2016 में आत्महत्या : हर तीसरी महिला एक भारतीय 

नई दिल्ली।  भारतीय महिलाओं के लिए एक ग्लोबल सर्वे में निराश करनेवाली खबर आई है। 2016 में दुनियाभर की जितनी महिलाओं ने आत्महत्या की, उनमें से हर तीसरी महिला एक भारतीय है। हालांकि, 2016 में विश्व जनसंख्या में 18% भारतीय हैं। लैंसट पब्लिक हेल्थ जरनल में प्रकाशित खबर के अनुसार 2016 में आत्महत्या करनेवाली महिलाओं में 37% भारतीय थीं और पुरुषों में यह आंकड़ा 24.3 फीसदी का रहा। ताजा अध्ययन में कहा गया है कि 1990 से 2016 के बीच देश में आत्महत्या के चलते होने वाली मौतों में 40 फीसदी की वृद्धि हुई है. जहां 1990 में यह आंकड़ा 164,400 था, वहीं 2016 में यह बढ़ कर 230,314 तक पहुंच गया. इसमें कहा गया है कि ऐसी तमाम मौतों में से 63 फीसदी महिलाएं 15 से 39 वर्ष की उम्र की हैं. रिपोर्ट में देश में ऐसे मामलों का राज्यवार जिक्र करते हुए कहा गया है कि कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल औऱ त्रिपुरा में महिलाओं और पुरुषों की आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा है. छत्तीसगढ़ व केरल में पुरुषों की आत्महत्या का आंकड़ा महिलाओं के मुकाबले ज्यादा है.
वर्ष 2016 में भारत में आत्महत्या से होने वाली मौतों की दर प्रति एक लाख महिलाओं पर 15 थी जो वैश्विक औसत सात प्रति लाख का दोगुना है. पुरुषों के मामले में भी यह दर 15 के वैश्विक औसत के मुकाबले 21 है. रिपोर्ट में कहा गया है कि विवाह भी महिलाओं के जीवन की सुरक्षा की गारंटी नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा हालात में ज्यादातर राज्य संयुक्त राष्ट्र की ओर से आत्महत्या की दर कम करने के लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते. संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक वर्ष 2015 के आत्महत्या के आंकड़ों को एक-तिहाई कम करने का लक्ष्य रखा है.
उक्त अध्ययन में शामिल राखी दांडोना, जो पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन आफ इंडिया में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं, कहती हैं, “भारत में विवाहित महिलाओं में आत्महत्या की प्रवृत्ति ज्यादा है. इसकी कई वजहें हैं. कम उम्र में होने वाले विवाह, कम उम्र में मातृत्व, कमतर सामाजिक दर्जा, घरेलू हिंसा और आर्थिक निर्भरता की वजह से विवाह भी महिलाओं के लिए आत्महत्या के मामले में रक्षा कवच नहीं बन सका है.” वह कहती हैं कि महिलाओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी भी लगातार बढ़ती आत्महत्याओं की एक प्रमुख वजह हो सकती है. राखी दांडोना कहती हैं, “भारत के विभिन्न राज्यों में युवा तबका जिस तेजी से अपनी जान ले रहा है उससे सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट गंभीर हो रहा है.”
अध्ययन में कहा गया है कि बीते 25 वर्षों के दौरान 70 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों में भी आत्महत्या की घटनाएं बढ़ी हैं. रिपोर्ट में इसकी कोई साफ वजह नहीं बताई गई है. लेकिन अध्ययन टीम में शामिल शोधकर्ताओं का कहना है कि सामाजिक रूप से कट जाने, अवसाद, कामकाज नहीं कर पाने की मजबूरी और परिवार पर बोझ बन जाने का अहसास ही बुजुर्गों को आत्महत्या की ओर प्रेरित कर रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक आत्महत्या के मामले में पहले सात राज्यों में पश्चिम बंगाल भी शुमार है. उसका स्थान कर्नाटक, त्रिपुरा और तमिलनाडु से नीचे लेकिन तेलंगाना और केरल से ऊपर है. राखी दांडोना का कहना है कि अध्ययन के बावजूद अब तक यह बात साफ नहीं है कि आखिर विभिन्न राज्यों में आत्महत्या के मामलो में इतना भारी अंतर क्यों है. इसके लिए कुछ सामाजिक व सांस्कृतिक पहलुओं का गहन अध्ययन जरूरी है. इससे इस सवाल का जवाब मिल सकता है कि किसी राज्य में यह दर ज्यादा तो कहीं कम क्यों है.
