नीतीश के जरिये पटेलों को साधने की कोशिश

लोगों का मानना है कि लोक सभा चुनाव में भी नीतीश कुमार जदयू को चुनाव में उतारेगी। चुनाव में बीजेपी के साथ उनका कोई गठबंधन नहीं होगा लेकिन कांग्रेस को हारने के लिए जदयू की राजनीति चलेगी। गुजरात में पटेलों की राजनीति को नीतीश कुमार कितना साध पाएंगे या नाराज पटेल समुदाय को कितना खुश कर पाएंगे लेकिन नीतीश के जरिये पटेलों की नाराजगी को ठीक करने के लिए नीतीश की तरफ मोदी की संभावना बढ़ी है।

अखिलेश अखिल

गुजरात में मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के शपथ ग्रहण समारोह में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास भी शामील हुए। इसके साथ ही सीएम नीतीश कुमार के साथ बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी शपथ समारोह में शामिल हुए। कई और प्रदेश के मुख्यमंत्री भी पहुंचे थे इस समारोह में। जानकारी के मुताबिक, गुजरात में सीएम नीतीश की पीएम मोदी के साथ औपचारिक मुलाकात भी हुयी।बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई वर्षों के बाद अहमदाबाद में मौजूद थे। इससे पूर्व नीतीश ने गुजरात चुनाव में जीत के बाद ट्वीट और फोन कर रूपाणी को बधाई दी थी। इस साल जुलाई में भाजपा के साथ सरकार बनाने के बाद और एनडीए में शामिल होने के बाद यह पहला मौका है जब नीतीश कुमार भाजपा के किसी मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद हुए।
नीतीश कुमार का इस समारोह में आते ही कई तरह की बाते हो रही है। माना जा रहा है कि बीजेपी अपने सभी एनडीए नेताओं को इस मंच पर लाकर 2019 की राजनीति को साधने की शुरुआत कर रहे हैं। राजनीति जानकारों की मानें तो 2013 तक जब नीतीश भाजपा के साथ सरकार चला भी रहे थे तब नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण से दूर रहते थे। हालांकि नीतीश ने भी बिहार में 2007 से 2010 तक के विधानसभा चुनाव में उन्हें प्रचार नहीं करने दिया। लेकिन, गठबंधन टूटने के बाद मोदी न केवल प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने बल्कि प्रधानमंत्री भी बने और उसके बाद पार्टी के प्रचार का नेतृत्व किया।
राजनीतिक गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि प्रधानमंत्री मोदी अब अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी में लगे हैं और गुजरात के विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद इस बात का अंदाजा हो गया है कि पटेल समुदाय का एक तबका भाजपा से नाराज चल रहा है। माना जा रहा है कि नीतीश भले कोई बड़ा असर नहीं डाल सकते, लेकिन नाराज पटेलों को शांत करने में उनकी भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वहीं, गुजरात में हो रहें शपथ ग्रहण समारोह को भाजपा का शक्ति प्रदर्शन माना जा रहा है क्योंकि भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री के साथ-साथ गठबंधन के शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हो रहें हैं।
उल्लेखनीय है कि भाजपा से संबंध तोड़ने के चार साल बाद बिहार के मुख्यमंत्री ने कुछ महीनों पहले ही फिर से राजग से हाथ मिलाया। उन्होंने प्रधानमंत्री के गृह राज्य में भाजपा के लिये आसान जीत की भविष्यवाणी की थी। मोदी तीन बार गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। हाल में हुए विधानसभा चुनावों को जीतकर भाजपा ने लगातार छठी बार गुजरात में सत्ता पर कब्जा किया है। पार्टी ने विजय रुपाणी को फिर से प्रदेश का मुख्यमंत्री और नितिन पटेल को उपमुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया है।
तो नीतीश कुमार को मंच पर बुलाकर बीजेपी फिर से गुजरात की आगामी राजनीति को साधने की तैयारी में है। इसमें कोई दो राय नहीं कि नीतीश कुमार की राजनीति सधे कदमो से होती है और उनका प्रभाव भी है। बिहार के गठबंधन तोड़ने का तोहमत भले ही उनपर लग रहा हो लेकिन ईमानदार राजनीति पर किसी शक नहीं है। गुजरात में नीतीश की पार्टी भी चुनाव लड़ी थी ,हारी भी लेकिन उस हार पर भी नीतीश कुमार ने कहा था कि जो भी परिणाम आये उससे वे संतुष्ट हैं। जाहिर है कि गुजरात में आगे भी नीतीश कुमार की राजनीति जारी रहेगी भले ही हारने के लिए ही क्यों ना हो। कुछ लोगों का मानना है कि लोक सभा चुनाव में भी नीतीश कुमार जदयू को चुनाव में उतारेगी। चुनाव में बीजेपी के साथ उनका कोई गठबंधन नहीं होगा लेकिन कांग्रेस को हारने के लिए जदयू की राजनीति चलेगी।
गुजरात में पटेलों की राजनीति को नीतीश कुमार कितना साध पाएंगे या नाराज पटेल समुदाय को कितना खुश कर पाएंगे लेकिन नीतीश के जरिये पटेलों की नाराजगी को ठीक करने के लिए नीतीश की तरफ मोदी की संभावना बढ़ी है।

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