मोदी सरकार के खिलाफ कोई ‘एंटी इनकंबैंसी’ भी नहीं है। केंद्र की सरकार बनते ही इसी बीच लगातार कई राज्यों में बीजेपी किला फतह करती रही। सरकार का इकबाल आज भी बुलंद है। इसी बुलंद इकबाल की वजह से बीजेपी और स्वंय पीएम मोदी अब 2019 की बातें नहीं करते दीखते। बात अब 2022 की हो रही है है। यह 2022 का नारा समझ से परे है। जब चुनाव 2019 में ही होने हैं तब 2022 की बात कहाँ से हो रही है?
अखिलेश अखिल
2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब बीजेपी चुनाव लड़ रही थी तब वह जनता से कह रही थी कि ‘अच्छे दिन ‘लाने के लिए पांच साल का वक्त चाहिए।पांच साल में देश की तस्वीर बदल दी जायेगी ,देश का काया कल्प हो जाएगा ,सारी समस्याएं ख़त्म हो जायेगी। देश में रोजगार का अकाल नहीं रहेगा,हर साल 2 करोड़ युवाओं को रोजगार मिलेगा और इसके साथ ही भ्रष्टाचार करने वालों से पैसे लेकर देश के हर नागरिक के खाते में 15 लाख रुपये डाल दिए जाएंगे।यह इतना बड़ा वादा था कि जनता की घिघि बंध गयी और ताव में आकर बीजेपी को जिताने के लिए वह सब किया जो पहले नहीं किया था। यह बात और है कि मोदी की सरकार बनने के बाद जब लोगों ने 15 लाख रूपये की मांग की तो सरकार के लोगों ने ही कहा कि वह सब महज जुमला था ,एक उदाहरण भर था।
जनता मन मसोस कर रह गयी। आखिर करती भी क्या ? सरकार से ज्यादा पूछ्ताछा करके भला कौन देशद्रोही का तमगा लगाए घूमे !
अब जब लगभग चार साल गुजर गए हैं और सरकार के पास ऐसी कोई ‘चमत्कारिक उपलब्धि’ नहीं है, जिसे वह पेश कर सके। लेकिन आश्चर्य तो यह भी है कि मोदी सरकार के खिलाफ कोई ‘एंटी इनकंबैंसी’ भी नहीं है। केंद्र की सरकार बनते ही इसी बीच लगातार कई राज्यों में बीजेपी किला फतह करती रही। सरकार का इकबाल आज भी बुलंद है। इसी बुलंद इकबाल की वजह से बीजेपी और स्वंय पीएम मोदी अब 2019 की बातें नहीं करते दीखते। बात अब 2022 की हो रही है है। यह 2022 का नारा समझ से परे है। जब चुनाव 2019 में ही होने हैं तब 2022 की बात कहाँ से हो रही है। जाहिर है यह आगे का अजेंडा है। अब आगे का अजेंडा फिट करके देश की गुलाबी तस्वीर पेश करके जनता को भ्रमित किया जा रहा है। आपको याद दिला दे कि 2022 में देश की आजादी के 75 साल हो जाएंगे। आपको यह भी याद दिला दें कि जिस आजादी का 75 वर्षगाँठ बीजेपी मनाने का सपना देख रही है उस आजादी की लड़ाई में इनके लोगों की कोई भूमिका नहीं रही है।
आपको यह भी बता दें यह साल बारहवीं पंचवर्षीय योजना का आख़िरी साल था। पिछली सरकार ने इस साल 10 फ़ीसदी आर्थिक विकास दर हासिल करने का लक्ष्य रखा था। वह लक्ष्य तो दूर, पंचवर्षीय योजनाओं की कहानी का समापन भी इस साल हो गया। अब भारतीय जनता पार्टी ने ‘संकल्प से सिद्धि’ कार्यक्रम बनाया है, जिससे एक नए किस्म की सांस्कृतिक पंचवर्षीय योजना का आग़ाज़ हुआ है। ‘संकल्प से सिद्धि’ का रूपक है- 1942 की अगस्त क्रांति से लेकर 15 अगस्त 1947 तक स्वतंत्रता प्राप्ति के पाँच साल की अवधि का। रोचक बात यह है कि बीजेपी ने कांग्रेस से यह रूपक छीनकर उसे अपने सपने के रूप में जनता के सामने पेश कर दिया है। सन 2022 में भारतीय स्वतंत्रता के 75 साल पूरे हो रहे हैं और बीजेपी उसे भुनाना चाहती है। मोदी सरकार ने ख़ूबसूरती के साथ देश की जनता को पाँच साल के लिए लंबा एक नया स्वप्न दिया है। पिछले साल के बजट में वित्तमंत्री ने 2022 तक भारत के किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प किया था। उस संकल्प से जुड़े कार्यक्रमों की घोषणा भी की गई है।
