निर्मलेंदु,
कार्यकारी संपादक, “राष्ट्रीय उजाला”
मुंबई के आईटीसी मौर्य होटल में ऋषि कपूर ने फिर लिया पत्रकारों से पंगा। पत्रकारों को भला बुरा कहा। बुदबुदाते हुए कहा, मुफ्त की दारू पीने आ गए। पत्रकारों ने सुना, लेकिन सभी पत्रकारों ने विरोध नहीं किया।
मेरा सविनय निवेदन है पत्रकारों से, पत्रकारों, आप ऋषि कपूर की पार्टी में जाते ही क्यों हैं? केवल और केवल बेइज्जत होने के लिए? याद रखें, इन्हें हमारी जरूरत है, हमें इनकी जरूरत नहीं है। बिल्कुल नहीं है। ये केवल ऐक्टिंग करना जानते हैं, इन्हें शिष्टाचार और लोगों से किस तरह से पेश आना चाहिए, वह शायद इन्हें बचपन में सिखाया नहीं गया है। यही आश्चर्य की बात है कि राज कपूर जी से इन तथाकथित ऐक्टरों ने कुछ भी नहीं सीखा है। संस्कार, आचार-विचार, दूसरों का सम्मान करना, कुछ भी नहीं सीखा। राज कपूर की एक फिल्म थी धरम-करम, जिसमें उन्होंने एक गाना लिखा था- ‘एक दिन मिट जाएंगे माटी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल…’ उन्होंने पापा के इस गाने से भी सबक नहीं लिया। क्या आपको याद नहीं है कि ऋषि कपूर ने इससे पहले भी दो बार इसी होटल में पत्रकारों के साथ बदसलूकी की है। इन्हें बॉयकॉट कर दें। इनकी बातें न छापें।
एक बार मुंबई में रहते वक्त सुभाष घई ने हिंदी पत्रकारों को ताल की पार्टी में नहीं बुलाया था। हमने वहां के पत्रकारों को समझाया और उनकी फिल्म ताल का बॉयकॉट करवा दिया। आखिरकार सुभाष जी को हम सभी पत्रकारों को बुलाकर माफी मांगनी पड़ी थी। यह एक दृष्टांत है। आप सब एकजुट होकर इसका जमकर विरोध करें। इन्हें इनकी गल्तियों के बारे में बताएं। इन्हें सामाजिक रूप से बहिष्कार करें।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक बदमिजाज व्यक्ति अपना मूल स्वभाव कभी नहीं छोड़ सकता, जैसे शेर कभी हिंसा नहीं छोड़ सकता। पत्रकारों को गलत को गलत, और सही को सही कहने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। डरना नहीं चाहिए। हम सभी यह जानते हैं कि कोई व्यक्ति अपने गुणों से ही ऊपर उठता है, ऊंचे स्थान पर बैठने से नहीं। इसलिए न घबराएं। संयम, धैर्य और उचित व सम्माननीय शब्दों के साथ विरोध करते रहना चाहिए।