बच्चों के भविष्य पर सरकारी ग्रहण

रांची। झारखंड राज्य के शिक्षाधिकारियों ने बच्चों के भविष्य पर ग्रहण लगा दिया है। यह पूरी तरह से लालफीताशाही है, जिसके कारण बच्चों का आने वाला कल अंधी गलियों में भटकने को विवश हो जायेगा। यह बच्चों का मानसिक आधार गढ़ने का वक्त है, परंतु शिक्षाधिकारियों ने इस आधार को ही खोखला बनाने की शायद ठान ली है। अप्रैल से छात्रों का सत्र शुरू होता है। फरवरी में बच्चों की फाइनल परीक्षा होगी, परंतु अब तक इन्हें किताबें नहीं दी गयी हैं। नौ महीने में किताबें छप कर स्कूल तक नहीं पहुंचीं। यहां के पाठ्यक्रम के अनुसार किताबें बाजार में भी उपलब्ध नहीं हैं। पुरानी किताबों से पढ़ाई तो हो रही है, लेकिन पहला तो यह कि ये पुरानी किताबें सभी बच्चों के पास हैं नहीं और दूसरे राज्य सरकार ने एक साल पूर्व पाठ्यक्रम बदल दिया है। 6ठी से 8वीं कक्षा के सभी छात्रों को सरकार नि:शुल्क किताबें मुहैया कराती है। इन छात्रों का पाठ्यक्रम इसी वर्ष बदला गया है। साथ में इसी वर्ष 20 फरवरी से 8वीं की बोर्ड परीक्षा होगी, जिसकी शुरुआत इसी वर्ष से हो रही है। पहली से 5वीं कक्षा का पाठ्यक्रम एक वर्ष पूर्व बदला गया है। मतलब पहली से 8वीं कक्षा तक के छात्रों को नये पाठ्यक्रम के अनुसार नयी किताबों की जरूरत हर हाल में थी, परंतु अब तक किताबें नहीं दी गयी हैं। केन्द्र सरकार ने 2011 में 203 मॉडल स्कूल खोलने की योजना शुरू की थी। झारखंड के शिक्षा विभाग ने 89 मॉडल स्कूल खोले हैं। इनमें पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी करने की योजना है। ये मॉडल स्कूल पिछड़े प्रखंडों में खोले जाने हैं, परंतु अधिकारियों की लापरवाही के कारण बच्चों की प्राथमिक शिक्षा ही अधर में लटक गयी है। शिक्षा की गुणवत्ता की बात तो दूर हो जाती है, शिक्षा दी ही नहीं जा रही है। एक ओर सरकार मैट्रिक की परीक्षा का परिणाम खराब होने पर शिक्षकों और शिक्षाधिकारियों को फटकार लगाती है तथा शिक्षा की गुणवत्ता सही करने पर जोर देती है, परंतु दूसरी ओर मैट्रिक से पूर्व की कक्षाओं में ही छात्रों का आधार कमजोर करने का पूरा प्रबंध कर दिया जाता है। केन्द्र सरकार जिरो ड्रॉप आउट की योजना चला रही है। साथ में राज्य सरकार बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए कई योजनाएं चला रही है। मध्याह्न भोजन योजना भी उनमें एक है, परंतु जब किताबें ही नहीं रहेंगी तो बच्चे स्कूल में जाकर करेंगे क्या? यह सवाल अब खड़ा हो रहा है। पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ाई किये बगैर छात्र 8वीं की बोर्ड परीक्षा लिखेंगे, तो परिणाम कितना बढ़िया आयेगा, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। शिक्षाधिकारियों की इसी लापरवाही का परिणाम है कि शिक्षक भी शिक्षा की गुणवत्ता से दूर होते जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों का न तो निरीक्षण होता है और न ही शिक्षकों का टैलेंट टेस्ट। शिक्षक से लेकर अधिकारी तक सभी बेपरवाह नजर आते हैं। राज्य सरकार पूरी गंभीरता के साथ जब तक इस स्थिति में सुधार नहीं लाती है, तब मैट्रिक और इंटरमीडिएट की परीक्षा के परिणाम नहीं सुधर पायेंगे।

 

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