उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले खाली करने के नोटिस थमाए गये हैं । इक बंगला बने प्यारा तो नहीं इक बंगला बचे प्यारा हो गया हैं । सरकार से बाहर होते ही जो बंगले खाली हो जाने चाहिए थे , उन पर पूर्व मुख्यमंत्री कब्जा जमाए बैठे हैं । क्यों ? किसलिए ? यह लोकतंत्र हैंं, राजतंत्र नहीं । हुजूर बंगले पहली जून को खाली कीजिए ।
इसकी बजाय पूर्व मुख्यमंत्री अपने अपने बहाने और मजबूरियां गिना रहे हैं । मुलायम सिंह यादव तो बीमार हैं और दो साल से पहले बंगला खाली न करवाने की दुहाई दे रहे हैं । अखिलेश यादव के बच्चे छोटे हैं । सैफई में तो पढ नहीं सकते । बस , दो साल का समय दे दीजिए । बसपा सुप्रीमो मायावती ने नया फार्मूला ढूंढ निकाला । सरकारी आवास के बाहर कांशीराम जी के नाम कांग्रेस बोर्ड लगवा दिया । मैं कैसे बाहर जाऊं , यहां तो कांशीराम जी की आत्मा बसती है । लीजिए, करवा लीजिए सरकारी बंगले खाली ।
सिर्फ यही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री व हरियाणा के पूर्व राज्यपाल जगन्नाथ पहाड़िया तक सरकारी बंगले का मोह नहीं त्याग कर पा रहे हैं । बताओ ? क्या होगा लोकतंत्र का ? यही हाल दिल्ली में भी हैं । पहली बात तो यह कि जब आप चुनाव हार गये या दोबारा सत्ता में लौट नहीं पाए तो फिर बंगले के हकदार कैसे ? दूसरी बात ये बंगले सदा के लिए आपके नाम थोडे ही कर दिए गये हैं ? यदि राजनेता ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करेंगे तो सरकारी अधिकारी भी बंगले खाली न करने के बहाने आजमाने लगेंगे । जगन्नाथ पहाड़िया ने तो हरियाणा के राज्यपाल का आवास भी बीमारी का बहाना लगा ने छोडने की गुहार की थी पर सरकार ने एक नहीं सुनी और विदाई दे ही दी ।
अब उत्तर प्रदेश हो या राजस्थान या दिल्ली सरकार सबको पहली जून के नोटिस की तामील करवानी चाहिए । मजेदार बात यह है कि मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव और मायावती के अपने बंगले लखनऊ में हैं प्रदेश सरकारी बंगलों की शान ही कुछ और हैं । देखते हैं कि सरकार में हैंं कितना दम ?
कमलेश भारतीय