गुजरात जीत के साथ ही पद्मावती रिलीज !

गुजरात के चुनाव परिणाम आ चुके हैं और वहाँ सरकार अब बन चुकी है इसलिए पद्मावती भी रिलीज होगी। किसी विरोधी को अब कोई मतलब नहीं है पद्मावती से। आये या ना आये। सरकार का विभाग अब पद्मावती पर नरम है। सुनने में आ रहा है कि पद्मावती के नाम पर देश भर में तांडव करने वाली करनी सेना अब पद्मावत नाम पर सहमत हो गयी है।

अखिलेश अखिल

चलिए सब तय अजेंडा के तहत ही हो रहा है। खबर मिल रही है कि पद्मावती को लेकर अब सरकार का नजरिया साफ़ हो गया है और उसकी रिलीज की तारीख भी तय होने वाली है। देश के लोगों को इस पद्मावती के रिलीज होने या ना होने से क्या लाभ हानि है इसका तो किसी को कोई अनुमान नहीं लेकिन गुजरात चुनाव से पहले जिस तरह से पद्मावती को लेकर मार काट और हिन्दू मुसलमान की राजनीति शुरू हुयी थी अब थम गयी है।गुजरात के चुनाव परिणाम आ चुके हैं और वहाँ सरकार अब बन चुकी है इसलिए पद्मावती भी रिलीज होगी। किसी विरोधी को अब कोई मतलब नहीं है पद्मावती से। आये या ना आये। सरकार का विभाग अब पद्मावती पर नरम है। सुनने में आ रहा है कि पद्मावती के नाम पर देश भर में तांडव करने वाली करनी सेना अब पद्मावत नाम पर सहमत हो गयी है।
कितनी विचित्र हालत है देश की कि एक फिल्म के नाम पर सरकार थम जाती है और देश भर में बावेला मच जाता है लेकिन मरते किसानो से इस देश की आत्मायों की रूह नहीं कांपती। कापेगी भी कैसे ? मृत आत्माएं कभी नहीं कांपती। पद्मावती के नाम पर पुरे डिस्टर्ब करने वाले लोगों से पूछा जाना चाहिए कि क्या उनके पास सरकार से मांग करने के लिए कोई मुद्दा नहीं था ? फिर क्या राजस्थान के लोगों से भी पूछा जाना चाहिए कि जब वहाँ तमाम तरह की समस्यायों को लेकर आये दिन सरकार पर हमले हो रहे हैं तब पद्मावती के विरोधी उसी अपनी समस्यायों को लेकर दांडी मार्च क्यों नहीं कर रहे थे ? करेंगे भी कैसे ? भूख ,अशिक्षा ,गरीबी ,बेरोजगारी ,बीमारी और असमानता और भ्रष्टाचार से ज्यादा महत्व की चीज उनके लिए धर्म और जाति है। शर्म तो उन जवानों पर आती है जिनके सामने समस्यायों का अम्बार लगा हुआ है लेकिन उन समस्यायों पर अक्सर वे बोल नहीं पाते।
समाचार माध्यमों से भी अचानक पद्मावती गायब हो गया। चैनल के परदे से पद्मावती उतर गए। आखिर ऐसा कैसे हो गया ? एक माह पहले उठते बैठते जहां पद्मावती लोगों को परेशान किये हुए थी अचानक गायब हो गयी। इससे साबित होता है कि पद्मावती का मामला सिर्फ चुनाव को लेकर प्रायोजित था। गुजरात चुनाव में इसका रंग चढ़ना था और गोदी मीडिया चगाहे जैसे भी रंग चढाने में जुटी हुयी थी।
गुजरात चुनाव के दौरान जो सवाल विपक्ष की तरफ से पूछे जाने थे उसे गोदी मीडिया ने ख़त्म कर दिया। बीजेपी से जो सवाल पूछे जाने थे उसे गोदी मीडिया ने पद्मावती पर केंद्रित कर दिया। जहां धरम ,जाति का ही अपमान हो रहा हो वहाँ भला सवाल कैसा ? तब लगता था मानो भारत में धर्म ,जाति ,राष्ट्रवाद और इतिहास पर कोई बड़ा हमला हो रहा है। इस हमले से बचने की जरूरत है बरना राष्ट्र खतरे में पड़ जाएगा। मीडिया का यह चरित्र भी इतिहास में दर्ज होगा और भावी पीढ़ी सिर्फ सिर्फ हमारी वेवकूफी पर ठहाका लगाएगी।
खेल देखिये। जितनी तल्लीनता से हमारी मीडिया बाबा राम रहीम ,आसाराम ,बाबा दीक्षित ,रेप पर खबरे दिखाती है उतनी ही तल्लीनता से सालों से देश को चुना लगाने वाले कॉर्पोरेट घरानो पर खबरे नहीं दिखाती। 7 लाख करोड़ से ज्यादा की राशि कॉर्पोरेट घरानो ने बैंक के डकार लिए हैं। अब देने का नाम नहीं लेते। सरकार इस रकम को एनपीए कह रही है। आजतक किसी मीडिया हाउस ने अजेंडा के तहत सरकार से पूछने की कोशिश नहीं कि ये पैसे क्यों नहीं लौट रहे हैं। क्या आजाद भारत में इतनी बड़ी रकम की हेरा फेरी को कोई वहां कर सकता है ? यह तो एक तरह का आजाद भारत का सबसे बड़ी लूट है जिसे सरकार के लोग ,नेता बैंककर्मी और कॉर्पोरट के लोग मिलकर खा गए हैं। इस पर मीडिया की आँखे नहीं जाती।
सरकार से यह कोई नहीं पूछता कि अब चार साल होने को है और किये वादे क्यों नहीं पुरे हुए। सरकार से यह भी कोई नहीं पूछता कि जब 2019 में ही चुनाव होने हैं तो 2022 की राजनीति किस अजेंडा के तहत की जा रही है। सरकार से यह कोई नहीं पूछता कि हमारे सम्बन्ध पड़ोसी देशों से कैसे हैं ? यह सवाल भी कोई नहीं करता कि मानव विकास सूचकांक में लगातार भारत पीछे क्यों सरकता जा रहा है। लेकिन धरम ,जाति ,गाय ,हिन्दू मुसलमान से लेकर पद्मावती की राजनीति पर मीडिया खूब चिल्ला रही है। यह कैसा लोकतंत्र बन रहा है या यह लोकतंत्र कितना मजबूत हो रहा है इसको परिभाषित कौन करे ? गुजरात में शराबबंदी है। ड्राई स्टेट है लेकिन वहाँ शराब का धड़ल्ले से लाया -पहुंचाया जा रहा है। आखिर ऐसा कैसे हो रहा है ? कोई सवाल नहीं है इसपर। खैर है कि पद्मावती को लेकर सरकार अब वह सब करने को तैयार है जो वह कर सकती है। पद्मावती रिलीज होगी। उसके आगे की पटकथा भी गोदी मीडिया में तैयार होगा। अब तो अगला चुनाव 2018 के मध्य से होना है तब तक गोदी मीडिया अजेंडा को खोज रही है।

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