सीता नवमी पर वैदेही उत्सव में बोले सांसद संजय झा: माता सीता भारतीय नारी शक्ति और सांस्कृतिक धरोहर की प्रतीक

 

नई दिल्ली। सीता नवमी पर आयोजित वैदेही उत्सव में राज्यसभा सांसद श्री संजय कुमार झा ने कहा कि  माता सीता भारतीय नारी शक्ति, त्याग, धैर्य और मर्यादा की प्रतीक हैं। वे न केवल मिथिला की गौरवशाली बेटी हैं, बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि वैदिक काल से ही माता सीता का उल्लेख पृथ्वी और उर्वरता की अधिष्ठात्री देवी के रूप में मिलता है, जो यह दर्शाता है कि उनका स्थान केवल एक धार्मिक चरित्र तक सीमित नहीं है, बल्कि वे भारतीय सभ्यता की मूल आत्मा से जुड़ी हुई हैं।
राज्यसभा सांसद श्री संजय कुमार झा ने मिथिला की संस्कृति और परंपरा को विश्वपटल पर ले जाने के लिए व्यापक प्रयासों की आवश्यकता पर भी बल दिया और कहा कि सीता नवमी केवल एक धार्मिक अवसर नहीं है, बल्कि यह हमारे मूल्यों, नारी गरिमा और सांस्कृतिक चेतना का स्मरण दिवस है। हमें गर्व है कि मिथिला जैसी भूमि ने ऐसी दिव्य और प्रेरणादायी शक्ति को जन्म दिया। उन्होंने

जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष, राज्यसभा सांसद श्री संजय कुमार झा नई दिल्ली में मधुबनी लिटेरचर फेस्टिवल और सेंटर फॉर स्टडीज ऑफ टेडिशन एंड सिस्टम्स् द्वारा आयोजित वैदेही उत्सव में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। उल्लेखनीय है कि बीते कुछ वर्षों से सेंटर फॉर स्टडीज ऑफ टेडिशन एंड सिस्टम्स् की निदेशक डॉ सविता झा सीता नवमी के अवसर पर वैदेही उत्सव पर कई सत्रों में कार्यक्रम और मधुबनी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी का आयोजन करती आ रही है। इसमें मिथिला की कलाकारों की पेंटिंग्स मुख्यतः जगत जननी मां सीता पर ही केंद्रित रहती हैं। इस बार भी दर्जनों कलाकारों ने अपनी पेंटिंग्स लगाई हुई हैं।
कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत राज्यसभा सांसद श्री संजय कुमार झा, मां बंग्लामुखी पीठ के गुरु जी, प्रसिद्ध चित्रकार श्रीमती भारती दयाल, श्रीमती मोती कर्ण, प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ अनामिका, मिथिला एंजल नेटवर्क और मिथिला स्टैक के फाउंडर श्री अरविंद झा सहित अन्य गणमान्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। उसके बाद मां सीता के पेंटिंग्स का अनावरण किया गया। साथ ही पेंटिंग्स के कैटलॉग का लोकार्पण किया गया।

वैदेही उत्सव में मंथन सत्र के दौरान प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ अनामिका ने कहा कि ज्ञान की सीढी चढते चढते व्यक्ति संज्ञान तक पहुंचता है। अहं से वयं तक की यात्रा में वैदेही प्रज्ञावान दिखती हैं, क्योंकि उनमें धैर्य है।

दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास की प्राध्यापिका और सीएसटीएस की निदेशक डॉ सविता झा के अनुसार, सीता का स्वरूप, जिन्हें रामायण में भगवान राम की पत्नी के रूप में व्यापक रूप से पूजनीय माना जाता है, उनके महाकाव्य रूप से भी पहले का है और उनका उल्लेख वैदिक साहित्य में मिलता है। ऋग्वेद में सीता का एक प्रारंभिक संदर्भ मिलता है — विशेष रूप से मंडल 4, सूक्त 57 के मंत्र 6 और 7 में — जहाँ उन्हें रानी या पत्नी नहीं, बल्कि उर्वरता और कृषि की अधिष्ठात्री देवी तथा पृथ्वी की साक्षात् स्वरूपिणी के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

इससे पूर्व कार्यक्रम में स्वागत भाषण देते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज के संस्कृत के प्रोफेसर डॉ पंकज कुमार मिश्रा ने कहा कि सीता नवमी हमारे लिए मात्र एक दिन नहीं, बल्कि उत्सव है। सीता तो महिला के लिए संबल है। जगत कल्याण के लिए सीता ने जो प्रतिमान स्थापित किया है। सीता ने हर नारी को मंत्र शक्ति दिया है। वैदेही उत्सव मिथिला ही नहीं, अखिल विश्व के लिए महिला सशक्तीकरण की मिसाल है।

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