रविवार

 

रविवार

हर बार आता है
बाजार भी लगता है कोलेबिरा में
माँ हर बार चली जाती पीठ पर बाँधे भाई
घर में आ जाती है सहेलियाँ
खेलने कितकित ढेंगा पानी
कबड्डी पिट्टो खेलते
बीच बीच में
खदकते चावल को छूकर
पका अधपका का समाधान
तलछटी के गाँवों के बचपन को
रविवार को अधिक होता है शायद
माँ बेच आती है आलू टमाटर महुआ
खरीद लाती है कुछ लाल पीले सपनें
और बांट देती है सबमें
अनपढ माँ
एक ही काम जानती है
हडिया से बुत पति को सम्हालना
चर्च में बुदबुदाती
रविवार यीशु ऐसी लाना
कि परिवार दाल चावल भरपेट खाये ।

– निवेदिता मिश्रा झा

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