सवाल है कि क्या 2022 का स्वप्न 2019 की बाधा पार करने के लिए है या ‘अच्छे दिन’ नहीं ला पाने के कारण पैदा हुए असमंजस से बचने की कोशिश है? सवाल यह भी है कि क्या जनता उनके सपनों को देखकर मग्न होती रहेगी, उनसे कुछ पूछेगी नहीं? मोदी सरकार देश के मध्य वर्ग और ख़ासतौर से नौजवानों के सपनों के सहारे जीतकर आई थी। उनमें आईटी क्रांति के नए ‘टेकी’ थे, अमेरिका में काम करने वाले एनआरआई और दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद और मुम्बई के नए प्रोफ़ेशनल, काम-काजी लड़कियाँ और गृहणियाँ भी। पिछले साढ़े तीन साल में बीजेपी का हिंदू राष्ट्रवाद उभर कर सामने आया है। देखना होगा कि गाँवों और कस्बों के अपवार्ड मूविंग नौजवान को अब भी उनपर भरोसा है या नहीं।
डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया और बेटी बचाओ जैसे तमाम नए कार्यक्रम सरकार ने बनाए हैं। ये कार्यक्रम भविष्य के भारत के स्वप्न हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि इनमे से कोई भी योजनाएं साकार होती नहीं दिख रही। सबसे बड़ा लोचा तो रोजगार निर्माण का है। कहाँ है रोजगार ? काम नहीं तो दाम नहीं और दाम नहीं तो देश परेशान। हिंदुत्व की चासनी में आखिर कब तक नौजवान जीता रहे। इसका जबाब किसी के पास नहीं है।
आर्थिक रूप से देश महत्वपूर्ण मोड़ पर है। हमारा विकास ठहर सा गया है या फिर नीचे जाता दिख रहा है। भ्रष्टाचार पर चोट जारी है लेकिन असली भ्रष्टाचारी आज भी मजा लेते नजर आ रहे हैं। देश को किसने लुटा ? जिन कॉर्पोरेट घरानो ने बैंक के पसे पर अपनी औकात खड़ी की और बैंक के पसे देने से मुकर गए जिसे एनपीए कहा जा रहा है ,आखिर उनपर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है। करीब 7 लाख करोड़ कॉर्पोरेट घरानो ने पचा लिए हैं। क्या इतनी बड़ी रकम देश की जनता डकार सकती है ? संभव ही नहीं। हजारो ,लाख़ों के लोन नहीं दिए जाने पर यही सरकार जनता को हवालात में बंद करती है। गजब का लोकतंत्र है।
सरकार कहती है कि सब कुछ बदल गया। क्या गरीबी ख़त्म हो गयी ?क्या सबके लिए स्वास्थ्य सुविधा बरकरार हो गयी ? क्या सबको पीने का पानी मिल गया ?क्या सबको शिक्षा सुलभ हो गयी ? सबको रोजगार मिल गया ? क्या घरविहीन लोग घर वाले हो गए ? भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया ? चोरी ,बेईमानी ,ठगी ,गलाकटी ख़त्म हो गया ? लूट ,खसोट। चोरी डाका समाप्त हो गया ? बलात्कार नहीं होते ? नेता -अफसर दागी नहीं रहे ? क्या अब चुनाव में दागी चुनाव नहीं लड़ते ? क्या पडोसी देशों से हमारे रिश्ते मजबूत हो गए ? क्या हम विकसित हो गए ?बहुतेरे सवाल हैं लेकिन जबाब किस्से मांगी जाए। सच तो यह है कि यह सरकार भावनाओं के लहरों पर सवार हो कर आयी थी और आज भी भावनाओ की लहरों पर ही चल रही है। देश चुप्पी साधे सब देख रहा है। देश को आज भी चमत्कार का इन्तजार है। लेकिन चमत्कार दिखता नहीं। चुनावी जीत में सरकार अपना चमत्कार देख रही है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी सरकार का इकबाल अभी बुलंद है। पीएम मोदी के प्रति अभी लोगों का विश्वास कायम है। यही विश्वास 2022 का सपना गढ़ रहा है। लेकिन जनता का विश्वास कब दरक जाए और कब मिजाज बदल जाए कौन जाने।