सावधान, दिल्ली मेट्रो में चोरों से ज्यादा चोरनियां

साल के अंत तक सिर्फ 98 पुरूष चोर पकड़े गए जबकि 1231 महिला चोर पकड़ी गईं। मेट्रो की सुरक्षा संभाल रही सीआईएसएफ की माने तो ये चोरनी यात्री बनकर स्टेशन या ट्रेन में घुसीं थी, जिन पर शक हुआ और वह पकड़ी गईं। इनमें कई महिलाओं को रंगे हाथ यात्रियों ने पकड़कर पुलिस के हवाले किया तो कई महिला चोरों की पुष्टि छानबीन के बाद हो पाई।

सुशील देव

मेट्रो ट्रेन में सफर करते हुए राजधानी दिल्ली में अगर आपकी जेब कट जाए तो यह मत समझना कि कोई पुरूष चोर या पाकेटमार ने यह अंजाम दिया है। बहुत संभव है कि यह किसी चोरनी का काम हो। भीड़ भाड़ वाले मेट्रो स्टेशन या ट्रेनों के अंदर सफर करते हुए चोरनियों का गिरोह काफी सक्रिय हो गया है। ये चोर महिलाएं अपना शिकार भांपकर किसी भी पुरूष या महिला को अपने घेरे में ले लेती हैं और उनका मोबाइल, पर्स या कोई कीमती सामान उड़ा लेती हैं। पुरूष वर्ग महिला समझकर उन पर सहसा यकीन नहीं करते और महिलाएं महिला समझकर शक नहीं करतीं। इसी कमजोरी का चोरनी महिलाएं लाभ उठा लेती हैं।साल के अंत तक सिर्फ 98 पुरूष चोर पकड़े गए जबकि 1231 महिला चोर पकड़ी गईं। मेट्रो की सुरक्षा संभाल रही सीआईएसएफ की माने तो ये चोरनी यात्री बनकर स्टेशन या ट्रेन में घुसीं थी, जिन पर शक हुआ और वह पकड़ी गईं। इनमें कई महिलाओं को रंगे हाथ यात्रियों ने पकड़कर पुलिस के हवाले किया तो कई महिला चोरों की पुष्टि छानबीन के बाद हो पाई। सुरक्षाकर्मियों के मुताबिक जून और अगस्त में क्रमशः 168 और 220 महिला चोर पकड़ी गईं जबकि नवंबर में 142 महिलाएं धरी गईं। उस समय ज्यादा जेबतराशी हुईं हैं जब लोग ठसाठस भरी मेट्रो में चढ़ या उतर रहे होते हैं। सर्दियों के मुकाबले गर्मियों में जेबतराशी ज्यादा होती हैं क्योंकि यात्री कम कपड़े पहने होते हैं।पुरूषों की अपेक्षा महिला चोरों की संख्या लगातार बढ़ रही हैं। मेट्रो टे्रन ही नहीं सार्वजनिक स्थलों या भीड़ भाड़ वाले इलाकों में आए दिन यह सुनने को मिलता है कि अमुक अपराध में कुछ महिलाएं भी शामिल थीं जो एक चिंता का विषय है। देश में पुलिस प्रशासन और कानून व्यवस्था में इसके प्रति सतर्कता बढ़ायी जानी चाहिए। रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, अस्पताल, कोर्ट-कचहरी, सिनेमा हाल, धार्मिक स्थलों, उत्सवों या मेलों में महिलाओं की आपराधिक संलिप्तता चिंताजनक है। इस पर सामाजिक रूप से भी रोक लगाना बेहद जरूरी है।
(लेखक बीते दो दशक से पत्रकारिता कर रहे हैं।)

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