संस्कृत ही बचाएगा संस्कार

सुशील देव

नई दिल्ली। द्वारका के एमआरवी स्कूल में संस्कृत कुटुंब सम्मेलन था। मुझे भी वहां जाने का मौका मिला। मैंने देखा कि छोटे-छोटे बच्चे, उनके माता-पिता, अभिवावक और शिक्षक आपस में संस्कृत में ही बातें कर रहे थे। भोजन करते समय पंक्तिबद्ध होकर छोटे-बड़े का लिहाज भी कर रहे थे। जमींन पर बैठकर खाना शिष्टाचार और सात्विकता का बोध करा रहा था। करीब 200 परिवारों से आए लोगों में कोई डाक्टर, इंजीनियर, वकील, छात्र-शिक्षक तो कोई सरकारी या गैर सरकारी नौकरी पेशा वाले थे। एक दूसरे प्रति परस्पर प्रेम, स्नेह और शिष्टता का भाव दिख रहा था। यह सब संस्कृत भाषा को मानने वाले या जानने वालों के बीच ही संभव है।
सम्मेलन के परिचय एवं अनौपचारिक सत्र में बहस, संस्कृत में कार्य कैसे करें और विभिन्न प्रतिभा प्रदर्शन के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। वहीं कुटुंब प्रबोधन के तहत परिवारों के लुप्त होते संस्कारों पर चर्चा हुई कि भागदौड़ या बदलते मशीनी जिंदगी में बच्चों का चरित्र निर्माण कैसे हों। सम्मेलन में आए लोगों ने बताया कि संस्कृत जन भाषा बने। भारत और सउदी अरब के अलावा अभी 32 देशों में संस्कृत भाषा के कार्य हो रहे हैं। उनके अभियान से करीब एक करोड़ लोग भारत में संस्कृत बोल रहे हैं और संस्कृत में व्यवहार कर रहे हैं। दिल्ली के संस्कृत भारती संस्थान द्वारा आयाोजित भाषा अभ्यास के माध्यम से ऐसे कार्यक्रम लगातार किए जा रहे हैं।
संस्कृत हमारी प्राचीन भाषा है। इसे हम वेदों की भाषा या देवों की भाषा के रूप में भी जानते हैं। कोई भी भाषा जब हम प्रयोग करते हैं तो उसकी संस्कृति भी आती है। भारत में हर भाषा का कहीं न कहीं विरोध है परंतु दुनिया में संस्कृत भाषा का कहीं विरोध नहीं। यह देश दुनिया को एकसूत्र में बांधने की भी भाषा है। संस्कृत भारती संस्थान के प्रांत मंत्री कौशल किशोर, विभाग संयोजक आशुतोष एवं प्रांत गण सदस्या विशाखा गुप्ता कहती हैं कि उसी देवतुल्य भाषा को आम जन मानस नित्य व्यवहार में बोलें और उनके अनुरूप चरित्र निर्माण की अग्रसर हों, हम सभी का ऐसा प्रयास रहता है। संस्कृत के बिना चरित्र निर्माण संभव नहीं है या यह कहिए कि हमें अपने बच्चों को संस्कारित करना हो तो उन्हें संस्कृत शिक्षा जरूर दिलवानी चाहिए। खासकर महिलाओं को इसके लिए सजग होने की जरूरत है क्योंकि माता ही बच्चों की प्रथम गुरू होती हैं।

 

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