कोविड-19 के प्रकोप के दौरान कैंसर मरीजों की हो विशेष देखभाल

नई दिल्ली। जैसा कि हम जानते हैं कि कोविड- 19 नोवेल कोरोना वायरस से होने वाला संक्रमण है जो गत वर्श 2019 के अंतिम महीने से षुरू हुआ था और इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महामारी घोषित कर दिया है। चमगादड़ इस वायरस के प्राकृतिक स्रोत हैं हालांकि वैज्ञानिक षोध पत्रिका ‘‘नेचर मेडिसीन’’ में प्रकाषित अध्ययनों के मुताबिक इन अध्ययनों से मनुश्यों में यह संकम्रण स्केली चींटी खाने वालों या पैंगोलिन के माध्यम से हुआ।

समय के साथ यह वायरस म्यूटेट करता रहा अर्थात अपना चरित्र बदलता रहा। यह अपने आपको को ढालता और विकसित करता रहा।
इस वायरस की चपेट में वे लोग ज्यादा आ रहे हैं जो बुजुर्ग हैं और जिन्हें हृदय की बीमारी, मधुमेह, सांस की पुरानी बीमारी और कैंसर जैसी चिकित्सकीय समस्या है। उनमें कोविड- 19 होने पर उसके गंभीर रूप लेने का खतरा अधिक होता है। नए आंकड़ों से पता चलता है कि कोविड- 19 विभिन्न तरह के लक्षण पैदा करता है जिनमें मामूली लक्षणों से लेकर गंभीर लक्षण षामिल हैं। बाद में मरीज को अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ जाती है और उन्हें सांस लेने के लिए वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है। इसके लक्षण वायरस के संपर्क में आने के 5 से 14 दिन के भीतर प्रकट होते हैं और मरीज को ठीक होने के बाद भी अतिरिक्त 14 दिन के लिए आइसोलेषन में रखे जाने की जरूरत पड़ती है ताकि वह किसी अन्य को संक्रमित नहीं कर सके।

जैसा कि हम जानते हैं कि कैंसर एक क्रोनिक रोग है और इसमें मृत्यु दर अधिक है। दुनिया भर में यह हृदय रोग के बाद दूसरे स्थान पर है। कैंसर की बीमारी लगातार बढ़ती रहती है, बषर्ते कि इसे एक खास समय सीमा के भीतर रोका नहीं जाए। ऐसी स्थिति में रेडिएषन थिरेपी (निर्धारित समय-सीमा में) लेने वाले कैंसर के मरीजों की हमेषा देखभाल करने तथा उनका उपचार जारी रखने की जरूरत होती है। कैंसर के मरीजों के लिए उपचार रोकने का विकल्प नहीं होता है और ऐसे में मरीजों, उनकी देखभाल करने वालों तथा चिकित्सा कर्मियों के लिए कोविड- 19 के संक्रमण की रोकथाम करना जरूरी होता है और इस समूह के मरीजों में इस बीमारी को फैलने से रोकना जरूरी है।

मेदांता मेडिसिटी के कैंसर इंस्टीच्यूट के रेडिएषन ओंकोलाॅजी की प्रमुख डाॅ. तेजिन्दर कटारिया के अनुसार, ‘‘जो मरीज कीमोथिरेपी लेते हैं उनकी तुलना में रेडियोथिरेपी लेने वाले मरीजों में रोग प्रतिरक्षण क्षमता कम नहीं होती है। प्रत्येक सप्ताह एक बार या दो बार रक्त परीक्षण किया जाता है और जरूरत पड़ने पर मरीज को सामान्य तरीके से जारी उपचार के दौरान उनकी सहायता के लिए कॉलोनी-स्टिमुलेटिंग दवाइयां दी जाती हैं। उन्हें उच्च प्रोटीन वाला खुराक दिया जाता है और रेडिएषन उपचार के दौरान उन्हें पर्याप्त तरल दिया जाता है। उन्हें अस्पताल आने के दौरान अपनी खुद की स्वच्छता रखने के बारे में काफी विस्तुत निर्देष भी दिए जाते हैं। उन्हें पूरे उपचार के दौरान इन निर्देषों का पालन सख्ती के साथ करना होता है। जब कोविड- 19 की महामारी फैली हुई है वैसे में कैंसर के मरीजों से यह उम्मीद की जाती है कि वे उक्त निर्देषों के अलावा कुछ अतिरिक्त निर्देषों का पालन करेंगे जो निम्नलिखित हैं।

