सुशील देव
नई दिल्ली। अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म ‘गब्बर इज बैक’ से भी देश के डाक्टरों ने सीख नहीं ली। फिल्म में एक निजी अस्पताल में एक गरीब आदमी की मौत हो जाती है। अस्पताल प्रशासन उसके परिजनों को पैसों के अभाव में उसकी डेड बाडी नहीं देते। फिर हीरो गब्बर यानी अक्षय आते हैं और उसी डेड बाडी का दूसरे डाक्टरों से इलाज करवाते हैं। डाक्टर लोग जब इलाज के लिए उनसे अनाप-शनाप फीस की मांग करते हैं तो सारा भेद खुल जाता है और इस सच्चाई को मीडिया के जरिए उजागर कर दिया जाता है। तब वहां मौजूद जनता उस प्रबंधक डाक्टर को सजा देती है। आज देश में लूट मचाने और लापरवाही बरतने वाले ऐसे प्रबंधकों या डाक्टरों पर कई गब्बरों के पहरेदारी की जरूरत है।16 लाख रूपए के बिल पर फोर्टिस अस्पताल को दोषी माना गया है। हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने कहा है कि ऐसे अस्पतालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। दिल्ली के द्वारका की सात साल की बच्ची की डेंगू से मौत हो गई थी। अस्पताल प्रशासन ने उसके माता-पिता से कहा था कि 16 लाख के बिल चुकाने के बाद ही उसका शव दिया जाएगा। सोशल मीडिया पर मामला गरमाया और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नडडा और विज ने इस बारे में जांच के आदेश दे दिए। जांच के बाद अस्पताल दोषी पाया गया है। विज ने स्पष्ट कहा कि ये लापरवाही नहीं, हत्या का मामला है।मैक्स अस्पताल में एक नवजात शिशु को डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया और परिजनों को थमा दिया। लेकिन बच्चा जिंदा निकला तो हंगामा खड़ा हो गया। बाद में छह दिनों तक इलाज के बाद उसकी मौत हो गई। निजी अस्पताल के ऐसे आचरण न केवल उसकी गुणवत्ता बल्कि उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है। बच्चे के माता-पिता ने अफसोस जताया कि काश, किसी सरकारी अस्पताल में चले गए होते तो उसका बच्चा आज जिंदा होता। दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन ने नर्सरी होम एक्ट के तहत मैक्स के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के संकेत दिए और अब शालीमारबाग मैक्स अस्पताल के लाइसेंस कर अन्य अस्पतालों को भी अच्छा सबक दिया है।निजी अस्पतालों का धंधा सहज व्यापार बन गया है। यही वजह है कि देश भर में निजी अस्पतालों की भरमार है। उन पर कोई निगरानी या अंकुश नहीं। आसानी से लाइसेंस हासिल कर लेना, डोनेशन देकर डाक्टरों की फौज तैयार कर लेना और दिखावे करके पैसों की लूट मचाना चिंताजनक है। ये तमाम आचरण केंद्र और राज्य सरकार को ठेंगा दिखाने वाले साबित हो रहे हैं। फाइव स्टार होटलों सरीखे अस्पतालों में गरीबों को कोई छूट नहीं मिलती और न ही वहां किसी सरकारी नियमों का पालन किया जाता। मगर सरकार को यह याद रखना चाहिए कि स्वास्थ्य भी हमारे मौलिक अधिकारों में से एक है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सामाजिक सरोकारों से जुडे हैं। )