबते सूर्य की पूजा होती है। वेद पुराणों में संध्या कालीन छठ पूर्व को संभवतः इसलिए प्रमुखता दी गई है, ताकि संसार को यह ज्ञात हो सके कि जब तक हम डूबते सूर्य अर्थात बुजुर्गों को आदर सम्मान नहीं देंगे तब तक उगता सूर्य अर्थात नई पीढ़ी उन्नत और खुशहाल नहीं होगी। संस्कारों का बीज बुजुर्गों से ही प्राप्त होता है। बुजुर्ग जीवन के अनुभव रूपी ज्ञान के कारण वेद पुराणों के समान आदर के पात्र होते हैं। इनका निरादर करने की बजाय इनकी सेवा करें और उनसे जीवन का अनुभव रूपी ज्ञान प्राप्त करें। यही छठ पूजा के संध्या कालीन सूर्य पूजा का तात्पर्य है।

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