मैथिल भाषियों के लिए विश्व पुस्तक मेला में नई शुरुआत

विश्व पुस्तक मेला-2018 में मैथिली स्टाल। डाॅ सविता खान और अमित आनंद के मेहनत से सपना हुआ साकार।

नई दिल्ली। नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा आयोजित 26वीं नई दिल्ली श्व पुस्तक मेला, 2018 में पहली बार मैथिली भाषा को सेंटर फॉर स्टडीज ऑफ़ ट्रेडिशन एंड सिस्टम्स, नई दिल्ली द्वारा लगाये जा रहे मैथिली मचान नाम से स्टाल में प्रतिनिधित्व मिल रहा है जिसमें नेपाल और भारत भर से मैथिली प्रकाशकों/लेखकों से मैथिली भाषा की पुस्तकों को आमंत्रित कर एक संयोजित मंच तैयार करने की कोशीश की जा रही है ताकि चौदहवीं सदी से लगातार समृद्ध साहित्य की एक परंपरा की अस्मिता विश्वस्तरीय मुकाम तक हासिल हो, इस मचान से मिथिला/मैथिली के नौ रत्नों को भी सम्मानित करने की इस ट्रस्ट की योजना है, साथ ही नयी प्रकाशित पुस्तकों का विमोचन भी इस मैथिली मचान से करने की योजना है, साथ ही अभी तक जितने भी लेखक/लेखिकाओं को अभी तक साहित्य अकादेमी से नवाजा गया है उनकी तमाम पुस्तकों को एक जगह एकत्रित कर यह आगे के शोध के लिए भी नए आयाम खोल सकती हैI इस आयोजन का मूल उद्देश्य ग्रामीण प्रकाशकों को खासकर सामने ला कर मैथिली के ग्रामीण प्रकाशकों और लेखकों को प्रोत्साहन देना भी है I ग्रामीण प्रकाशकों की स्तरीय प्रकाशन को एक नया मंच मिले, यह कोशिश की जायेगी I साथ ही पद्मश्री उषाकिरण खान की पोखरी रजोखरी और भामती जैसे ग्रंथों को लेकर भी कई आयोजन इस पुस्तक मेला में ही करने की योजना बनाई जा रही हैI ट्रस्ट के संस्थापक श्री अमित आनंद और डॉ सविता ने मातृभाषाओं को लेकर संवेदना जगाने से समाज के एक बड़े वर्ग को लाभ पहुँचाने के साथ ही मुख्यधारा में भी शामिल होने की आवश्यकता पर बल देने की बात कही, इससे जनसाधारण को शिक्षा से जोड़ने का काम भी सहजता से हो सकेगा, मैथिली मातृभाषा के रूप में भारत- नेपाल संबंधों को ना सिर्फ जोडती है बल्कि एक बहुत बड़े समूह (तक़रीबन आठ करोड़) की प्रचलित मातृभाषा भी है, ऐसे में विश्व पुस्तक मेले में भारत, नेपाल के लेखकों और प्रकाशकों को एक मंच पर लाना एक महत्वपूर्ण पहल माना जा सकता है, पिछले विश्व पुस्तक मेले में भी ट्रस्ट की तरफ से ऐसा ही प्रयास किया गया था जब हेल्लो मिथिला, काठमांडु संचालक व मैथिली साहित्यकार श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि को मैथिली साहित्य अकादेमी से सम्मानित लेखिकाओं के साथ थीम पवेल्लियन में मैथिली का एक आयोजन किया गया था जिससे नेपाल और उत्तरी बिहार की एक बहुत बड़ी आबादी सदियों से, विद्यापति काल से ही (पंद्रहवीं सदी) एक सूत्र में बंधी हुई हैI

 

 

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