बड़े किडनी स्टोन के प्रबंधन में रेट्रोग्रेड इंट्रारीनल रीनल सर्जरी कारगर

नई दिल्ली। फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग में हाल ही में एक क्लिनिकल अध्ययन किया गया, जिसमें अत्याधुनिक रेट्रोग्रेड इंट्रारीनल सर्जरी प्रोसीजर (आरआईआरएस) के इस्तेमाल से किडनी स्टोन के प्रबंधन का अध्ययन किया गया। परिणाम – 274 रोगियों से मिले साक्ष्यों के आधार पर पता चला है कि बड़े स्टोन्स जैसे आंशिक और पूर्ण स्टैगहॉर्न स्टोन्स के प्रबंधन में न्यूनतम जटिलता और रुग्णता के साथआरआईआरएस संभव है। यह अध्ययन डॉ राजिंदर यादव, डायरेक्टर, यूरोलॉजी, फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग के नेतृत्व में चिकित्सकों के एक दल द्वारा किया गया था।

यह 2 से 4 सेंटीमीटर आकार वाले किडनी स्टोन के प्रबंधन में आरआईआरएस की प्रभावकारिता पर किया जाने वाला अपनी तरह का पहला वैश्विक अध्ययन है। यह एकमात्र सर्वेक्षण भी है जिसने स्टैगहॉर्न और मल्टीस्टोन्स के मामले में आरआईआरएस की उपयोगिता का अध्ययन किया है। अध्ययन में भाग लेने वाले 98% से अधिक मरीज़ो ने पीसीएनएल के बजाए आरआईआरएस का विकल्प चुना। इसे अब न्यूनतम रुग्णता और तेजी से स्वास्थ्य लाभ के साथ सुरक्षित, प्रभावी, रिप्रोड्यूसिबले माना जाता है। बड़े स्टोन्स जैसे आंशिक और पूर्ण स्टैगहॉर्न स्टोन्स के प्रबंधन में न्यूनतम जटिलता और रुग्णता के साथआरआईआरएस संभव है। अध्ययन <3% रोगियों में आवश्यक अतिरिक्त प्रक्रियाओं के साथ लार्ज स्टोन्स (आकार> 2 सेमी) में इसके प्रभाव को दिखाता है। आरआईआरएस के माध्यम से ऑपरेशन का औसत समय 85 मिनट था। फोर्टिस शालीमार बाग के इस अध्ययन में आरआईआरएस से गुजरने वाले मरीज़ों के रहने का औसत समय 28 घंटे था। आरआईआरएस के 3 दिनों के भीतर सभी रोगियों नेअपना नियमित कामकाजी जीवन के लिए फिर से शुरु किया।

अध्ययन में किडनी और अपर यूरेटेरिक स्टोन्स वाले 274 मरीज़ों को शामिल किया गया। मरीज़ों में 185 पुरुष और 89 महिलाएं थीं। 83 मरीजों में एक स्टोन था और 191 मरीजों में मल्टीस्टोन थे। ऑपरेशन के बाद एक्स-रे केयूबी (किडनी यूरिनरी ब्लैडर रीजन) / यूएसजी (अल्ट्रासाउंड) केयूबी की जाँच की गई और मरीज़ों का फोलोअप आउटपेशेंट विभाग और टेलीफोन की सहायता से किया गया। 2 मिमी से कम आकार के टुकड़ों को किडनी से सफलतापूर्वक बाहर निकाला गया।

डॉ राजिंदर यादव ने अध्ययन के बारे में बात करते हुए कहा, “पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण पूरे विश्व में यूरिनरी स्टोन की बिमारी बढ़ रही है। इसके अलावा स्वास्थ्य सेवाओं और जांच​​उपकरणों में सुधार के कारण स्क्रीनिंग के दौरान इस बिमारी का पता चलने की दर बढ़ी है। तकनीक में प्रगति से किडनी स्टोन का प्रबंधन बेहतर हुआ है, जिसके कारण अब इनवेसिव प्रक्रियाएं बहुत कम होती हैं। बड़े स्टोन्स जैसे आंशिक और पूर्ण स्टैगहॉर्न स्टोन्स के प्रबंधन में न्यूनतम जटिलता और रुग्णता के साथआरआईआरएस संभव है। पहले कई अध्ययन किए गए हैं जहां आरआईआरएस को पर्क्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी के बराबर पाया गया है। यह 2 सेंटीमीटर आकार वाले स्टोन्स के संबंध में हैं। 2 से 4 सेंटीमीटर के स्टोन्स पर आरआईआरएस के प्रभाव को लेकर बहुत कम अध्ययन किए गए हैं। जहाँ तक हमारी समझ है स्टैग हॉर्न और मल्टीस्टोन्स को हटाने के लिए आरआईआरएस के इस्तेमाल पर कोई अध्ययन नहीं किया गया है।”

