राज्यसभा में विपक्षी एकता हुआ तार-तार

अनंत अमित

नई दिल्ली। राज्यसभा के उपसभापति चुनाव में सत्तारूढ़ एनडीए के उम्मीदवार जदयू सांसद हरिवंश नारायण सिंह ने विपक्ष के उम्मीदवार कांग्रेस सांसद बी.के.हरिप्रसाद को हरा दिया। हरिवंश को 125 वोट मिले, जबकि बी.के.हरिप्रसाद को 105 वोट हासिल हुए। अब तक इस पद पर कांग्रेस के पी.जे.कुरियन काबिज थे और 30 जून को उनका कार्यकाल खत्म होने के बाद से यह पद रिक्त था। अब तक राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव बहुत सुर्खियों में या चर्चा में नहीं रहता था। लेकिन अब राजनैतिक हालात इस तरह बदले हैं कि इस पद पर हार या जीत, चुनावी भविष्यवाणी का सबब बनने लगी। पिछले कुछ महीनों में सत्तारूढ़ एनडीए में दरारें बनने लगी हैं। टीडीपी अलग हो गई, शिवसेना ने भी अलग चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, जदयू से बिहार में खटपट की खबरें आ रही थीं, ऐसे में भाजपा के लिए यह चुनाव अपने साथियों की निष्ठा और विश्वास को परखने का था।
उधर महागठबंधन की कोशिशों में जुटी कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों के लिए भी यह अपनी ताकत को आजमाने का वक्त था। फिलहाल इस परीक्षा में भाजपा ने ज्यादा अंकों के साथ बढ़त हासिल कर ली है। जदयू सांसद हरिवंश को एनडीए का प्रत्याशी बना, उसने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। बिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर भाजपा, जदयू में जो तनातनी थी, उसे दूर करने की कोशिश इस कदम से हुई है। दूसरा उपचुनावों में मिली हार के बाद अब इस जीत से भाजपा के हौसले बुलंद हैं कि वह संभावित विपक्षी एकता को मात दे सकती है। मुजफ्फरपुर कांड से जदयू और नीतीश कुमार की जो किरकिरी हो रही है, उसकी थोड़ी भरपाई भी इस जीत से होगी।
हरिवंश जी को जिताने में नीतीश कुमार ने जिस तरह बीजद, अकाली दल आदि को साथ लिया, उससे एक बार फिर उन्होंने अपनी राजनीतिक चतुराई का परिचय दिया है। इस चुनाव में कांग्रेस सांसद बी.के.हरिप्रसाद को हार मिली है, लेकिन असल में यह झटका विपक्षी एकता को लगा है। विपक्ष ने अपना उम्मीदवार तय करने में बहुत देर कर दी, क्योंकि आखिर-आखिर तक यह तय नहीं हो रहा था कि किस-किस का साथ मिलेगा। राकांपा की ओर से पहले वंदना चव्हाण का नाम प्रस्तावित था, लेकिन जब बीजद की प्रतिबद्धता राकांपा की जगह जदयू के साथ दिखी, तो उनका नाम आगे नहीं बढ़ाया गया। टीआरएस, शिवसेना और बीजद तीनों ने एनडीए का साथ दिया, जबकि वाईएसआर कांग्रेस, पीडीपी और आप ने वोटिंग का बहिष्कार किया। यह बहिष्कार एक तरह से एनडीए का साथ देना ही था।
शिवसेना भाजपा को चाहे कितनी खरी-खोटी सुनाए, चुनावी मैदान में वो उसके साथ रहती है, यह एक बार फिर नजर आ गया। आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह के मुताबिक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने राजग गठबंधन के उम्मीदवार हरिवंश का समर्थन करने के बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अनुरोध को ठुकरा दिया है क्योंकि उन्हें भाजपा का समर्थन प्राप्त है। लेकिन आप ने कांग्रेस का समर्थन भी नहीं किया, क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने विपक्ष के उम्मीदवार के लिए आप से समर्थन नहीं मांगा। संजय सिंह ने सवाल किया कि ‘यदि राहुल गांधी नरेन्द्र मोदी को गले लगा सकते हैं, तो वह अपनी पार्टी के उम्मीदवार के लिए अरविन्द केजरीवाल से समर्थन क्यों नहीं मांग सकते?’ जाहिर है आम आदमी पार्टी के लिए भाजपा को हराने से ज्यादा जरूरी अपने अहंकार को बचाए रखना है। उसके इस कदम से उसकी राजनैतिक प्रतिबद्धता समझी जा सकती है। हालांकि आप के तीन सांसदों का वोट कांग्रेस को मिलता, तब भी जीत-हार का फैसला वही रहता।
बहरहाल, राज्यसभा उपसभापित चुनाव से अगले आम चुनाव के पहले की तस्वीर कुछ-कुछ बनने लगी है। भाजपा के पास अब भी खोने के लिए बहुत कुछ नहीं है, जबकि कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों के लिए यह आत्मचिंतन और एक-दूसरे को परखने का मौका है। वे अगर उपसभापति पद के लिए एकजुट नहीं हो सके, तो प्रधानमंत्री का चेहरा चुनने की बारी आएगी, तो क्या करेंगे?

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