सुख की आशा

 फ्रेडरिक नीत्शे ने कहा है: मैं हंसता हूं, लोग सोचते हैं मैं खुश हूं। मैं हंसता हूं, इसलिए कि कहीं रोने न लगूं। अगर न हंसा तो रोने लगूंगा। हंस-हंस कर छिपा लेता हूं आते हुए आंसुओं को।
हम बाहर तो कुछ और दिखाते हैं, भीतर हम कुछ और हैं। इसलिए बड़ा धोखा पैदा होता है। काश! हर व्यक्ति अपने जीवन की कथा को खोल कर रख दे, तो तुम बहुत हैरान हो जाओगे। इतना दुख है, दुख ही दुख है। सुख की तो बस आशा है। आशा है कि कभी मिलेगा। आशा है-आज नीं तो कल, कल नहीं तो परसों। इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में, पृथ्वी पर नहीं तो स्वर्ग में। बस आशा है।
प्रस्तुति
कमलेश भारतीय

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