दो दिवसीय भारतीय जन लेखक संघ का सम्मेलन संपन्न

विभिन्न राज्यों समेत नेपाल से आए कवियों ने समा बांधा, पत्रकारों पर हो रहे हमले की निंदा की

सुशील देव

नई दिल्ली। भारतीय जन लेखक संघ का द्वितीय दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आज समापन हो गया। सम्मेलन में विभिन्न प्रदेशों से करीब 60 से उपर कवि, लेखक, साहित्यकारों का जमावड़ा हुआ। इनमें कुछ कवि और लेखक नेपाल से भी आए थे। स्थानीय गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित इस सम्मेलन में सैंकडों लेखकों ने दलित साहित्य पर चर्चा की। बहुजन साहित्य, दिशा, दशा और चुनौतियों पर अंतर्राष्ट्रीय संवाद किया गया। अभिव्यक्ति के खतरे को रेखांकित करते हुए राजस्थान की डा. सन्नी सुबालका ने कहा कि जन आंदोलन हमेशा समाज को उंचाई देेते हैं। हम जनता हैं, बदलेंगे जमाना तो समाज भी बदलेगा।
झारखंड के प्रवीण कुमार गुप्ता ने कहा वेद व शास्त्रों की ऋचाओं में समानता, बंधुता की बात कही गई है। लखनउ के राजकुमार इतिहासकार ने कहा कि बहुजनों को अपनी बेहतरी के लिए लड़ना चाहिए। नरसिंह कुमार आज के युवा विश्व शोषितों और शोषकों में बंटा हुआ है। मध्य प्रदेश से आए लेखक नरेंद्र जाटव ने कहा कि समता, स्वतंत्रता, बंधुता और न्याय के लिए हमें लेखन आंदोलन चलाना चाहिए। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उत्तराखंड के डा. राजेश पाल ने किया। इस अवसर पर संघ के महासचिव महेंद्र नारायण पंकज ने कहा कि आज अभिव्यक्ति पर खतरे इस बात का प्रमाण है कि पत्रकार और साहित्यकार की हत्या की जा रही है। पत्रकारिता खतरे में है। हमें इस मानसिकता के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करने की जरूरत है। अपने वक्तव्य में केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक डा. जय प्रकाश कर्दम ने कहा कि जब विचारों या मनुष्यता पर संकट हो तो तो किसी भी आंदोलन का उददेश्य एक बेहतर एवं प्रगतिशील समाज का निर्माण करना होता है। इस मौके पर नमन प्रकाशन द्वारा एक काव्य संग्रह का भी विमोचन किया गया।
सेमिनार के दौरान लखनउ से विष्णुदेव चांद, बिहार के गोपाल चंद्र घोष, यूपी की मालती देवी, पश्चिम बंगाल के डा. ब्रजमोहन सिंह, त्रिपुरा के कृष्ण कुसुम, दिल्ली की अनुराधा गुप्ता, नेपाल से खेम नेपाली सहित अन्य जगहों से मधु पोखरेल, ऋतु आसिफ, हेमलता यादव, शिव नारायण पंडित, मधु पोखरेल, राकेश कुमार द्विजराज, पंखुरी सिंहा, डा. राज्यश्री जयंती, राम बाबू दहिया, भवानी पोखरेल, साजिद करीम, सुरिंदर कौर नीलम, धर्मचंद विद्यालंकर, प्रो. शिवजी चैहान, राजेश कुमार चैहान आदि ने अपनी कविताओं का पाठ कर मंत्रमुग्ध कर दिया।

 

 

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