संसद के उच्च सदन राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव राजग औऱ संप्रग दोनो के किए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था।यह ऐसा अवसर था,जिसका लाभ उठाकर विपक्ष यह साबित कर सकता था कि पीएम मोदी की करिश्माई लोकप्रियता पर अब विपक्षी एकता भारी पड़ेगी ,परन्तु कांग्रेस उम्मीदवार बीके हरिप्रसाद को उपसभापति चुनाव में जिस तरह हार का सामना करना पड़ा, उससे यह जरूर साबित हो गया कि विपक्ष पीएम मोदी के कुशल नेतृत्व व एवं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रणनीतिक चतुराई के आगे अभी और बेबस नजर आता रहेगा। इस चुनाव में पहले तो विपक्ष को अपना सर्वसम्मतिपूर्ण उम्मीदवार चुनने में असफलता हाथ लगी और फिर जैसे- तैसे कांग्रेस ने अपने सदस्य बीके हरिप्रसाद को उम्मीदवार बनने के लिए राजी किया तब तक विपक्ष की एकता में सेंध लगाने में भाजपा सफल हो गई।
भाजपा ने इस चुनाव में लगभग एक तीर से दो निशाने लगा लिए। राज्य सभा के उपसभापति का पद कांग्रेस से छीनने के साथ ही उसने जेडीयू को भी संतुष्ट कर दिया। जेडीयू के सदस्य हरिबंश को भाजपा ने उपसभापति की कुर्सी पर बैठाकर जेडीयू को अब इस पसोपेश में डाल दिया है कि आगामी लोकसभा चुनाव में सीटों के बटवारे को लेकर उसे अब किस हद तक अपनी शर्तों अडिग रहना चाहिए। अमित शाह ने नितीश कुमार से विगत दिवस हुई मुलाकात पर संतुष्टी अवश्य व्यक्त की थी, लेकिन वे नितीश से उनकी मन की बात जानने में उतने सफल नहीं हो पाए थे, जिसकी उम्मीद वह कर रहे थे। बहरहाल अब संसद के उच्चसदन के उपसभापति के पद पर उनके मित्र व जेपी आंदोलन में उनके सहयोगी रहे हरिबंश की ताजपोशी कराकर भाजपा ने नितीश की चिरपरिचित मुस्कान को जरूर बदल दिया है।
इस चुनाव में राजग ने केवल एकजुटता दिखाई बल्कि बीजू जनतादल एवं तेलंगाना राष्ट्रसमिति को भी अपने पक्ष मतदान करने के लिए साध लिया। आश्चर्य की बात तो यह रही कि दिल्ली की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी एवं वायएसआर कांग्रेस ने मतदान के समय अनुपस्थित रहकर हरिबंश की जीत औऱ आसान कर दी। कुछ समय पूर्व अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के पीएम मोदी से गले लगने के प्रसंग एवं भारी मतदान से अविश्वास प्रस्ताव नामंजूर होने से कांग्रेस पार्टी की जो किरकिरी हुई थी ,उसके बाद तो यह सम्भावना व्यक्त की जा रही थी कि उसभापति के चुनाव में कांग्रेस सहित समूचा विपक्ष अपनी हार का बदला लेने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देगा। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान लोकसभा में राजग के पास पूर्ण बहुमत होने के कारण विपक्ष को तो निराश होना ही था,लेकिन राज्य सभा के उपसभापति के चुनाव के मामले में यदि विपक्ष गंभीर होता तो अल्पमत राजग के लिए मुश्किल जरूर खड़ी हो सकती थी।
