गाजियाबाद। नेहरू नगर स्थित यशोदा अस्पताल के डॉक्टरों ने एक बुजुर्ग महिला का बहुत ही जटिल आॅपरेशन किया है। आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम शहर निवासी 56 वर्षीय महिला एसवी लक्ष्मी के के पति एस जगन्नाथ नॉर्दन रेलवे इलाहाबाद में क्लर्क के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने इलाहाबाद के अलावा दिल्ली में भी अपने पत्नी को कई डाक्टरों को दिखाया, लेकिन कहीं भी उन्हें आराम नहीं मिला। एसवी लक्ष्मी तीन वर्षों से बहुत ही परेशान थीं। कमर में तकलीफ के चलते चलने फिरने में तो असमर्थ थी ही, उन्हें कमर पर छूने का अहसास होना भी बंद हो गया था।
नार्दन रेलवे के पैनल में होने के नाते उन्हें यशोदा अस्पताल के वरिष्ठ आॅथोर्पेडिक सर्जन डॉ. विपिन त्यागी के बारे में पता चला। उन्होंने डॉ. त्यागी से परामर्श किया, तो उन्होंने उनकी सारी जांच कराईं। लक्ष्मी की कमर की वर्टिब्रा यानी मनके एक दूसरे पर चढ़े हुए थे और कमर की नसों पर बहुत दबाव था। डा. त्यागी के मुताबिक उनके अंदर खून की भी बहुत कमी थी। मरीज और उसके परिजनों को बीमारी के बारे में अच्छी तरह से समझाया गया और उन्हें यह भी बताया गया कि इसका इलाज नई तकनीक से दूरबीन विधि से बहुत ही कम जीरे के मिनिमल इनवेसिव स्पाइनल सर्जरी द्वारा दूरबीन विधि से संभव है।
डॉ. त्यागी ने बताया कि यह आॅपरेशन पहले ओपन विधि से किया जाता था, जिसमें दो हफ्तों तक बिस्तर पर ही लेटे रहना पड़ता था। यशोदा हॉस्पिटल में श्रीमती लक्ष्मी का ईलाज मिनिमल इनवेसिव स्पाइनल सर्जरी विधि से किया गया। डॉ. विपिन त्यागी कहते हैं कि गाजियाबाद में इस तरह का यह पहला आॅपरेशन किया गया है। इस जटिल आॅपरेशन को करने वाले डॉक्टरों की टीम में डॉ. विपिन त्यागी, डॉ. राहुल काकरान, डॉ. एनके गर्ग, डॉ. विकास और डॉ. जुनेजा शामिल थे।
आॅपरेशन के बाद अगले ही दिन ही श्रीमति लक्ष्मी को बैठा दिया गया और उन्हें चला भी दिया गया। डॉ विपिन त्यागी ने कहा कि इस विधि से बहुत सारे मरीजों का भला हो सकता है। हालांकि यह भी बहुत ही मुश्किल और कई वर्षों की मेहनत के बाद ही हासिल हो सकती हैं। इसके बहुत सारे लाभ है, जैसे कि मरीज को दर्द बहुत कम होता है, आॅपरेशन के दौरान खून की जरूरत नहीं पड़ती, अगले दिन ही मरीज को चला दिया जाता है। अस्पताल में भी बहुत ही कम 2 से 3 दिन तक रुकना पड़ता है। श्रीमती लक्ष्मी को आॅपरेशन के बाद किसी भी तरह का ब्लड नहीं दिया गया है। डॉ. त्यागी ने बताया कि यह बीमारी अनेक मरीजों में होती है, लेकिन इसका ईलाज सही तरीके से अगर ना किया जाए तो यह भयावह रूप ले सकती है।