देशभक्ति की भावना सिर्फ दो दिन तक सीमित क्यों ?

 
आज देश गणतंत्र दिवस मना रहा है । स्कूलों,  कालेजों में छुट्टी और कार्यालयों के कर्मियों की मौज । गर्म रजाई में दुबके बैठे दिल्ली के राजपथ पर देख रहें हैं देश की बहुरंगी संस्कृति की झांकियां । बलिदानियों के परिवारजनों को सम्मानित होते देखना । बहादुर बच्चों की मुस्कान । देश के विभिन्न क्षेत्र में दिए योगदान पर पुरस्कार । तीनों सेनाओं के जांबाजों के हैरतअंगेज करतब।
हर साल ऐसा होता हैंं और हम हिम्मत,  प्रेरणा लेते हैं इनसे प्रदेश दूसरे दिन ही भूल जाते हैं । फिर याद आता हैंंंं सब कुछ स्वतंत्रता दिवस को । यानी देशभक्ति सिर्फ दो दिन की और पद्मावती जैसे हुडदंग रोज का मामला । बच्चों की बस प्रदेश पथराव से क्या संदेश जाता है ? सिनेमाघरों प्रदेश हुडदंग करके क्या मिल रहा है ? जनता कर्फ्यू का आह्वान किसलिए ?फूल भेंट कर फिल्म न देखने का आग्रह किसलिए ?
राष्ट्रपति कोविद कहते हैं कि बहुरंगी भारत के नाम अपने संबोधन में कहते हैं कि किसी की गरिमा को ठेस पहुंचाए बिना असहमत होना सीखिए । मनभेद नहीं होना चाहिए,  मतभेद हो तो हो । विचार विमर्श के लिए गुंजाइश बची रहनी चाहिए ।
फिर कभी मिलें तो शर्मिंदा न हों । शायद ने कहा है । पर पद्मावत,  गुरमेहर कौर , उडता पंजाब,  जेएनयू , हैदराबाद,  जम्मू कश्मीर में कितने ऐसे मामले सामने आए किस्त शर्मिंदा होना पडा । हमारे बडे नेताओं के बोल कुबोल से शर्मसार होना पडा । कोई ऐसा उदाहरण भी तो आए , जिससे बडे नेताओं का बड़प्पन सामना आए ।
हर शहर में प्रशासन द्वारा अलग अलग क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाले लोगों कोई प्रशंसा पत्र दिए जाते हैं लेकिन इनके लिए प्रार्थना पत्र देकर बताना पडता हैं कि मैंने यह कार्य किया । जबकि समाचारपत्रों में हर रोज किसी ने किसी अच्छे काम करने वाले कार्रवाई उल्लेख या फीचर आता रहता हैं । उनको मैरिट के आधार परेशान चुना जाना चाहिए । आवेदन से अलग कार्यान्वयन हो कोई योजना ।
आज देशभक्ति के गीत भी बजेंगे और नारे भी । पर दूसरे दिन से सारा दृश्य बदल जाता है । बस , याद रखिए :
हम लाएं हैं तूफान से कश्ती निकाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के ,,,,,
कमलेश भारतीय

Leave a Reply

Your email address will not be published.