कब तक रहेंगे राहुल – जिग्नेश साथ साथ

 

अखिलेश अखिल

राहुल गाँधी और जिग्नेश मेवानी गुजरात चुनाव तक तो साथ थे लेकिन अब कितनी दूर तक साथ रहेंगे कहना मुश्किल है। दोनों दो धारा को रिप्रेजेन्ट कर रहे हैं। राहुल की राजनीति कांग्रेस की विशाल विरासत और देश समाज के प्रति कांग्रेस की समझ को आगे ले जाने की है तो जिग्नेश की नयी राजनीती दलित वंचितों के हक़ हुकूक की लड़ाई को आगे बढ़ाने की है। लेकिन यह भी सच है कि दोनों की राजनीति बीजेपी की राजनीति से असहमत है और बीजेपी को सत्ता से हटाने की भी है। कांग्रेस चुकी एक बड़ी पार्टी है और लम्बे समय तक सत्ता और विपक्ष की राजनीती करती रही है इसलिए सत्ता का संघर्ष उसका मूल धर्म है। जो हमेशा जारी रहेगा। लेकिन जिग्नेश की राजनीति कहाँ जा कर ख़त्म होगी और खान जाकर किसके साथ एकाकार हो जायेगी अभी इसपर टिप्पणी करना जल्दबाजी हो सकती है। चुकी राजनीती में सब कुछ जायज है और राजनीति से जुड़े लोग अक्सर अपना पैतरा बदल लेते है इसलिए जिग्नेश की राजनीति को समझने की जरुरत है।
जिग्नेश ने 9 जनवरी को दिल्ली में युवा हुंकार रैली का आयोजन किया है। उनके अनुसार ये सामाजिक न्याय के लिए होगी। उन्होंने कहा कि ”इस रैली के बाद मैं मनुस्मृति और संविधान लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय जाऊंगा और उनसे पूछूंगा कि देश किससे चलेगा”। आपको बता दे कि भीमा कोरेगांव हिंसा में विधायक जिग्नेश मेवाणी पर सेक्शन 153(A), 505, 117 के तहत पुणे में एफआईआर दर्ज हुई है और उसके बाद से उन्हें फरार बताया जा रहा है। लेकिन इसी फरारी में वे दिल्ली राजधानी में प्रेसवार्ता भी करते दीखते हैं और मीडिया से सवाल जबाब करते दीखते हैं। उनकी फरारी की बात बहुत कुछ समझ से परे है। अब देखना है कि हुंकार रैली में राहुल गांधी की भूमिका क्या रहती है, क्योकि काँग्रेस का बहुत कुछ भविष्य अब जिग्नेश द्वारा किये जाने वाले कार्यो पर ही निर्भर रहेगा। राहुल गांधी ने जनेऊधारी बन कर सॉफ्ट हिंदुत्व का खेल खेला और जिगनेश ने दलितों को संगठित करना शुरू किया।
जिग्नेश की राजनीति दलित आंदोलन से शुरू हुयी है। ऊना की घटना के बाद जिग्नेश की तस्वीर सामने आयी है। ऊना की घटना के बाद जिग्नेश युवा नेता बने हैं। गुजरात चुनाव लड़े और कांग्रेस के समर्थन से विधायक भी बने। अभी तक जिग्नेश कांग्रेस के साथ बने तो दीखते हैं लेकिन कल क्या होगा कौन जाने ! जिग्नेश फिर से भीमा कोरेगाव घटना के बाद चमक रहे हैं। दलितों की हालत का बखान करते जिग्नेश आगे बढ़ रहे हैं। दलित प्रताड़ना की कहानी अपने हर संवाद में उठा रहे हैं और संविधान के तहत देश को चलाने की बातें भी कह रहे हैं। ऐसे में एक सवाल और भी उठता है कि आजाद भारत में दलितों की हालत सबसे ज्यादा किस काल में ख़राब हुयी ?दलित नेताओं के साथ किसके व्यवहार ठीक नहीं रहे। बाबा भीम राव आंबेडकर की सलाहों को किसने नहीं माना ? दलितों के वोट का सबसे ज्यादा किसने उपयोग -दुरूपयोग किया ? और जगजीवन राम से लेकर कई अन्य दलित नेताओं को किसने पीएम नहीं बनने दिया ? बहुत सारे सवाल खड़ा होंगे जब जिग्नेश दलित राजनीति के पैरोकार बनकर हुंकार भरेंगे। कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी को इसका जबाब देना पड़ सकता है।
जब से राहुल गाँधी सॉफ्ट हिन्दुत्व की राजनीति पर उतरे हैं तब से देश की राजनीतिक बहस भी कुछ अलग तरह की होने लगी है। हो सकता है कि राहुल की यह सॉफ्ट हिन्दुवाद राजनीती से प्रेरित हो लेकिन राहुल का यह चेहरा जिग्नेश को कितना भाती है इस पर नजर रखने की जरुरत होगी। यह भी संभव है कि बहुत की बातों को भुलाकर वर्तमान और भविष्य की राजनीति को आगे बढ़ाने में अगर राहुल और जिग्नेश समेत देश के तमाम युवा नेता आगे बढ़ते हैं तो ना सिर्फ भारत का जनमानस बदलेगा वल्कि देश की तक़दीर भी बदलती नजर आएगी।

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