यो जागारःतं ऋचःकामयन्ते।
कमल संन्यस्त है, क्योंकि वह कीचड़ में खिला तो है, लेकिन उसमें लिप्त नहीं है। सजगता का तना उसका सहयोगी होता है, इसी मामूली से दिखने वाले तने का ही चमत्कार है कि वह कीचड़ में भी कीचड़ से छुआ ही नहीं जा पाता है और ब्रह्मचर्य से प्रगट खिला रह पाता है….यह सजगता ही ध्यान है…इसी से आसक्ति से मुक्ति मिलती है…हमारी आसक्ति हमें प्रमाद में गिरा देती है,भौतिक प्रेम भी कुछ ऐसा ही है…यह अजीब सा कैमिकल लोचा है। ‘
गहरे तक सम्मोहित करता है। क्योंकि यह जल और मछली के सम्बंध जैसा है। जल की मछली सोती भी आंखें खोलकर है और मन उसी मछली सा होता है…जब हम सो जाते हैं, तब भी जागता रहता है। ऋषियों ने कहा- यो जागारः तं ऋच:कामयन्ते…जो जागेगा है मंत्र उसी पर खुलते हैं…लेकिन यह जागना मछली का जागना नहीं है, उससे तो मन की चंचलावृत्ति होती है..…जिसका प्रतिफल केवल गिरना ही है…वह गिरना ही प्रमाद है…उसके द्वारा मृत्यु को अमृत में परिवर्तित नहीं किया जा सकता…प्रमाद को शास्त्र कहते हैं- स्वाध्यायान्न प्रमदितव्यम् …स्वाध्याय से प्रमाद मत करो… स्वाध्याय और कुछ नहीं, अपना अनुशीलन, अपना अध्ययन ही तो है…खुद में उतारना, गहरे में उतरना ही तो है.…किताबों का अध्ययन स्वाध्याय नहीं है…किताबें तुम्हें एक तरह का प्रमाद ही पैदा करेगी…किताबों में यदि ज्ञान होता, तो दीमक सबसे बड़ा विद्वान होता….इसलिए तुम बाहर से अपने भीतर उतारना….कमलवत….क्योंकि तुम्हारे पास तंद्रा में जाने के बहुत से मार्ग हैं.…
तंद्रा ही प्रमाद है…यह निद्रा से पूर्व की स्थिति है, जिसे तोड़ना ही होगा…यह एक बेहोशी है, ऐसी बेहोशी,जो तुम्हें भटका देती है…इस बेहोशी से ही हम कीचड में लिप्त हो जाते हैं….इस बेहोशी से अंधकार का प्रभाव बद्व जाता है और हम अंदर से उठने वाले प्रकाश की ज्योति से वंचित हो जाते हैं…इस प्रमाद से केवल एक ही मार्ग तुम्हें बचा सकता है…वह मार्ग है ध्यान का….ध्यान का होना ही प्रमाद की मृत्यु हो जाना है…क्योंकि ध्यान ही तुम्हारे मन की मृत्यु का परिणाम होता है…इसलिए ध्यान में रहो… ध्यान वह जागृति है, जो तुम्हें गिरने से रोकती है…इसलिए जो भी करो, ध्यान से करो, सोओ तो ध्यान से, खाओ तो ध्यान से, बात करो तो ध्यान से और उस परमात्मा से मिलो तो ध्यान से.…ध्यान एक साधना है…..उसे ही साधो…….
-आचार्य चंद्रशेखर शास्त्री वारिद
अधिष्ठाता
श्रीपीताम्बरा विद्यापीठ सीकरीतीर्थ
अध्यक्ष, राष्ट्रीय ज्योतिष परिषद