सुनील दत्त ने एक फिल्म दहेज को लेकर बनाई थी । जिसका नाम था : यह आग कब बुझेगी ? अब कहने को जी चाहता है कि देश में दंगों की आग कब बुझेगी ? इन दिनों तो महाराष्ट्र के पुणे से दंगों की भड़की आग पूरे महाराष्ट्र में चुकी है ।
जैसे जंगल की आग को दावानल कहते हैं , वैसे ही राजनीति से भड़की आग को दंगा कहते हैं । भीमा कोरेगांव युद्ध की जयंती के अवसर पर यह आग शुरू हुई और पूरे महाराष्ट्र को अपनी लपेट में ले लिया । अब बाबा अम्बेडकर के पौत्र प्रकाश अम्बेडकर ने महाराष्ट्र बंद का ही आह्वान कर दिया हैंं ।
कभी यूपी के सहारनपुर में यह आग भडकती हैंं तो कभी कैराना में । सच , अपने कवि मित्र डाॅ नरेंद्र मोहन की लम्बी कविता का शीर्षक बडा याद आता हैंं :
एक अग्निकांड जगहें बदलता ,,,,
यह सारे देश में फैलती हैंं और जगहें व शहर बदल जाते हैं । क्यों ? सच ही कहते हैं शायर राहत इंदौरी :
इस मुल्क की मिट्टी में
सबका खून मिला है
यह हिन्दुस्तान किसी के
बाप का नहीं है ,,,,,
काश , इस बात को समझ पाएं , अहसास कर पाएं । कभी यह आग हरियाणा में फैलती है । फिर वह चाहे मिर्चपुर गांव हो या फिर रोहतक या पंचकूला । राज सरकार चाहे किसी की भी हो , आग है कि नहीं बुझती । बुझने का नाम नहीं लेती। इसलिए पूछ रहा हूं :
यह आग कब बुझेगी ?
मिर्चपुर तो कभी उकलाना तो कभी डाबडा , यहां और तरह आग लगती है । यहां जातिवाद सिर उठाता है या किसी गुडिया का दुख सामने आता है । आखिर यहां आग कैसे बुझेगी ? कब बुझेगी ?
कोई न कोई नेता इस आगे कोई हवा दे देता है । बदले की राजनीति में भोली जनता पिसती और कभी कभी इसलिए आग में स्वाहा होती रहती है। इसीलिए राजनीतिक रोटियां सेंकना कहा जाता है और लाशों का व्यापार करने वाले भी ।
काश , हर इंसान के दर्द को समझें और हिंदुस्तान को अपना तो फिर बुझ जायेगी आग , बस , यही है अपनी दुआ । अपना सपना ।
– कमलेश भारतीय