श्याम रजक ने प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का किया स्वागत

पटना। जद(यू०) के राष्ट्रीय महासचिव पूर्व मंत्री सह विधायक श्याम रजक ने प्रमोशन में आरक्षण पर माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का स्वागत किया है। श्री रजक नें कहा कि कोर्ट ने अपने फैसले में साफ तौर पर कहा है कि केंद्र तथा राज्य सरकारें चाहें तो एससी/एसटी वर्ग के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दे सकती हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अब 2006 के आंकड़े जुटाने के शर्त को भी समाप्त कर दिया है। इससे अब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों को पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए केंद्र तथा राज्य सरकारों को इनके पिछड़ेपन के आंकड़े और सार्वजनिक रोजगार में उस वर्ग के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता दिखाने वाला आंकड़ा इकठ्ठा करने की जरूरत नहीं होगी। इससे निश्चित तौर पर दलित वर्ग की तरक्की के अवरुद्ध मार्ग खुलेंगे।

श्री रजक नें कहा कि क्रीमी लेयर के सिद्धांत को लागू कर अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय से आने वाले लोगों को सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता। क्योंकि यह मामला केवल आर्थिक गरीबी का नहीं बल्कि मन की गरीबी का है। और दलित समुदाय धन के साथ-साथ मन का भी गरीब है। जाति और पिछड़ेपन का ठप्पा अब भी दलित समुदाय के साथ जुड़ा हुआ है। एससी-एसटी समुदाय लंबे समय से जातिगत भेदभाव का सामना कर रहा है और इस तथ्य नकारा नहीं जा सकता। इस कुंठा को सामाजिक तौर पर समाप्त करने की जरूरत है। माननीय सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अब दलित का बेटा भी उच्च पदों पर पदासीन होगा। जिससे एससी/एसटी वर्ग के लोगों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति सुधरेगी।

श्री रजक नें कहा कि हमारे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी तो हमेशा से बिहार में SC/ST को प्रमोशन में आरक्षण देने के पक्ष में रहे हैं। अब केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को भी प्रोमोशन में आरक्षण को लागू करना चाहिए। मेरी केंद्र सरकार के साथ सभी राज्य सरकारों से आग्रह होगी कि वे प्रोमशन में आरक्षण को जल्द से जल्द लागू करें। लगभग तीन माह में सरकार आरक्षण समिति के साथ बैठक करके प्रोमोशन में आरक्षण को लागू करें। ताकि जो लोग भी इससे बंचित रह गए हैं उन्हें न्याय मिल सके। और देश व सामाज के विकास में वे अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी दे सकें।

इसके साथ ही दलितों के लंबित मामले यथा न्यायिक सेवा में आरक्षण, निज़ी क्षेत्रों में आरक्षण, नौकरियों के बैकलॉग को पूरा करना की बात हो, भूमिहीन दलितों को 10 डिसमिल जमीन मुफ्त में मुहैया करवाने की बात हो, चाहे शैक्षणिक संस्थानों द्वारा नामांकन में दलितों के साथ हो रहे उपेक्षा का सवाल हो। केंद्र सरकार को चाहिए की दलितों के इन सभी लंबित मांगों को जल्द से जल्द पूरा करावें। ताकि अनुसुचित जाति/अनुसुचित जनजाति की तरक्की के अवरूद्ध रास्तें पुनः खुल सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published.