नई दिल्ली। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की कार्य कार्यकारिणी की बैठक आज संयोजक वीएम सिंह की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई जिसमें आम बजट 2018 पर चर्चा की गयी। एनडीए द्वारा 2014 के चुनाव में लागत से डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने का वायदा घोषणा पत्र में किया गया था लेकिन सरकार बनने के बाद सर्वोच्च न्यायालय में फरवरी 2015 में शपत पत्र देकर उसने वायदा पूरा करने से साफ इंकार कर दिया। 6 जून 2017 को मंदसौर में पुलिस फायरिंग के बाद देश के लगभग 190 किसान संगठनों ने अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का गठन कर 19 राज्यों में 10 हजार किलोमीटर की किसान मुक्ति यात्रा, 500 से अधिक जनसभाएं व किसान मुक्ति सम्मेलन किये और लाखों किसानों की किसान मुक्ति संसद दिल्ली में कर किसानों की सम्पूर्ण कर्जा मुक्ति तथा लागत से डेढ़ गुना दाम पर बिल तैयार किये। देश भर में बढ़ रहे इस आंदोनन के दबाव में सरकार को मजबूरी में लागत से डेढ़ गुना दाम देने की बात आम बजट में जोड़नी पड़ी। लेकिन वित मंत्री द्वारा कहा गया कि रबि फसल में लागत से डेढ़ गुना दिया जा रहा है तथा खरीफ में लागत से डेढ़ गुना दाम समर्थन मूल्य दिया जाएगा। यह एक सफेद झूठ है। सरकार ने षड्यंत्र पूर्वक ढंग से लागत की परिभाषा को बदल कर उसे कम कर दिया है और जो समर्थन मूल्य पहले से घोषित किया था उसी को डेढ़ गुना बता दिया है और उसी को स्वामीनाथन सिफारिशों का नाम दे दिया है। इसका साफ अर्थ यह है कि सरकार की घोषणा से खरीफ की फसल में भी किसानों को कोई लाभ नहीं मिलेगा।
सच्चाई यह है कि गत 4 वर्षों में सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य भी किसानों को नहीं मिला है और आज भी नहीं मिल रहा है। समन्वय समिति ने 9 नवम्बर को 2017 को वाकायदा प्रेस वार्ता कर बताया था कि समर्थन मूल्य के नीचे खरीद होने के चलते केवल खरीफ में 32000 करोड़ रुपये का नुकसान किसानों को हो रहा है। बजट में वित मंत्री ने बाजार में दाम गिरने पर हस्तक्षेप कर नुकसान की भरपाई की बात की है, पर उन्होंने उसके लिए बजट में केवल 200 करोड़ रुपये का आवंटन किया है, जो एक जिले के लिए भी काफी नहीं है। यह सरासर किसानों के साथ एक मजाक है। पूरे देश में खेती के संकट का एक बड़ा कारण लागत का महंगा दाम रहा है। किसानों को उम्मीद थी कि पेट्रोल, डीजल, बीज, खाद, आदि के दाम घटाए जाएंगे। पर सरकार ने ऐसी कोई घोषणा नहीं की और महंगी लागत एक बड़ी समस्या है। इसमें लागत के आंकलन की राज्य सरकारों द्वारा जो अनुशंसाएं सीएसीपी को भेजी जाती रही है, उसे 30 से 50 प्रतिशत तक घटा दिया जाता रहा है तथा सीएसीपी की अनुशंसाओं में भी कैबिनेट कटौती कर देती है। जाहिर है कि सरकार केवल वाही-वाही लूटने के लिए घोषणा कर रही है, वास्तव में वह किसानों और देश के आम नागरिकों की आंखों में धूल झोंक रही है।
समन्वय समिति मानती है कि यदि सरकार ने 2014 में ही लागत से डेढ़ गुना मूल्य असल में दे देती और इस पर 2017-18 में चर्चा शुरू नहंी करती तो किसानों का कर्ज इतना नहीं चढ़ता। इस कर्ज के लिए पूरी तरह सरकार जिम्मेदार है। किसान की सम्पूर्ण कर्जामुक्ति करने तथा आश्वस्त आय देने की मांगों पर समिति संघर्ष तेज करेगी। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति मानती है कि उसने लागत से डेढ़ गुना मूल्य देने के वायदे को सरकार को याद दिलाने में सफलता हासिल की है तथा किसानों के मुददे पर गूंगी – बहरी हो चुकी सरकार को किसानों की ओर देखने और उसके वारे में बोलने के लिए मजबूर किया है। अब वह किसानों को एकजुट कर इन मांगों को मनवाने के लिए काम करेगी। समन्वय समिति के किसान नेताओं द्वारा आगामी 6 फरवरी को दिल्ली में प्रेस सम्मेलन कर किसानों के भावी संधर्ष की रुपरेखा तथा किसानों के लिए की गयी घोषणाओं की वास्तविकता देश के सामने रखी जाएगी।