क्षीण होती संवदेनाएं और मशीन होता इंसान

डॉ. दीपमाला

जीवन कुदरत का दिया सबसे बेशकीमती उपहार है, जिसमें अनगिनत संभावनाएं छिपी हुई है। लेकिन अधिकांशत: अज्ञान और जागरूकता के अभाव में यही जीवन समस्याओं का अखाड़ा बन जाता है। हर किसी के जीवन में कोई न कोई समस्या अवश्य होती है, चाहे वो किसी भी उम्र, समुदाय अथवा वर्ग से संबंध रखता हो। यह मानना बेमानी होगा कि सिर्फ जो गरीब और लाचार है वही समस्या ग्रस्त है। समाज का वो वर्ग जो साधन सम्पन्न है, उसका जीवन अधिक समस्याग्रस्त प्रतीत होता है। समाचार पत्र या सोशल मीडिया पर प्रसारित पोस्ट को देखकर लगता है कि देश दुनिया में समस्या के अलावा कुछ भी नहीं है। हम एक समस्याग्रस्त समाज में रहते हैं।
एक पल रुक कर सोचते हैं कि क्या सच में हमारा जीवन सिर्फ समस्याओं का ढेर भर रह गया है? क्या हम ऐसे समय में नहीं पहुंच गए जहाँ समस्याग्रस्त तनावपूर्ण जीवन जीने के अलावा हमारे पास कोई चारा शेष न रह गया हो…या सच्चाई का एक दूसरा पहलू यह है कि हम इतने अधिक व्यस्त (मशीनी) हो गए हैं कि समाधान की तरफ देखने का समय ही हमारे पास नहीं है। हम अनायास यांत्रिकता के शिकार होते जा रहे हैं, जोकि अपने आप में सबसे बड़ी समस्या है। सोचकर हैरानी होती है पर यह सच है कि पहले मनुष्य ने मशीनें बनाई और अब मशीनों पर उसकी बढ़ती निर्भरता इंसानों को मशीन बना रही है। मानवीय संवेदनाएं धीरे धीरे गायब होती चली जा रही है।
मानवीय संवेदनाओं का गायब होते जाना दूसरी सबसे बड़ी समस्या है। लोगों की दूसरे के प्रति संवेदनशीलता कम होना जितना चिंताजनक है, उससे अधिक चिंताजनक है व्यक्ति का स्वयं में प्रति असंवेदनशील होते जाना। जिसका स्पष्ट प्रमाण बढ़ती आत्म हत्या की घटनाओं के रूप में देखा जा सकता है। कई ऐसी घटनाएं आम तौर और देखने सुनने में आती है कि लोगों ने अपनी जान इसलिए ले ली क्योंकि उनको कोई ऐसा मिला ही नहीं जिससे वो उचित परामर्श प्राप्त कर सकते। खासकर बच्चों के पास अपनी समस्याओं का हल पाने का उचित विकल्प मौजूद ही नहीं है। अक्सर लोग कहते हैं कि संयुक्त परिवार में मानसिक तनाव से आसानी से निपटा जा सकता था, पर प्रश्न यह है कि वर्तमान परिस्थिति में पुन: संयुक्त परिवार की तरफ लौटना आसान नहीं है। लिहाजा बढ़ते तनाव से निपटने में लिए नई संरचना को बनाने की जरूरत है। गहन आध्यात्मिक प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
अक्सर जब समस्याओं और तनाव से घिरे किसी व्यक्ति आप सुझाव देते हैं कि उसे स्वयं को समय देने की आवश्यकता है। उसके जीवन में तमाम समस्याओं की असली जड़ तो यह है कि स्वयं उसके शरीर मन और आत्मा के बीच का संतुलन बिगड़ गया है। यह सुझाव सुनकर अक्सर लोग कहते हैं कि उनके पास तो समय ही नहीं है स्वयं के लिए। असली समस्या की जड़ यही है। व्यक्ति सारे जीवन तनाव और समस्याओं में गुजार सकता है..कुदरत के दिए खूबसूरत उपहार को नष्ट कर सकता है पर वो कुछ पल ठहर कर जीवन की कार्यविधि में बारे में सोचना नहीं चाहता।
हैरानी कि बात है कि स्वयं के पास स्वयं के लिए समय नहीं है। स्वयं से प्रश्न किया जाना चाहिए कि आखिर हम ऐसा कौन सा जीवन जी रहे हैं जिसमें आपके पास खुद में लिए समय नहीं है? ऐसी प्रणाली मनुष्य की नहीं वरन् मशीन की होती है। जीवन की आधी से ज्यादा समस्याओं का अंत तो उसी समय हो जाएगा, जब आप स्वयं को याद दिलाएंगे कि आप मशीन नहीं मनुष्य है और आपके सीने में धड़कता हृदय है और जिसमें तमाम संवेदनाएं हैं, जिनको महसूस करना और जीना आपके लिए उतना ही जरूरी है, जितना अपने अस्तित्व को भूल कर काम में डूबे रहना। ध्यान दे इसके लिए आपको लंबी छुट्टी लेने की जरूरत नहीं है। बस यह इरादा करने की जरूरत है कि आपको लाजबाब महसूस करने का अधिकार है। आप अपनी व्यस्त दिनचर्या में भी ऐसे तमाम काम कर सकते हैं जिससे आपको और आपके होने से किसी दूसरे को बहुत खुशी मिल सकती है। आॅफिस की व्यस्त दिनचर्या में कुछ पल के लिए आँखे मूँद कर उन लम्हों को याद कर सकते है जिनमे आपने जीवन को महसूस किया था। अपने सहकर्मी को एक मीठी मुस्कान दे सकते हैं। रास्ता चलते किसी व्यक्ति की मदद कर सकते हैं। मेट्रो या स्टेशन पर सीढ़ी चढ़ते किसी बुजुर्ग की मदद कर सकते है। स्वयं को उत्साह और उमंग से भरा रखकर दूसरों को खुश रहने की प्रेरणा दे सकते है। आप थोड़ा सा समय हर दिन निकाल कर देखिये आपको दूसरों को खुशी देने ने हजारों तरीके नजर आ जाएंगे और इन खूबसूरत लम्हों का लाभ यह होगा कि आप खुद पहले से ज्यादा तनाव मुक्त जीवन की तरफ बढ़ते जाएंगे। खुद को हर रोज याद दिलाएं कि आप मनुष्य है और आपके भीतर खूबसूरत संवदेनाएं हैं। आप मदद करने आये हैं न कि मशीन के आगे बैठकर मशीन बनने…

(लेखिका, मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता, मोटिवेशनल स्पीकर हैं।)

 

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