सरकार भी यह भली भांति जानती थी कि राज्य सभा में विपक्ष की एकता बरक़रार नहीं रह पाएगी। और हुआ भी यही। विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के इस प्रस्ताव को किसी दल ने स्वीकार नहीं किया कि कोई क्षेत्रीय दल उपसभापति के लिए अपना उम्मीदवार खड़ा करे तथा सभी विपक्षी दल उसका समर्थन करे।पहले ऐसी सम्भावनाएं व्यक्त की जा रही थी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सदस्य वंदना चव्हाण उम्मीदवार बनने के लिए तैयार हो सकती है ,लेकिन आखरी समय में पार्टी ने हाथ पीछे खींच लिए। अंततः कांग्रेस को अपना उम्मीदवार घोषित करना ही पड़ा। पार्टी को हरिप्रसाद की जीत की संभावनाएं तो पहले ही धूमिल लगने लगी थी। विपक्ष के सारे वोट भी उनके पक्ष में नहीं पड़े। परिणाम यह हुआ कि राजग के उम्मीदवार हरिबंश राजयसभा के उपसभापति चुन लिए गए।अब लोकसभा के बाद राज्य सभा में भी सरकार की जीत ने उसे आत्मविश्वास से भर दिया है। ऐसे में विपक्ष के लिए आगामी लोकसभा चुनाव में इससे पार पाना आसान नहीं लग रहा।
यहां गौर करने वाली बात यह है कि अविश्वास प्रस्ताव के दौरान शिवसेना ने अनुपस्थित रहकर अपनी नाराजगी व्यक्त की थी किन्तु राज्य सभा में पार्टी ने भाजपा को निराश नहीं किया और उसने राजग के उम्मीदवार के पक्ष में ही मतदान किया, किन्तु इधर राहुल गांधी विपक्षी एकता को मजबूत करने में नाकाम साबित हुए। दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी कांग्रेस के उम्मीदवार के पक्ष में मतदान कर सकती थी, लेकिन राहुल गांधी ने इसके लिए आप मुखिया अरविंद केजरीवाल से अनुरोध करना आवश्यक नहीं समझा। आप के राज्य सभा सदस्य संजय सिंह ने तो पहले ही कह दिया था कांग्रेस को यदि समर्थन चाहिए था तो राहुल गांधी को केजरीवाल से बात करनी चाहिए थी। परिणाम घोषित होने के बाद उन्होंने तंज भी किया कि राहुल गांधी यदि पीएम मोदी से गले लग सकते है तो उन्हें केजरीवाल से बात करने में संकोच क्यों हो रहा था।
नवनिर्वाचित उपसभापति हरिबंश भाजपा के सहयोगी जेडीयू के राज्य सभा सदस्य है। जेडीयू ने उन्हें 2016 में राज्य सभा के लिए चुना था। वे बिहार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ जेपी आंदोलन में सहयोगी रह चुके है तथा वे अतीत में प्रकाशित होने वाली लोकप्रिय हिंदी पत्रिकाओं धर्मयुग तथा रविवार से पत्रकार के रूप में सम्बंधित रहे है। उन्होंने रांची से प्रकाशित दैनिक प्रभात खबर का भी संपादन किया है। हरिबंश का चयन कर भाजपा ने जेडीयू के सारे गिले -शिकवे भी दूर कर दिए है। गौरतलब है कि नीतीश ने जब भाजपा से हाथ मिलकर बिहार में सरकार बनाई थी ,तब यह संभावनाएं व्यक्त की जा रही थी कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में पार्टी को प्रतिनिधित्व मिलेगा ,लेकिन जब मंत्रिमंडल का पुनर्गठन हुआ तो नितीश को निराशा हाथ लगी थी। भाजपा के इस कदम से जेडीयू की नाराजगी बढ़ गई थी। यह नाराजगी उस समय बाहर आती दिखी जब पार्टी ने आगामी लोकसभा चुनाव् के लिए बिहार की 40 में से 25 सीटों पर दावा कर तल्खी व्यक्त की थी । हालांकि विगत दिवस अमित शाह ने बिहार प्रवास के दौरान नीतीश से मुलाकात के बाद विश्वास व्यक्त किया था कि दोनों दल आगामी लोक सभा चुनाव मिलकर लड़ेंगे, किन्तु नीतीश ने इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं किया था ,जिससे यह कयास लगाए गए थे कि अभी भी सब ठीक नहीं है। अब जब भाजपा ने उपसभापति का पद जेडीयू को सौप दिया है तो ऐसी संभावनाएं नगण्य है कि जेडीयू लोकसभा चुनाव में अपनी कोई शर्त रखेगा।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)