निरपराध को फंसाना, प्रबंधन की कैसी मजबूरी?

प्रद्युमन हत्याकांड में सबसे पहले बस कंडक्टर अशोक को ही हरियाणा पुलिस ने न केवल पकड़ा बल्कि मीडिया के सामने उसकी ओर से इस अपराध को कबूल भी करवा दिया। हद है या नहीं? क्या थर्ड डिग्री टार्चर एक निर्दोष व्यक्ति को ीाी अपराध स्वीकार कर लेने पर मजबूर कर सकता है। यह इसी का एक प्रमाण है। अशोक ने न केवल अपराध कबूल किया बल्कि यह भी कहा कि उसकी मति मारी गयी थी।

कमलेश भारतीय

गुरूग्राम के रेयान स्कूल प्रबंधन ने बस कंडक्टर अशोक जैसे निर्दोष पर ही अपनी जान बचाने के लिए पुलिस का बंधन कस दिया? सीबीआई की रिपोटर्ट सामने आने के बाद यही सवाल सहज: स्वाभाविक मन में उठता है। प्रद्युमन हत्याकांड में सबसे पहले बस कंडक्टर अशोक को ही हरियाणा पुलिस ने न केवल पकड़ा बल्कि मीडिया के सामने उसकी ओर से इस अपराध को कबूल भी करवा दिया। हद है या नहीं? क्या थर्ड डिग्री टार्चर एक निर्दोष व्यक्ति को ीाी अपराध स्वीकार कर लेने पर मजबूर कर सकता है। यह इसी का एक प्रमाण है। अशोक ने न केवल अपराध कबूल किया बल्कि यह भी कहा कि उसकी मति मारी गयी थी। मति तो थर्ड डिग्री टार्चर ने मार दी।
अशोक के परिजन उससे जेल में मिले और उन्होंने तब भी मुलाकात के बाद आकर मीडिया ामें शोर मचाया कि अशोक पूरी तरह बेकसूर है और अशोक ने वकील के माध्यम से इस अपराध में किसी प्रकार हााि होने से इंकार ीाी कर दिया। हरियाणा पुलिस तो अशोक को जेल में डालकर खुश हो रही थी कि केस कितनी जल्दी हल कर दिया लेकिन अब गुरूग्राम के पुलिस कमिश्नर कह रहे हैं कि अभी तो हमारी जांच प्रारंभिक दौर में थी। यदि जांच प्रारंभिक दौर में थी तो अशोक को गुनहगार मान कर पिछले दो माह से जेल में उाल कर किस अपराधा की सजा दी जा रही थी? अशोक के वे दो नारकीय माह क्या पुलिस उसे लौटा पाएगी? क्याा अशोक के जख्मों पर मरहम लगाया जा सकेगा? क्या उसके मान-सम्मान को लौटा सकेगी हरियाणा पुलिस? इसलिए अशोक के परिवार ने हरियाणा पुलिस पर मानहानि का केस करने का फैसला किया है। यह हरियाणा पुलिस को एक सबक सिखाने जैसाा काम होगा।
सीबीआई ने हरियाणा पुलिस की थ्योरी को गलत मानते हुए फिर से सीसीटीवी फुटेज खंगाले और पद्युमन से पहले फ्लश जाने वाले सात छात्रों को चिन्हित किया, जिनमें से 11वीं का एक छात्र आखिरकार काबू किया गया। उसने भी अपना दोष कबूल कर लिया। वह पढ़ाई में अच्छा नहीं था। इसलिए अपने सितम्बर टेस्ट को किसी भी हालत में ठान रखी थी और वह स्कूल में होने वाली अभिभावक शिक्षक यानी पीटीएम भी नहीं होने देना चाहता था। संदिग्ध सात छात्रों में उसी का रिकार्ड खराब निकला। यहां तक कि वह टीचर्स का गाली भी दे देता था। इस रह वह छात्र काबू किया गया और उसने चाकू भी फ्लश में बहा दिया था, जिसे बरामद कर लिया गया है। अभी तक निर्दोष अशोक को पुलिस ने छोड़ा नीं है पर उसके छूटने की जल्द ही आश परिजनों को बंध गयी है।
क्या एक निर्दोष की हत्या जैसे घिनौने कांड में फंसनाने का स्कूल प्रबंधन का भी कोई योगदान है? ताकि किसी तरह स्कूल पर आई आपदा को टाला जा सके? यदि ऐसा है तो स्कूल प्रबंधन में शामिल उस व्यक्ति को एक निरपराध के विरूद्ध साजिश रचने के लिए गिरफ्तार किया जाना चाहिए। स्कूल प्रबंधन ने तो प्रिंसीपल को भी दूसरी ब्रांच में प्रिंसीपल लगा दिया। क्या स्कूल प्रबंधन शक के दायरे में नहीं है? प्रिंसीपल तक केा नहीं हटाया गया। क्या प्रिंसीपल ने हही निरपराध अशोक केा फंसाया या लालच देकर स्कूल को बचाने की दुहाई दी? क्या प्रिंसीपल से पूछताछ नहीं होनी चाहिए? यह तो शुक्र है कि एक निरपराध सीबीआई की जांच के चलते बच गया। नहीं तो हरियाणा पुलिस का बस चलता तो अशोक जेल की सीखचों के पीछे ही जीवन गुजारता। सच, कानून की देवी बंधी पट्टी में भी सच देख लेती है।

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