मरीजों को संक्रमण से बचाने के लिए जिन सार्वभौमिक सावधानियों को बरतने के निर्देष दिए गए हैं उनमें स्वास्थ्य कर्मियों के लिए बहुत ही सावधानी के साथ हाथ धोना, मास्क, ग्लोब और हास्पीटल स्क्रब का प्रयोग करना शामिल हैं। अस्पताल के कर्मचारियों के अलावा मरीजों तथा उनकी देखभाल करने वालों की जांच थर्मल सेंसर के जरिए प्रवेष द्वार पर ही की जाती है और इसके अलावा उनसे पिछले 15 दिनों के दौरान उनकी यात्रा के बारे में तथा बुखार, षरीर में दर्द, कोल्ड, कफ या अन्य ष्वसन संबंधी लक्षणों के बारे में पूछा जाता है। अगर ऐसे लक्षण या इतिहास हैं तो आगंतुक को चिकित्सा परिसर के बाहर ही रहने तथा आगे की निर्देषों के लिए उन्हें संक्रामक रोग (आईडी) विशेषज्ञ से मिलने के लिए कहा जाता है। मेदांता द मेडिसिटी एक मल्टी स्पेषियलिटी हास्पीटल है जहां पूर्ण रूप से संक्रामक रोग (आईडी) विभाग कार्य कर रहा है और जहां कोविड मरीजों के लिए पहले से ही संक्रमण नियंत्रण प्रभाग बना दिया गया है वैसे में रेडिएषन थिरेपी कराने के लिए अस्पताल आने वाले कैंसर के मरीजों के लिए अलग से एक प्रवेष द्वार (ग्रीन काॅरिडोर) बनाया गया है।

रोगियों को केवल एक परिचारक को अपने साथ अस्पताल लाने के लिए कहा जाता है और दोनों को मास्क पहनने के साथ-साथ उपचार परिसर में प्रवेश करते ही अपने हाथों को साफ करने के लिए कहा जाता है। सिर और गर्दन या ब्रेन के ट्यूमर के रोगियों को छोड़कर जब रोगी को ऑर्फिट कास्ट पहनना होता है, तो अन्य सभी रोगियों को उपचार के दौरान अपने चेहरे पर मास्क रखने के लिए कहा जाता है। वेटिंग हॉल में दो व्यक्तियों के बीच 3 फीट का अलगाव होता है।

रिसेप्शन के कर्मचारियों को मरीजों से अलग रखा जाता है। इसके लिए तीन फीट की दूरी के लिए क्यू-मैनेजर बनाया गया है। वह कहती हैं, “लॉकडाउन के दौरान मरीजों और उनके परिचारकों को यात्रा करने की अनुमति देने के लिए सिविक अधिकारियों को मरीजों के लिए पत्र प्रदान करना होता है। हास्पीटल के कर्मचारियों को भी इसी तरह के पत्र दिए जाते हैं ताकि वे यात्रा कर सकें।

सुरक्षा मानदंडों को बनाए रखने के लिए, वेटिंग क्षेत्र से पत्रिकाओं, पुस्तकों और समाचार पत्रों को हटा लिया गया है। हमने हर प्रयोग के बाद हर मरीज द्वारा उपयोग में लाई गई सामग्रियों को साफ करने के लिए खास विधि लागू की है और हाउस कीपिंग कर्मचारी उस विधि का पालन कर रहे हैं। हर चार घंटे में हाउस कीपिंग कर्मचारी सोडियम हाइपोक्लोराइट (ब्लीच) की घोल से डोर-नॉब, हैंडल, कंप्यूटर मॉनिटर, बैनिस्टर, फ्लोर, चमकदार सतहों को साफ करते हैं। सभी प्रवेष द्वारों को खुला रखा जाता है ताकि लोगों द्वारा इनके छूने की आषंका कम से कम हो।
दुनिया ने पहले की शताब्दियों में बुबोनिक प्लेग और इन्फ्लूएंजा महामारी जैसी महामारियों का सामना किया है। पहले की तुलना में इस बार की महामारी में एक अंतर यह है कि आज डिजिटल माध्यमों के जरिए कुछ घंटों के भीतर पूरी दुनिया में जानकारियों का प्रसार हो सकता है। इस माध्यम का उपयोग सीखने तथा उन व्यवहारों को अपनाने के लिए होना चाहिए ताकि कोविड- 19 के संक्रमण तथा इसके कारण होने वाली मौतों को कम किया जा सके। साथ ही इसके माध्यम से हम मरीजों की उनकी जरूरत के अनुसार मदद कर रहे हैं। डिजिटल जगल ने हमारे लिए जागरूकता के एक मार्ग को खोला है और इसकी मदद से हम वीडियो कंाफ्रेसिंग के जरिए अपने छात्रों को दूरस्थ षिक्षा प्रदान कर रहे हैं तथा मरीजों को टेलीमेडिसीन के जरिए उन्हें उनके घर में ही चिकित्सकीय परामर्ष उपलब्ध करा रहे हैं।

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