मस्तराम जिंदाबाद

नई दिल्ली।  वे बेकार थे और सडकों से अधिक दफ्तरों के चक्कर लगाते थे । भूखे थे और घर से पैसे आने बंद थे ।
एक होटल में पहुंचे और आवाज लगाई- मस्तराम को बुलाओ । मस्तराम हाजिर हुआ । वहां काउंटर पर सब्जियों से भरे पतीले रखे थे और वे सुबह से भूखे थे । पर ललचाई दृष्टि से देखते तो मस्तराम को शक हो जाता । जरा रौब से बोले – हमें एक समारोह करना है । वो सामने वाला होलीडे होम का हाल बुक करवा लिया है । लगभग दो सौ लोगों कै खाने का इंतजाम ,,मतलब खाने पीने का प्रबंध तुम्हारा ।

-जी साहब । यह तो आपने कल भी फरमाया था ।
– अच्छा । आज खाना चैक करवाओ । ये हमारे बड़े साहब दिल्ली से आए हैं इसी काम की तैयारियां देखने के लिए ।
– नहीं साहब । मैं रोज़ रोज़ मुफ्त खाना चैक नहीं करवा सकता ।
– अरे बेवकूफ । कल ये तुम्हें एडवांस दे जायेंगे । इसीलिए तो दिल्ली से आए हैं ।
– ठीक है साहब लगवाता हूं ।
दोनों ने एक दूसरे की तरफ मुस्कराकर देखा और योजना की सफलता पर आंखों ही आंखों में बधाई दी । डटकर खाना खाया । उठकर चलने से पहले बताया कि कल से थोडा अच्छा है पर उस दिन तुम जानते हो कि बाहर से लोग आयेंगे , काफी अच्छा बनाना ।
मस्तराम जी साहब जी साहब करता गया । वे बाहर चले गये और सडकों पर नारे लगाने लगे -मस्तराम जिंदाबाद ।

कमलेश भारतीय,  वरिष्ठ पत्रकार  

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