विपिन बादल का प्रधानमंत्री के नाम खुला पत्र

आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी,
विषय: भारत का नाम इंडिया क्यों ? इंडियन का प्रचलित अपमानजनक अर्थ।
सादर प्रणाम !
आपके कुशल नेतृत्व क्षमता की वजह से आज न सिर्फ दुनियाभर में भारत का मान-सम्मान बढ़ा है बल्कि विश्वनेता के रूप में आपकी भूमिका का कायल समस्त वैश्विक समुदाय है। अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, चीन और जापान सहित दुनिया की सभी महाशक्तियां आपकी निर्णय क्षमता, नेतृत्व दूरदर्शिता से प्रभावित है और मुक्तकंठ से इसका इजहार भी की रही हंै। यह आपके व्यक्तित्व और नेतृत्व क्षमता का ही कमाल है कि एक तरफ अमेरिका के गत राष्ट्रपति चुनाव में भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से आप और आपकी विकासपरक नीतियां चर्चे में रही तो दूसरी तरफ कई अरब देश भी अपने पारम्परिक नीति का त्याग कर भारत के साथ खड़े दिख रहे हैं। आन्तरिक स्तर पर भी देश का भविष्य संवारने और समाज के हर व्यक्ति को खुशहाल बनाने के लिये आपके द्वारा किये जा रहे अथक प्रयासों और नीति-निर्णयों से भारत महाशक्ति बनने के पथ पर तेजी से अग्रसर है।
आपको भी यह जानकर आश्चर्य होगा कि ऐसे कई शब्द और उनके अर्थ व्यापक स्तर पर प्रचलन में हैं जो हमारे गौरव बोध को न सिर्फ ग्लानि भाव से भर देते हैं बल्कि दुनिया की प्राचीनतम भारतीय सभ्यता और संस्कृति को उपहास का पात्र भी बना देते हैं। आश्चर्य है कि आजादी के 70 सालों के बाद भी भारत सरकार की तरफ से इन शब्दों के अपमानजनक अर्थ को सुधारने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है।
देश के संविधान में हिन्दुस्तान का नाम प्दकपंए जींज पे ठींतंज के रूप में उल्लेखित है। इंडिया में रहनेवाले स्वाभाविक रूप से ‘इंडियन’ ही कहलायेंगे। किन्तु इंडियन शब्द का अर्थ आॅक्सॅफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार असभ्य, पिछड़े, पुराने तौर-तरीके वाले और अपराधी प्रवृति वाले लोग है। जबकि भारत दुनिया की प्राचीनतम सभ्यता-संस्कृति, इतिहास और परम्पराओं का देश रहा है। वेद-पुराण और उपनिषदों में भारत को कई नामों से पुकारा गया है और इसकी सीमाओं और भौगोलिक स्थिति का भी विशद वर्णन किया है। यदि थोड़ी देर के लिये यह मान भी लिया जाय कि ‘इंडियन’ का यह अर्थ अमेरिका के मूल निवासियों (त्मक प्दकपंद – उत्तरी अमेरिका के आदिवासी) के संदर्भ में है तो भी यह सवाल उठता है कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि खुद के अनेक नामों वाला देश अंग्रेजों के दिये गये अपमानजनक नाम को संवैधानिक दर्जा देने को विवश था ? आजाद भारत को परिभाषित करने के लिये गुलामी के प्रतीक ‘इ्रंडिया’ नाम की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है कि जो आॅक्सफांर्ड डिक्शनरी इंडियन शब्द को अपमानजनक रूप से परिभाषित करता है वही पाकिस्तान को महिमामंडित तो करता ही है साथ ही काश्मीर को भी पाकिस्तान का हिस्सा बताती है। उक्त डिक्शनरी के अनुसार पाकिस्तान के ‘पी’ का मतलब पंजाब, ‘ए’ से अफगान फ्रंटियर, ‘के’ से काश्मीर और ‘इस्तान’ ;पेजंद) को मुस्लिम बहुल ब्लूचिस्तान के रूप में दर्शाया गया है। आॅक्सफोर्ड द्वारा पाकिस्तान को एक देश के रूप में परिभाषित करने और उसमें काश्मीर को शामिल करने के खिलाफ अटल बिहारी वाजपेयी और कुछ अन्य सांसदों ने 26 जून 1967 को भारतीय संसद में कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की थी और जानना चाहा था कि क्या ऐसा पाकिस्तान के दवाब में किया गया है ? तत्कालीन विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह ने इसे ‘‘हास्यास्पद’’ बताते हुए उत्तेजित सांसदों से इसे ‘‘नजरअंदाज’’ करने को कहा था। जाहिर है, एक तरफ इंडियन को असभ्य, पिछड़े, पुराने तौर-तरीके वाले और अपराधी प्रवृतिवाले लोग कहने और दूसरी तरफ काश्मीर को पाकिस्तान में शामिल दिखाने का आॅक्सफोर्ड का प्रपंच, जान-बूझकर किया गया शरारत ही प्रतीत होता है। जो भी हो, पर भारत सरकार को अब ‘इंडिया’ नाम के संवैधानिक दर्जे पर पुनर्विचार करना ही चाहिये क्योंकि यह अपने अर्थ और संदर्भ में न सिर्फ अपमानजनक है बल्कि विदेशी दासता का प्रतीक भी है।
दुनिया के कई देशों की तरह हमने भी अपने कई शहरों और राज्यों के नाम बदले हैं, तो देश के अंग्रेजी दासता के प्रतीक नाम को बदलने के विकल्प पर विचार तो किया ही जा सकता है। यहां यह भी गौरतलब है कि ईरान, इंडोनेशिया, सिंगापुर, श्रीलंका, म्यांमार, कंबोडिया, थाइलैंड, मेक्सिको, कोलंबिया, जिम्बाब्वे, फिलीपिंस, नीदरलैंड, जाम्बिया, जोर्डन, इथियोपिया, बोट्सवाना आदि देशों सहित पचास से ज्यादा देशों ने अपने नाम बदले हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि जिन करीब पाँच दर्जन देशों ने अपने नाम बदले हैं उनमें से अधिकांश के पूर्व नाम उनके पूर्व शासकों द्वारा रखे गये थे। जब इन देशों ने गुलामी के प्रतीक नामों से छुटकारा पा लिया तो अपने राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता? आप ब्रिटिश काल के कई कानूनों को बदल ही चुके हैं, देश की साख और गरिमा पर बट्टे की तरह चिपके इस विदेशी नाम को भी कृप्या बदल दिजीये प्रधानमंत्रीजी।
सादर,
विपिन बादल

(लेखक समाचार पत्रिका में सलाहकार संपादक हैं।)

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