गरीबी को मुंह चिढ़ा रहा है प्याज

बाजार में 60 से 80 रूपए प्रति किलो हुए प्याज के भाव ने मध्यम एवं निम्न मध्यमवर्गीय परिवार का मुंह चिढ़ाना शुरू कर दिया है। अब उनके हिस्से में रोटी और नमक ही बचे हैं। ये रोटी भी महंगाई कब छीन ले, कोई पता नहीं।

सुशील देव

नई दिल्ली। अब प्याज और टमाटर भी अमीर लोग ही खाएंगे। गरीबों की सूखी रोटी जिस प्याज और नमक से खाई जाती थी अब वो भी मयस्सर नहीं। बाजार में 60 से 80 रूपए प्रति किलो हुए प्याज के भाव ने मध्यम एवं निम्न मध्यमवर्गीय परिवार का मुंह चिढ़ाना शुरू कर दिया है। अब उनके हिस्से में रोटी और नमक ही बचे हैं। ये रोटी भी महंगाई कब छीन ले, कोई पता नहीं। सरकार गरीबों के लिए तमाम सुविधाओं के घोषणाओं की झड़ी लगा देती है मगर महंगाई पर काबू नहीं पा रही, चिंता का विषय है।
सुना गया कि प्याज की आवक कम है, इसीलिए खुदरा व्यापारियों ने कीमतें बढ़ा दी हैं। मंडी वाले कहते हैं कि किसानों से उन्हें पर्याप्त प्याज नहीं मिल पा रहा है। किसान कहते हैं कि उन्हें अपनी फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है जबकि इन दिनों प्याज और टमाटर की जमकर कालाबाजारी, जमाखोरी और मुनाफाखोरी चल रही है। आखिर ये क्या गड़बड़झाला है? केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्री रामविलास पासवान इस मुददे पर हाथ खड़े कर देते हैं और कहते हैं कि प्याज की कीमतें कम करना उनके वश में नहीं। मंत्री समेत आजादपुर मंडी के प्याज ट्रेडर्स एसोसिएशन के सचिव श्रीकांत मिश्रा के मुताबिक महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से प्याज की आवक बढ़ने पर भाव में गिरावट आ जाएगी।
प्याज और टमाटर के चढ़ते भाव की वजह से आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति का भाव भी सातवें आसमान पर है। कांग्रेस केंद्र की मोदी सरकार को इसके लिए जिम्मेदार ठहराती है तो देश के अन्य विपक्षी दल सरकार की आर्थिक नीतियों की बखिया उधेड़ने में लगी है। कहते हैं कि दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकी सुषमा स्वराज की सरकार प्याज की बढ़ती कीमतों के कारण चली गई थी। बाद में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने इसकी भरपाई के लिए प्याज का आयात किया था। राजधानी दिल्ली में प्याज और टमाटर की बढ़ती हुई कीमतों पर लगाम लगाने के लिए दिल्ली सरकार ने पड़ोसी राज्यों से मदद मांगी है और केंद्र से इस मामले में हस्तक्षेप करने को कहा है।
रोजमर्रा की जिंदगी में साग-सब्जी भी आम आदमी की पकड़ से बाहर हो रही है। गरीबों के किचन के लिए प्याज और टमाटर तो अब किसी दुर्लभ वस्तु से कम नहीं। उनका किचन सूना पड़ गया है। उनकी थाली खाली है। ऐसे लाखों परिवार हैं, जो सरकार से सवाल कर रहे हैं कि इंसान की पहली जरूरत रोटी भी कहीं उनके हाथ से न निकल जाएं। कपड़ा और मकान तो बाद की जरूरतें है लेकिन रोटी-सब्जी या नमक उनकी पहली जरूरत है। केंद्र सरकार को इस पर प्राथमिकता से गौर करना चाहिए।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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