अध्ययन के निष्कर्ष:

• 83 मरीज़ों में सिंगल स्टोन था, 96मरीज़ो में मल्टीस्टोन्स थे, 54 मरीज़ों में एक आंशिक स्टैगहॉर्न था और 16 मरीज़ों में पूर्ण स्टैगहॉर्न स्टोन था

• 68 मरीज़ों में 1 सेंटीमीटर से कम आकार का स्टोन था, 99 मरीज़ों में 1 से 2 सेंटीमीटर के बीच का स्टोन और 107 मरीज़ों में स्टोन का आकार 2 सेंटीमीटर से अधिक था

• 87 मरीज़ों में एकतरफा किडनी स्टोन था, 85 मरीज़ों में दुतरफा किडनी स्टोन था, 77 रोगियों में किडनी के साथ मूत्रवाहिनी का स्टोन था और 25 रोगियों में ऊपरी मूत्रवाहिनी का स्टोन था

•274 में से 25 मरीज़ों में सेप्टीसीमिया या किडनी की कमजोरी के मद्देनजर पहले स्टेंट लगाया गया

o पहले से स्टेंट लगाए गए 25 मरीज़ों की स्टेंट लगाने के 1 सप्ताह के बाद स्थिति स्थिर होने पर आरआईआईएस किया गया

• प्रजेंटेशन के समय 47 मरीज़ों में किडनी की ख़राबी थी ,इन सभी मरीज़ों में सुधार हुआ और 36 मरीज़ों में सामान्य स्थिति लौट आई

• 4 मरीज़ों में डिलटेशन (गाइड वायर पर यूरेटरोस्कोप को आसानी से पास करना) असफल होने पर स्टेंट डाला गया

• 234 रोगियों को किसी भी तरह के डिलटेशन की आवश्यकता नहीं थी

• 25 मरीज़ों में मूत्रवाहिनी एक ही जगह से सिकुड़ी, 15 मरीज़ों में कई स्थानों पर सिकुड़न हुई जिसे बलून डिलटेशन की आवश्यकता होती है

• ऑपरेशन के बाद 14 मरीज़ों को मूत्र वाहिनी का संक्रमण हुआ और 7 रोगियों में हेमट्यूरिया था जिसका पुराने तरीके से प्रबंध कर लिया गया

• 274 रोगियों में से 38 (14%) में स्टेंट से संबंधित लक्षण (पेशाब में जलन या बार बार पेशाब करने की इच्छा होने पर फ्लेंक में दर्द) था जिसे दवाओं के काबू किया गया

• 274 मरीज़ों में से, 268 मरीज़ों (96%) को पहली ही बार में पूरी तरह स्टोन्स से छुटकारा मिल गया

• 6 मरीजों में स्टोन के बचे रह गए जिनमें से 3 मरीज़ों को यूआरएस, 2 मरीज़ों को आरआईआरएस और 1 मरीज़ को ईएसडब्ल्यू (एक्सट्राकोरपोरियल शॉक वेव लिथोट्रिप्सी) से गुजरना पड़ा, इस सभी सहायक प्रक्रियाओं के बाद सभी 6 मरीजों को स्टोन से छुटकारा मिल गया

डॉ राजिंदर यादव ने आगे कहा, “हमारे अध्ययन ने बड़े किडनी स्टोन से निपटने में आरआईआरएस के प्रभाव को दिखाया। हमारे अध्ययन में आरआईआरएस को सभी प्रकार से स्टोन के हटाने की प्रक्रिया के लिए पहली पसंद के तौर पर चुना गया केवल उन मामलों में दूसरी प्रक्रिया अपनाई गई जो स्टोन हाइड्रोनफ्रोसिस और किडनी की ख़राबी से जुड़े थे या मरीज़ ने पीसीएनएल विकल्प चुना था जो बहुल कम मामलों में हुआ।”

फोर्टिस अस्पताल शालीमार बाग के फैसिलिटी डायरेक्टर, श्री महिपाल सिंह भनोट ने कहा, “हम वैश्विक क्लिनिकल प्रोटोकॉल के अनुसार मेहनल से काम करते हैं और सर्वोत्तम संभव परिणामों के लिए अत्याधुनिक तकनीक का लाभ उठाते हैं। तकनीक में तेजी से प्रगति के साथ, एंडोस्कोप के छोटा होने, फाइबर-ऑप्टिक तकनीक में सुधार, होल्मियम की उपलब्धता: वाईएजी लेज़र और अन्य सहायक उपकरण के साथ आरआईआरएस (रेट्रोग्रेड इंट्रारीनल सर्जरी) किडनी और मूत्रवाहिनी के स्टोन के प्रबंधन के लिए बेहतर है जो जटिलता की दर कम होने के साथ न्यूनतम रुग्णता और ज़ल्दी स्वास्थ्य लाभ से जुडा है।”

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