अचानक भाजपा मुस्लिम और ईसाई समुदाय को लुभाने में क्यों लग गई है? भारतीय राजनीति में ऐसा वक्त पहली बार आया होगा जब कोई दल एक ही समय में तीन अलग-अलग धर्म के लोगों को इस तरह से लुभाने की कोशिश कर रहा हो.
नई दिल्ली। भाजपा के लिए 2018 में होने वाले चुनाव बेहद मुश्किल और दिलचस्प दोनों है. राहुल गांधी अध्यक्ष बनने के बाद पहली बड़ी जीत का इंतजार कर रहे हैं और भाजपा हिमाचल प्रदेश और गुजरात जीतने के बाद हैट्रिक लगाने की जुगत में है. भाजपा ने इस बार चुनाव जीतने का तरीका और नेता दोनों एकदम अलग तरह के चुने हैं. कुछ जानने वालों का मानना है कि भारतीय राजनीति में ऐसा वक्त पहली बार आया होगा जब कोई राजनीतिक दल एक ही समय में तीन अलग-अलग धर्म के मतदाताओं को इस तरह से अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रहा हो.
2018 में सबसे पहले मेघालय और त्रिपुरा में चुनाव होने वाले हैं. इन दो राज्यों में भाजपा का जनाधार बेहद कमजोर है. मेघालय में कांग्रेस की सरकार है और मुकुल संगमा मुख्यमंत्री हैं. त्रिपुरा में सीपीएम की बादशाहत कायम है और मानिक सरकार मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड बनाने निकले हैं. ये दोनों राज्य ऐसे हैं जहां ईसाई धर्म के वोटरों की संख्या बेहद ज्यादा है. अमित शाह यहां दो रैलियां कर चुके हैं और प्रधानमंत्री की भी एक रैली हो चुकी है. लेकिन उत्तर पूर्व के इन दो राज्यों में भाजपा के स्टार प्रचारक हैं मोदी सरकार में ईसाई धर्म के इकलौते मंत्री अल्फोंस कन्नथनम. पिछले रविवार को केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री अल्फोंस ने मेघालय में 70 करोड़ के पैकेज का ऐलान किया जिसमें से 61 करोड़ रुपए 37 चर्चों को दिए जाएंगे. सुनी-सुनाई है कि ऐसा पहली बार हुआ है जब भाजपा की सरकार ने ईसाई धर्म के लोगों को अपनी तरफ खींचने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. इस फॉर्मूले के सफल होने की उम्मीद कितनी है यह पूछने पर भाजपा के सूत्र गोवा का उदाहरण देते हैं. गोवा में भी अरसों तक भाजपा की सरकार नहीं बन पाई क्योंकि ईसाई धर्म के मतदाता उसे अपना नहीं मानते थे. लेकिन बाद में मनोहर पर्रिकर ने पार्टी से अलग अपनी लाइन पकड़ी और अब भी वे उसी लाइन पर चलते हुए गोवा में भाजपा की सरकार चला रहे हैं.
मेघालय अगर कांग्रेस के हाथ से निकल गया तो अमित शाह कांग्रेस मुक्त भारत के बेहद करीब पहुंच जाएंगे. इसके बाद राहुल गांधी के पास सिर्फ तीन राज्यों में सरकार बचेगी, पश्चिम में पंजाब और दक्षिण में पुडुचेरी और कर्नाटक. कर्नाटक में भी इसी साल चुनाव होने हैं और बाकी देश की तरह यहां भी भाजपा का पूरा ध्यान हिंदू वोटों को एकजुट करने पर है. इस काम के लिए कर्नाटक में पार्टी ने योगी आदित्यनाथ को अपना स्टार प्रचारक घोषित किया है. योगी वहां पर एक राउंड प्रचार कर भी चुके हैं और अपने अंदाज़ में सिद्धारमैया को हिंदु विरोधी सीएम बताते रहे हैं. इसके जवाब में सिद्धारमैया कहते हैं कि उनके नाम में ही राम है. योगी के बाद अमित शाह ने भी परिवर्तन रैली की शुरुआत कर दी है. अमित शाह ने चित्रदुर्ग की सभा में सीधे हिंदू वोट की बात की और कहा कि सिद्धारमैया की सरकार एंटी हिंदू है.कर्नाटक से संबंध रखने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार की मानें तो इस बार दक्षिण में राहुल गांधी का भी वही रंग दिखेगा जो गुजरात के वक्त था. राहुल गांधी भी कर्नाटक के मंदिरों की परिक्रमा करेंगे और भाजपा के बड़े-बड़े नेता भी मंदिरों में दर्शन करते दिखेंगे.
इन सबसे अलग एक ऐसा राज्य है जहां इस साल कोई चुनाव तो नहीं होने हैं लेकिन भाजपा यहां के मुस्लिम वोट पाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रही है. पश्चिम बंगाल में पिछले एक महीने में सियासत की उल्टी गंगा बही है. ममता बनर्जी की पार्टी तेजी से हिंदू मतदाताओं को करीब लाने में जुटी है. पहले बीरभूम में पश्चिम बंगाल के सभी बड़े पंडितों का सम्मेलन बुलाया गया और इसे ब्राह्मण सम्मेलन का नाम दिया गया. इसके बाद ममता ने खुद गंगासागर मेले की तैयारी में पूरी जान लगा दी. ममता और उनकी पूरी सरकार गंगासागर मेले के वक्त भक्तों का ख्याल करती दिखी. जब भक्तों का जत्था कोलकाता से रवाना हो रहा था, उस वक्त भी ममता सरकार वहां खड़ी थी. पश्चिम बंगाल के कई पत्रकारों से बात हुई, सबने कहा मेला बरसों से चला आ रहा है. लेकिन ममता ने ऐसा इंतजाम पहले कभी नहीं किया. ममता बनर्जी ने जो किया उसने तो पत्रकारों को चौकाया ही लेकिन इसके जवाब में बंगाल में जो भाजपा कर रही है वह भी हैरान करने वाला है. भाजपा वहां मुस्लिम सम्मेलन कर रही है. तीन तलाक का बिल लोकसभा में पास करवाने को भाजपा अपनी विजय बता रही है और इसे जश्न के मौके का नाम देकर कोलकाता में सिर्फ मुस्लिम समाज के लोगों को मीटिंग में बुलाया गया है. इस मौके पर भाजपा की स्टार होंगी इशरत जिन्होंने तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी. वे कुछ दिन पहले ही भाजपा की महिला मोर्चा की सदस्य बनी हैं.
भाजपा के सूत्रों से सुनी बात को मानें तो किसी भी अन्य राज्य से ज्यादा कठिन पश्चिम बंगाल का चुनाव जीतना है. यह एक ऐसा राज्य है जहां 26 फीसदी मुस्लिम आबादी है. ऐसे में यहां भाजपा तभी ममता बनर्जी को हरा सकती है जब हिंदुओं के अलावा उसे मुस्लिम वोट भी ठीकठाक संख्या में मिलें. इसलिए पश्चिम बंगाल में भाजपा और संघ का राष्ट्रीय मुस्लिम मंच 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले वहां अपने काम पर जुट गया है.
साभार: सत्याग्रह