कमलेश भारतीय
शिमला। सृष्टि के संतुलन का मुद्दा हमारे समय का सबसे शीर्ष मुद्दा है । इसी में मनुष्यता, धरती , जल , वायु , अग्नि और आकाश को बचाना है ताकि सृष्टि बची रहे । यह कहना है भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक व नया ज्ञानोदय के संपादक लीलाधर मंडलोई का । वे शिमला में नवल प्रयास संस्था द्वारा आयोजित प्रेरणा उत्सव में आमंत्रित थे और मुझे भी इस संस्था के संयोजक विनोद प्रकाश गुप्ता ने आमंत्रित किया था । बस , मुझे लीलाधर मंडलोई से बतियाने का सहज ही अवसर मिल गया क्योंकि हम साथ साथ बैठे थे । मेरे भीतर का पत्रकार आया और सवाल करने लगा।
इस साहित्य उत्सव में मंडलोई द्वारा संपादित व कल्पनाशीलता पर आधारित बारह मिनट की एक फिल्म गजानन माधव मुक्तिबोध पर प्रदर्शित की गयी । उन्होंने मुक्तिबोध को उद्धरित करते कहा कि मुक्ति अकेले नहीं मिलती । अकेले में भी नहीं मिलती । सबके साथ मिलकर ही होती है । यही दिखाने का प्प्रयास रहा ।
-आप दूरदर्शन के महानिदेशक भी रह चुके हैं । व्यावसायिक चैनलों के बीच दूरदर्शन से कितनी उम्मीद लगाई जा सकती हैं या कितनी रोशनी बची है?
इसके जवाब में कहा कि निजी चैनलों की त्रासद प्रतियोगिता के बीच समाचार, समाचार विश्लेषण आज अपनी परिभाषाओं और मर्यादाओं को भूल कर व्यापार में लिप्त हैं । सर्वहारा वर्ग को वे भूल चुके हैं । राष्ट्र, धर्म, जातियों के अर्थ भूलने की प्रक्रिया जारी हैंं । दूरदर्शन मीडिया के ऐतिहासिक अर्थों के पुनर्जीवन के लिए संघर्षरत हैंं ।
-आपने सृष्टि को बचाने के साथ स्त्री विमर्श, दलित विमर्श और आदिवासी विमर्श की चर्चा की है क्या ये विमर्श साहित्य को संवारते हैं या बांटते हैं ?
-कमलेश भाई , ये सभी विमर्श जरूरी हैं । इनको होना भी चाहिए । परिणामों को मूर्त करने के लिए न कि कदमताल को असहाय होने के वास्ते । नयी बातों को समकालीनता में उजागर होना अपेक्षित हैंं । रही बात सृष्टि के संतुलन की तो यह हमारे समय का शीर्ष मुद्दा हैंं । इसी में सब समाहित हैंंंं । ताकि सृष्टि बची रहे आगत पीढियों के लिए ।
-आपने ज्ञानपीठ के निदेशक के रूप में कोई नयी योजना शुरू की है ?
-देखिए , नवलेखन को पुरस्कृत करते ही हैं । इसके साथ ही पिछले चार वर्ष से एक नया पुरस्कार शुरू किया है और अब तक शमीम हन्फी, ज्ञानरंजन और ई सोनमणि सिंह को प्रदान कर चुके हैं । इसके अतिरिक्त वाक् के अंतर्गत मासिक आयोजन भी करते हैं ।