प्रकृति को समझने का पर्व है मकर संक्रांति : नवरत्न चौधरी

नई दिल्ली। सामाजिक कार्यकर्ता एडवोकेट नवरत्न चौधरी कहती हैं कि हमारे त्योहार प्रकृति से मेल खाते हैं। जिसे मकर संक्रांति कहते हैं, सीधे तौर पर सकरांत कहते हैं। इस त्योहार का मूल बड़ों का सम्मान करने से जुड़ा है। हर किसी को त्योहार के मूल को समझना होगा। ताकि संस्कृति बची रहे। उन्होंने अपने से बड़ों को सम्मान देने की अपील की। बड़े हमेशा भला ही चाहते हैं। मकर संक्रांति को साल के शुरुआत में आने वाला सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। इस पर्व को दान का पर्व कहा जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान, पूजा करने से पुण्य हजार गुना हो जाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी त्यागकर उनके घर गए थे। इसी दिन से दिन बढ़ना और रात छोटी होनी शुरू हो जाती है। इस दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत भी मानी जाती है।

एडवोकेट नवरत्न चौधरी कहती हैं कि मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी राजा भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था, इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। धरती का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। छह माह सूर्य उत्तरायण रहते हैं और छह माह दक्षिणायण। हिन्दू धर्म में माना जाता है कि मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। इसी दिन मलमास भी समाप्त होने तथा शुभ माह प्रारंभ होने के कारण लोग दान-पुण्य से शुरुआत करते हैं।

एडवोकेट नवरत्न चौधरी के अनुसार वेदों में सूर्य उपासना को सर्वोपरि माना गया है। जो आत्मा, जीव, सृष्टि का कारक एक मात्र देवता हैं। जिनके हम साक्षात रूप से दर्शन करते है। सूर्य देव कर्क से धनु राशि में छह माह भ्रमण कर दक्षिणयान होते हैं, जो देवताओं की एक रात्रि होती है। सूर्य देव मकर से मिथुन राशि में छह माह भ्रमण कर उत्तरायण होते है, जो एक दिन होता है। जिसमें सिद्धि साधना पुण्यकाल के साथ- साथ मांगलिक कार्य विवाह, गृह प्रवेश, जनेउ संस्कार, देव प्राण- प्रतिष्ठा, मुंडन कार्य आदि सम्पन्न होते हैं।

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