मैं उतराखंड के चमोली जिले के गोपेश्वर क्षेत्र के सग्गर गांव का रहने वाला हूं। मुझे स्कूल जाने और घर लौटने के लिए रोज सात किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती थी। मैं स्कूल में दौड़ता तो था और पहली बार मुंबई स्कूल नेशनल में गया और पांचवें नंबर पर रहा। वहां मैंने पहली बार सिंथेटिक ट्रैक पर पैर रखा था। इसके बाद मैं पैदल चाल में लग गया। हमारे साथ स्पोर्ट्स कॉलेज के कोच अनूप बिष्ट थे और उनका तबादला मेरे ही जिले में हो गया था। उन्होंने मुझे अभ्यास करना शुरू कर दिया। मैं उनके साथ और स्कूल में सातवें आठवेंं पीरियड में अभ्यास करता था। 2009 में मेरा स्कूल नेशनल में पहली बार पदक आया था और तभी से मैंने तय किया कि मुझे अब वॉकिंग को अपनाना है।
रियो ओलंपिक में मैं पहली बार गया था। वह बहुत बड़ी स्पर्धा थी। इतने लोगों को देखकर मैं थोड़ा नर्वस भी रहा था। मैं 13वें स्थान पर रहा था। प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा लेकिन जो अनुभव मुझे मिला है वह आगे मेरे बहुत काम आएगा। मैं बेंगलुरू के साई सेंटर में खूब अच्छे से ट्रेनिंग कर रहा हूं।
शहरी बच्चे अपनाएंगे। अभी मैं देहरादून में था। मुझे उत्तराखंड पुलिस में नौकरी में प्रमोशन मिली वो वॉकिंग की वजह हो सका। मुझे आईपीएस के बच्चे देख रहे थे। वो कर सकते हैं। पहले तो बिलकुल भी नहीं करते थे। अब तो कुछ वॉकर हो गए हैं।
गोपेश्वर से चार किलोमीटर दूर मेरा सग्गर गांव है। जब मैं रियो में गया तो गांव वाले मुझे वीडियो भेजते थे कि वो मेरी सफलता के लिए पूजा पाठ कर रहे हैं। गांव में और मार्केट में मेरी स्पर्धा देखने के लिए बड़ी-बड़ी स्क्रीन लगाई गर्इं थी। मैं बहुत अच्छा तो नहीं कर सका लेकिन फिर भी सभी ने कहा कि वो मेरे प्रदर्शन से संतुष्ट हैं। जब मैं गांव पहुंचा तो मुझे लेने बहुत बड़ी संख्या में लोग आए थे। स्टेडियम में भी मेरा बड़ा स्वागत हुआ था। वहां मैं अभ्यास करता ही था। अब वॉकिंग को लोग अपना रहे हैं। गोपेश्वर में भी हैं पांच-छह हैं, देहरादून में भी हैं। ये सब मुझे देखकर वॉकिंग से जुडेÞ हैं। इससे वॉकिंग को बढ़ावा मिल रहा है।
मुझे कोच अनूप बिष्ट ने सिखाया है।
मैं 2006 में पिता की मृत्यु के बाद घर के हालात खराब थे। चार भाई बहन हैं। मैं बदरीनाथ के एक होटल में कार्य करता था और टूरिस्टों के लिए गाइड का कार्य भी करता था। नौकरी लगने से मैं अपनी दो बहनों की शादी कर सका हूं।
वॉकिंग के मामले में सबसे बड़ी कमी यह है कि हमारे पास साधन नहीं है। किसी को पता ही नहीं है। जो मुझे अब पता चला है चार साल पहले पता चलता तो मैं ओलंपिक में अच्छा करता। जरूरत इस बात की है कि एथलेटिक क्लब बनाए जाएं जिससे बच्चों को इसकी जानकारी मिल सके।
विदेशियों की टैक्नीक हमसे अलग होगी जो हमें नही पता। चीन इसमें बहुत आगे है। रिकवरी के साधन विदेशियों के पास अच्छे होंगे। उनके पास पूरी टीम होती है।
विदेशी वॉकरों के पास उच्च स्तर की टैक्नीक होती है पर हमारे अंदर विल पॉवर ज्यादा है। उसी से हम ओलंपिक तक पहुंच सके हैं।