तिरंगा का मान आखिर तक रखा अटल जी ने

धनंजय गिरि
जिनका पूरा जीवन देश के लिए हो। जिन्होंने देश के लिए जिया और देश की शान की रक्षा करने के लिए आखिर तक मौत से जुझे ऐसे ही महामानव को अटल कहा जाता है। जी हां, भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजेयी की तबियत 14 अगस्त से ही बिगड़ती जा रही थी। उन्होंने मौत से करीब दो दिन तक संघर्ष किया, ताकि 15 अगस्त के दिन पूरे देश में तिरंगा शान से आसमान में लहराए। मैं हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा का उदघोष करने वाले अटल जी ने मौत से भी संघर्ष किया। 15 अगस्त को पूरे दिन देशवासी स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाते रहे और अटल जी अपने दम पर एम्स में मौत से जूझते रहे। आखिर उन्होंने उस दिन विजयी हासिल की।
हम सब जानते हैं कि विधि का विधान अटल है। अटल जी ने नियति को स्वीकारा और अगले दिन अपने प्राण त्यागे। आज बेशक वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके कहे एक-एक शब्द हमारा मार्गदर्शन करने के लिए है। उनके वक्तव्य के रूप में पूरा जीवन दर्शन हमारे पास है। वो सशरीर ही तो नहीं है। वो हमारे चेतना में हैं। हमारे मानस पटल पर है।
एक बड़े परिवार का उत्तराधिकार पाकर कुर्सियां हासिल करना बहुत सरल है किंतु अटल जी की पृष्ठभूमि और उनका संघर्ष देखकर लगता है कि संकल्प और विचारधारा कैसे एक सामान्य परिवार से आए बालक में परिवर्तन का बीजारोपण करती है। शायद इसीलिए राजनैतिक विरासत न होने के बावजूद उनके पीछे एक ऐसा परिवार था जिसका नाम संघ परिवार है। अटलजी न केवल राष्ट्रवाद की ऊर्जा से भरे उस महापरिवार के नायक बने, बल्कि जन नायक बन गए । अटलजी के रूप में इस परिवार ने देश को एक ऐसा नायक दिया जो वास्तव में हिंदू संस्कृति का प्रणेता और पोषक बना।इसीलिए आज संघ परिवार के हर घटक की न केवल आँखें गीली हैं वरन उनका दिल भी रो रहा है !
सही मायने में अटलबिहारी वाजपेयी एक ऐसी सरकार के नायक बने जिसने भारतीय राजनीति में समन्वय की राजनीति की शुरूआत की। वह एक अर्थ में एक ऐसी राष्ट्रीय सरकार थी जिसमें विविध विचारों, क्षेत्रीय हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले तमाम लोग शामिल थे। दो दर्जन दलों के विचारों को एक मंत्र से साधना आसान नहीं था। किंतु अटल जी की राष्ट्रीय दृष्टि, उनकी साधना और बेदाग व्यक्तित्व ने सारा कुछ संभव कर दिया। वे सही मायने में भारतीयता और उसके औदार्य के उदाहरण बन गए। उनकी सरकार ने अस्थिरता के भंवर में फंसे देश को एक नई राजनीति को राह दिखाई। यह रास्ता मिली-जुली सरकारों की सफलता की मिसाल बन गया। भारत जैसे देशों में जहां मिलीजुली सरकारों की सफलता एक चुनौती थी, अटलजी ने साबित किया कि स्पष्ट विचारधारा,राजनीतिक चिंतन और साफ नजरिए से भी परिवर्तन लाए जा सकते हैं। विपक्ष भी उनकी कार्यकुशलता और व्यक्तित्व पर मुग्ध था। यह शायद उनके विशाल व्यक्तित्व के चलते संभव हो पाया, जिसमें सबको साथ लेकर चलने की भावना थी। देशप्रेम था, देश का विकास करने की इच्छाशक्ति थी। उनकी नीयत पर किसी कोई शक नहीं था। शायद इसीलिए उनकी राजनीतिक छवि एक ऐसे निर्मल राजनेता की बनी जिसके मन में विरोधियों के प्रति भी कोई दुराग्रह नहीं था।
वास्तव में यह अटल बिहारी वाजपेयी ही थे, जिन्हांने देश में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर चल रहे पाखंड को खत्म कर भाजपा को मुख्य धारा की राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी बनाई और उसे सत्ता के केंद्र में भी पहुंचाया। संभवतः वह देश में राष्ट्रवाद को अंगड़ाई लेते देख चुके थे और विपक्ष को भी इससे अवगत कराने से नहीं चूकते थे।
आज धर्मनिरपेक्षता को लेकर बहुत बहस नहीं होती। यह एक थका-हारा मुद्दा बन चुका है, तो उसमें वाजपेयी जी का बहुत योगदान है। लेकिन, वे उग्र राष्ट्रवाद के भी विरोधी रहे। उनके लिए राष्ट्रवाद का अर्थ भारतीय राष्ट्रवाद से था, जहां तुष्टिकरण के लिए कोई जगह नहीं थी। लेकिन, वे यह भी नहीं चाहते थे कि इस अभ्युदय से एक बड़ा अल्पसंख्यक वर्ग अछूता रहे। आज वाजपेयी जी पृथ्वी ग्रह को छोड़ किसी और ग्रह की ओर प्रस्थान कर चुके हैं, लेकिन उनका कथन अब भी लोगों के कानों में गूंज रहा है- ‘न टायर्ड, न रिटायर्ड, लौटकर फिर आऊंगा।’ भले ही इस कथन के संदर्भ अलग हों, लेकिन जाते-जाते भी वे देशवाशियों में एक आशा की किरण छोड़ गए। ‘अंधेरा छटेगा, सूर्य उदय होगा’ और वाजपेजी पुनः भारत की पावन भूमि पर जन्म लेंगे। युगद्रष्टा को विनम्र श्रद्धांजलि।
(लेखक स्वयंसेवक और भाजपा से जुड़े हैं।) 

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