नई दिल्ली। भाजपा नेता धनंजय गिरि कहते हैं कि भगवान शिव अन्य देवी-देवताओं से बिल्कुल भिन्न हैं। शिव और शिव परिवार जल से प्रसन्न होते हैं। यही वजह है कि शिव¨लग पर जलाभिषेक किया जाता है। सावन के महीने में शिव आराधना का महत्व बढ़ जाता है। शिव कल्याणकारी हैं और बड़े दयालु है। शिव की कृपा पाने के लिए एक तरफ जलाभिषेक किया जाता है, तो वहीं व्रत भी रखा जाता है। शिव की आराधना से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। शिव की जटाओं में गंगा बह रही है और वहीं सर्पो की माला है। गंगा अमृत है यानी जीवनदायिनी गंगा। दूसरी तरफ सर्पो की माला यानी विष जो मृत्यु का परिचायक है। यहां जीवन के इस रहस्य को समझने की जरूरत है। हमारे में भी कई बार विरोधाभास होता है। जिस तरह शिव की जटाओं में गंगा और सर्प हैं। वैसे ही हमारे जीवन में कई बार विपरीत परिस्थितियां हैं। कई लोगों से विचार नहीं मिलते हैं तो हम उससे अलग हो जाते हैं। यहां शिव का रहस्य समझाता है कि हमें सामंजस्य बिठा कर चलना चाहिए। जीवन दर्शन भी वी समझ पाता है तो ईश्वर के रहस्यों को समझने की कोशिश करता है। हम सब जानते हैं कि शिव कल्याणकारी हैं। सावन के महीने में कल्याण करने का संकल्प लें और घर-परिवार, देश व समाज के हित में भी अपना योगदान दें। मैं सावन के महीने में प्रतिदिन शिवजी को जलाभिषेक करता हूं और प्रार्थना करता हूं कि सभी खुशहाल रहें।
धनंजय गिरि कहते हैं कि शिव कल्याणकारी हैं, क्योंकि यह शब्द ही कल्याण का वाचक है। कल्याण पूर्णतः सात्विकता है, क्योंकि इससे किसी की हानि संभव ही नहीं। परंतु केवल सत्व गुण से सृष्टि चल नहीं सकती। सत्व, रज एवं तम इन तीनों के योग के बिना कुछ भी संभव नहीं, इसलिए कमोबेश ये सबमें रहते ही हैं। तीनों के मिश्रण से ही सृष्टि की विविधता भी है. ये गुण भगवती के ही हैं, जो भगवान के साथ सदा अग्नि-ज्वाला, चंद्र-ज्योत्स्ना व दूध की धवलता की तरह अभिन्न हैं। शिव भी इनके बिना शव ही हो जायेंगे. इसीलिए लिंगरूप हो या बेर (मूर्ति) रूप, दोनों में यह अकेले नहीं. दोनों का योग ही संसार है। इसीलिए तो कालिदास वंदना करते कहते हैं –
वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थ-प्रतिपत्तये ।
जगतः पितरौ वन्दे पार्वती-परमेश्वरौ ।।
अर्थात् जैसे शब्द के अर्थ का बोध कराने के लिए शब्दार्थ-संयोग रहता है, वैसे ही संसार की समग्रता के लिए एकाकार व अर्धनारीश्वर में व्यक्त जगत् के माता-पिता भवानी-शंकर की मैं वंदना करता हूं।