विवेकानंद, जिन्होंने बदल दी सोच की दिशा

धनंजय गिरि

दुनिया के हर हिस्से में ऐसे लोग हुए हैं, जो अपनी बोध-क्षमता यानी महसूस करने की शक्ति को पांच इंद्रियों से आगे ले गए। स्वामी विवेकानंद के बारे में एक दिलचस्प कहानी है। वे पहले योगी थे जो पश्चिम गए और वहां जा कर उन्होंने हलचल मचा दी। यह घटना सौ साल पुरानी है । उन्होंने अपना पहला कदम शिकागो में रखा, और फिर वहां से वे यूरोप गए।जब वे जर्मनी पहुंचे, तो वे वहां एक ऐसे आदमी के घर मेहमान बने, जो उस समय का मशहूर कवि और दार्शनिक था। रात के भोजन के बाद, वे दोनों अध्ययन कक्ष में बैठ कर बातचीत कर रहे थे। मेज पर एक किताब रखी थी, जो थोड़ी पढ़ी हुई लग रही थी। वे दार्शनिक महाशय उस किताब की बहुत तारीफ कर रहे थे, इसलिए स्वामी विवेकानंद बोले, “मुझे एक घंटे के लिए यह किताब दे दीजिए, जरा देखूं तो इसमें क्या है।” उन महाशय को बुरा लगा और थोड़े आश्चर्य के साथ उन्होंने पूछा, “क्या? एक घंटे के लिए ! एक घंटे में आप क्या जान लेंगे? मैं यह किताब कई हफ्तों से पढ़ रहा हूं, पर अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाया हूं। इतना ही नहीं, यह किताब जर्मन भाषा में है, और आप जर्मन भाषा नहीं जानते,आप इसको पढ़ेंगे कैसे?” विवेकानंद ने कहा, “मुझे बस एक घंटे के लिए दे दीजिए; देखूं तो सही।” उन महाशय ने मजाक समझ कर वह किताब उनको दे दी।
बेहद कम उम्र में दुनियाभर में अपने ज्ञान का लोहा मनवाने वाले और देश के युवाओं को आजाद भारत का सपना दिखाने वाले स्वामी विवेकानंद की आज जयंती है। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले विवेकानंद का जिक्र जब कभी भी आएगा अमेरिका के शिकागो में हुए ‘सर्वधर्म सम्मेलन’ में दिए गए उनके यादगार भाषण की चर्चा जरूर होगी। यह एक ऐसा भाषण था जिसने भारत की अतुल्य विरासत और ज्ञान का डंका बजा दिया था।
दुनिया भर में सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले स्वामी विवेकानंद ने अपने इस भाषण को शून्य की खोज के इर्द-गिर्द रखा था। यह एक ऐसा भाषण था जिसने भारत की अतुल्य विरासत और ज्ञान का डंका बजा दिया था। अधिकांश लोग जानते हैं कि स्वामी जी ने यहां पर शून्य पर भाषण दिया था, लेकिन बेहद कम लोग ही ऐसे हैं जिन्हें यह मालूम है कि उन्होंने शून्य पर ही क्यों भाषण दिया। तो जानिए शिकागो में शून्य पर क्यों बोले थे स्वामी जी।

असल में ये एक दिलचस्प कहानी है। विवेकानंद साल 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने गए थे। जब वो वहां पहुंचे तो आयोजकों ने उनके नाम के आगे शून्य लिख दिया था। जानकारी के मुताबिक ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि कुछ लोग उन्हें परेशान करना चाहते थे। जानकारी के मुताबिक विवेकानंद जब भाषण देने के लिए खड़े हुए तब उनके सामने दो पेड़ों के बीच में एक सफेद कपड़ा बंधा हुआ पाया जिसके बीच में एक ब्लैक डॉट था। स्वामी विवेकानंद पूरी बात को अच्छे से भांप चुके थे। इसलिए उन्होंने यहां पर अपने भाषण की शुरूआत शून्य से ही की।
स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस का देहांत हो चुका था और जिस साल उन्हें अमेरिका जाना था वो उनके साथ नहीं थे। इस स्थिति में उन्होंने अपनी गुरु मां का आशीर्वाद लेना चाहा। विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस की पत्नी मां शारदा के पास पहुंचे। उन्होंने उनके पैर छुए और उन्हें बताया कि उन्हें अमेरिका में भाषण देने जाना है और वो उनका आशीर्वाद लेना चाहते हैं। लेकिन इस पर मां शारदा ने कहा कि तुम कल आना मैं देखना चाहती हूं कि तुम इस काबिल हो भी या नहीं। मां की बात सुनकर स्वामी जी थोड़ा हैरान हो गए।
हालांकि गुरु मां के कहे मुताबिक वो अगले दिन फिर उनका आशीर्वाद लेने पहुंचे। विवेकानंद जब पहुंचे तो मां शारदा रसोई में थीं। विवेकानंद ने उनसे कहा कि मां मैं आपका आशीर्वाद लेने आया हूं। मां शारदा ने यह सुनकर कहा ठीक है पहले तुम मुझे चाकू उठाकर दो मुझे सब्जी काटनी है। विवेकानंद ने चाकू उठाया और मां की तरफ बढ़ा दिया। चाकू लेते ही मां शारदा ने अपने विवेकानंद को आशीर्वाद दे दिया। मां ने कहा, ‘जाओ नरेंद्र मेरे समस्त आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं।’ मां का आशीर्वाद पाने के बाद भी नरेंद्र को बेचैनी थी, उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर चाकू का आशीर्वाद से क्या जुड़ाव है और उन्होंने आखिरकार मां से यह पूछ ही लिया। तब मां ने उन्हें बताया कि बेटा, “जब भी कोई दूसरे को चाकू पकड़ाता है तो धार वाला सिरा पकड़ाता है लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया।”

 

 

 

विवेकानंद का लोकप्रिय भाषण-

11 सितंबर 1893 शिकागो (अमेरिका)

अमेरिका के बहनों और भाइयों

आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।

मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्त्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था। और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है। भाइयों, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है: जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं।

वर्तमान सम्मेलन जोकि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है: जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं। सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं। अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।

(लेखक राष्ट्वादी विचारधारा से ओतप्रेात सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)

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