आत्महत्या के ज्यादा मामले युवा तबके में हो रहे हैं. यहां 2016 में 15 से 39 वर्ष की उम्र के बीच के 145,567 पुरुषों व महिलाओं ने आत्महत्या कर ली थी. यह देश में मौतों की सबसे बड़ी वजह है. मौतों की दूसरी सबसे बड़ी वजह सड़क हादसे रहे. वर्ष 2016 में इससे 115,714 लोगों की मौत हो गई. जबकि तीसरे स्थान पर दिल की बीमारी से 85,733 लोग मारे गए. राखी दांडोना बताती हैं, वर्ष 2017 तक देश में आत्महत्या करना एक अपराध था. इसी वजह से ऐसे कई मामलों को स्थानीय स्तर पर ही दबा दिया जाता था. नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा दौर में युवाओं को विभिन्न मोर्चों पर भारी चुनौतियों और प्रतिद्वंद्विता का सामना करना पड़ रहा है. जिस राज्य में आत्महत्या की दर ज्यादा है वहां साफ है कि युवा निराश होकर आत्महत्या का आसान रास्ता चुन रहे हैं. इस सामाजिक व सांस्कृतिक वजहों को पता लगा कर उनको दूर करने की दिशा में ठोस पहल जरूरी है ताकि युवा लोगों की जिंदगी बचाई जा सके.
समाजशास्त्री प्रोफेसर विश्वजीत दासगुप्ता कहते हैं, “यह पहेली समझ में नहीं आ रही है कि आर्थिक व सामाजिक रूप से उन्नत कई राज्यो में भी युवाओं के आत्महत्या की दर ज्यादा क्यों है. यह हो सकता है कि ऐसे राज्यों में युवाओं को अपने जीवन का लक्ष्य हासिल करने में दूसरे राज्यों के मुकाबले ज्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा हो.” उनका कहना है कि खासकर प्रेम संबंधों और प्रेम विवाह के मामले में कई सामाजिक और पारंपरिक वर्जनाएं भी युवाओं को आत्महत्या के लिए प्रेरित कर रही हैं. दासगुप्ता कहते हैं कि आत्महत्या की बढ़ती घटनाएं राष्ट्रीय आपातकाल की तरह हैं. इन पर तेजी से अंकुश लगाने के लिए एक बहुआयामी योजना जरूरी है. सरकारी नीतियों में संशोधन के जरिए इस समस्या पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है. स्वास्थ्य व सामाजिक विशेषज्ञ इस मामले में पड़ोसी चीन व श्रीलंका का हवाला देते हैं जहां सरकारी नीतियो में संशोधन के जरिए आत्महत्या की दर को काफी हद तक घटाने में कामयाबी मिली है. इंडियन कौंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आसीएमआर) के महानिदेशक बलराम भार्गव की राय है, “विभिन्न राज्यों में आत्महत्या की दरों में दस गुने से ज्यादा अंतर को ध्यान में रखते हुए इसकी वजहों के गहन अध्ययन की जरूरत है. उसके आधार पर कम उम्र में ही आत्महत्या करने की इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के ठोस उपाय किए जाने चाहिए.”
महिलाओं के आत्महत्या करने के मुख्य कारण हैं कम उम्र में शादी, कम उम्र में मां बन जाना, अरेंज मैरिज, पति और सास द्वारा प्रताड़ित करना और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न होना।
इन सभी कारणों से महिलाएं मानसिक रूप से कमजोर हो जाती हैं। इस तनाव से उभरने के लिए उनके पास न तो कोई साधन होता है और न ही कोई उनकी मदद करता है। रिपोर्ट के अनुसार साल 1990 के बाद से ये आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं। 1990 से लेकर 2016 तक इसमें 40 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। 2016 में भारत में अनुमानित तौर पर 2,30,314 लोगों ने आत्महत्या की थी। कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में आत्महत्या की दर सबसे अधिक है। वहीं पुरुषों के मामले में केरल और छत्तीसगढ़ सबसे आगे हैं। भारत में प्रति 1 लाख में से 15 महिलाएं आत्महत्या कर रही हैं। ये आंकड़ा 1990 में प्रति लाख पर 7 था। तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितनी तेजी से ये घटनाएं बढ़ रही हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published.