नई दिल्ली। जब भी ज्ञान परंपरा की बात आती है, मिथिला का नाम सबको सहज ही स्मरण हो आता है। षड्दर्शन और मिथिला मानो एक दूसरे के पर्याय हों। वेद व्यास जिन्होंने वेद का आलेखन किया, पुराणों और महाभारत की रचना की अपने पुत्र शुकदेव को ज्ञान प्राप्ति के लिए मिथिला की पावन भूमि पर भेजा। आदि शंकर हो या कोई अन्य महामनीषी जब तक मैथिल पंडित से शास्त्रार्थ नहीं कर लेते थे[ तब तक अपनी ज्ञान की पूर्णता से संतुष्ट नहीं हो पाते थे। 21वीं सदी में भी जब ज्ञान परंपरा की बात हो रही है, तो केरल के राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल के मंच पर आकर अपनी बात रखेंगे। केरल और मिथिला का संबंध प्राचीन काल से है। दोनों समाज अपने लोक को लेकर बेहद साकांक्ष है। अपनी परंपरा को लेकर गौरवान्वित है। शिक्षा और ज्ञान का अलख जगाने के लिए देश ही नहीं, विदेशों में भी चर्चा में रहा है। दरअसल, मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल मानता है कि मिथिला और बिहार का संबंध केरल के कई गांव से है। 12 वीं सदी में बहुत से लोग उत्तरी भारत से जाकर इन गांव में बसे थे। ये लोग खासकर ज्ञान परंपराओं से जुड़े हुए लोग थे, इनका वहां बसना उस ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाने का प्रयास था। बहुत से गांवों में आज भी ऐसी परंपराएं फल फूल रही है।
8 दिसंबर, 2019 को राजधानी दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्ीय कला केंद्र के सभागार में केरल के राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल 2019 की शुरुआत करेंगे। बता दें कि इस वर्ष मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल 24 से 27 दिसंबर तक राजनगर और सौराठ में होगा। बीते साल इस फेस्टिवल में मिथिला के ज्ञान, परंपरा, साहित्य और लोक की खूब बातें हुई थीं। अपने अपने क्षेत्र के निष्णात लोगों ने विचार रखें और देश-विदेश के लोगों ने सहभागिता की थी।
बता दें कि मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन सेंटर फाॅर स्टडीज आॅफ टे्डिशन एंड सिस्टम सीएसटीएस करती है। 8 दिसंबर, 2019 को सीएसटीएस इंदिरा गांधी राष्ट्ीय कला केंद्र, जीएसडीएस और साहित्य अकादमी के साथ मिलकर मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल का आगाज कर रही है। इसकी औपचारिक शुरुआत प्रसिद्ध विद्वान व केरल के राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान कर रहे हैं। उनके ज्ञान से लोगों को लाभ मिलेगा। अहम बात यह भी है कि महामहिम राज्यपाल का स्वागत मिथिला की समृद्ध परंपरा और मैथिली लोकगीत के माध्यम से किया जाएगा।
साथ ही जो लोग राजधानी में रहकर मिथिला और मैथिली को समझना चाहते हैं, उनके लिए आयोजकों की ओर से कई प्रकार के स्टाॅल्स लगाए गए हैं। जहां पुस्तकें, हस्तशिल्प सहित कई प्रकार की सामग्री प्रदर्शित की जा रही है।
शुरुआती सत्र में आगा खान ट्स्ट फाॅर कल्चर के परियोजना निदेशक श्री रतिश नंदा, केंद्रीय विश्वविद्यालय गुजरात के कुलपति प्रो आर एस दुबे, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मणिन्द्र नाथ ठाकुर, इंदिरा गांधी राष्ट्ीय कला केंद्र के डाॅ सच्चिदानंद जोशी, नेशन बुक ट्स्ट की निदेशका श्रीमती नीरा जैन,, जीएसडीएस के श्री दिपांकर श्रीज्ञान अपनी बातों को रखेंगे।
इस कार्यक्रम के आयोजक का कहना है कि मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल का मुख्य मकसद ज्ञान परंपरा को जन जन तक पहुंचाना है। ज्ञान की कोई भौगोलिक सीमा नहीं होती है। मिथिला के कई मनीषियों ने इस बात को सिद्ध किया है। इस वर्ष राजधानी दिल्ली मंे मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल की औपचारिक शुरुआत करके हम समस्त देशवासियों को मधुबनी आने का निमंत्रण दे रहे हैं। यदि आपको ज्ञान, परंपरा, मीमंासा, लोक को समझना है, तो 24 से 27 दिसंबर का सुअवसर आपके लिए है।
इसे संयोग भी कह सकते हैं कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जब भी विकास की बात की जाती है, तो लोगों की जुबान पर गुजरात आ ही जाता है। उसी गुजरात से मिथिला का जुडाव आज का नहीं, बल्कि सदियों पुराना है। मिथिला की एक परंपरा आज गुजरात में फल-फूल रही है। वहां के एक प्रसिद्ध नैयायिक श्री बच्चा झा की एक पुस्तक का अनुवाद और उस पर टीका हाल में वहां के एक जैन मुनि ने किया है। उस जैन मुनि का इस काम के लिए व्यापक सम्मान जैन समुदाय के अंदर किया जा रहा है। मिथिला लिटरेचर फेस्टिवल का प्रयास है कि भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित किया जाए और आधुनिक संदर्भ में उसका पुनः व्याख्या की जाए। जिस तरह सरकार ने केरल स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स बनाकर केरल की गणित परंपरा को सम्मान दिया गया है, वैसे ही अन्य जगहों पर भी सेंटर फॉर नॉलेज एंड प्रैक्टिस खोलकर इस परंपरा के अध्ययन का विस्तार किया जाना चाहिए।