लो बैक पैन का आधुनिक इलाज


नई दिल्ली / टीम डिजिटल। नई दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल के न्यूरो एंड स्पाइन डिपाटमेंट के डायरेक्टर डा.सतनाम सिंह छाबड़ा का कहना है कि आज महानगरों की अरामपसंद जीवनशैली, गलत रहन-सहन, शारीरिक श्रम की कमी, बैठने व सोने के बेतुके ढंग, भीड़ भरी सडकों पर अधिक समय तक गाड़ी चलाने आदि के कारण युवाओं में भी रीढ़ ‘स्पाइन’ संबंधी बीमारी महामारी की तरह फैल रही है. आज 15 से 30 वर्ष के अधिकांश युवा रीढ़ के विकारों से ग्रस्त हैं. रीढ़ की हड्डी में खराबी के कारण या तो पीठ या कमर में असह्य दर्द होता है. उसमें स्पाइन के मरीजों की तादाद में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है. गांव की अपेक्षा शहरों में स्पाइन के रोगियों की संख्या अधिक है. स्पाइन जिसका खुद का वजन काफी कम होता है, पूरे स्थल के बीच डिस्क बहुत ही व्यवस्थित ढंग से फिट रहती है और डिस्क बर्टिबा पर अंकुश कायम रखती है. अगर किसी कारण से बर्टिब्रा के आगे की दिशा यानी पेटी की तरफ या पीछे की दिशा ‘पीठ की तरफ’ खिसक सकता है. इसमें जब डिस्क पीठ की तरफ  खिसकती है तो वह मरीज के लिए बहुत घातक होता है. डा.सतनाम सिंह छाबड़ा का कहना है कि लो बैंक पेन की अधिकांश शिकायत एल-4 व एल-5 या एल-5 व एस-1 के लेवल पर होती है. स्पाइन की शल्य चिकित्सा में मैग्नेटिक रेजोन्स इमेजिंग ‘एम.आर.आई.’ की महत्वपूर्ण भूमिका है, ऑपरेशन से पूर्व स्लिप्ड डिस्क की स्थिति का पता लगाना आवश्यक होता है. साथ ही यह भी जानना जरूरी होता है कि स्लिप्ड डिस्क किन नसों पर दबाव डाल रही है, एम.आर.आई ही एक ऐसा यंत्र है जो स्पाइन संबंधी गड़बड़ी की सही और कई गुण संबंधित तस्वीर दिखा सकता है. आप इसके इलाज के लिए जो आधुनिक प्रबंध मौजूद है. इनमें इंडोस्कोप प्रमुख है. इसमें इंडोस्कोप की सहायता से ऑपरेशन करते हैं. यहां चिकित्सक की आंखें तो मानीटर पर होती हैं, लेकिन हाथ अपना काम कर रहे होते हैं. आज कई तरह के इंडोस्कोप उपलब्ध हैं और विभिन्न-विभिन्न ऑपरेशनों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं.
डा.सतनाम सिंह छाबड़ा के अनुसार स्लिप्ड डिस्क के मरीज जो कमर व पैर की दर्द से पीडित हैं, उसमें तो इंडोस्कोप कारगर हैं ही, साथ ही कई अन्य बीमारियां जैसे टी.बी. ट्यूमर, बीच संक्रमण इत्यादि में भी इंडोस्कोप का इस्तेमाल कर के ‘जिसमें केवल एक छिद्र किया जाता है’ बड़े ऑपरेशन से रोगियों को बचाया जा सकता है. जब कि पहले पूरा पेट या सीना खोलकर ही ऐसे ऑपरेशन संभव हुआ करते थे. इसका फायदा यह होता है कि एक 4 एम.एम. के टेलीस्कोप को हम अंदर डालकर टेलीविजन पर अंदर कर दृश्य 20 गुना बड़ा करके देख सकते हैं जिसमें कि गलती होने की संभावना नहीं होती है. यह पूरी सर्जरी मरीज खुद भी अपनी आंखों से देख सकता .इसमें खून कम से कम बहता है और पहले की तरह टांका-पट्टी करने की जरूरी नहीं और परिणाम काफी बेहतर आता है. केवल लोकल एनेथेस्यिा देकर भी यह ऑपरेशन किया जा सकता है और मरीज अगले दिन ही वापस लौट जाता है. सर्जरी का कोई निशान भी नहीं आता है.

 सर गंगाराम अस्पताल के न्यूरो एंड स्पाइन
डिपाटमेंट, डायरेक्टर डा.सतनाम सिंह छाबड़ा 

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