छत्तीसगढ़ सरकार जल संरक्षण के प्रति दृढ़ संकल्पित

रमन सिंह की सरकार ने 2016 में जल सुराज अभियान की शुरूआत की और पूरे प्रदेश भर में जल संरक्षण के लिए अभियान छेड़ दिया। हजारों की संख्या में तालाब खोदे गए, तालाबों, कुओं और पानी के श्रोतों का जीर्णोद्धार किया गया। नदियों में छोटे-छोटे चेक डैम बनाए गए।सरकार ने सभी नए सरकारी भवनों के लिए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना अनिवार्य कर दिया।

रायपुर। हड़प्पा, मोहन जोदड़ों से लेकर मेसोपेटोमिया जैसी सभी सभ्यताएँ नदियों के किनारें ही पली, बढ़ी एवं विकसित हुई और जहां से नदी विलुप्त हुई वहां के बासिंदे भी स्थानांतरित होकर कहीं और चले गए। सरस्वती नदी के किनारे बसी सिंधु घाटी सभ्यता इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। मनुष्य से लेकर पशु-पक्षी सभी के जीवन में पानी का रहना अति आवश्यक है और भक्ति काल के दौरान यह आवश्यकता और पुष्ट हुई। इसी समय मनुष्य के जीवन में पानी के महत्व को दर्शाते हुए रहीम ने अपने दोहे में कहा
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून  मतलब साफ था कि बिना पानी जीवित नहीं रहा जा सकता। मनुष्य के शरीर का 65 प्रतिशत हिस्सा पानी है। उसे अमूनन 3-5 लीटर प्रतिदिन पीने की पानी की जरूरत होती है। लेकिन जिस तेजी से पृथ्वी पर आबादी बढ़ी, औद्योगिकरण बढ़ा, जंगल कम हुए, पानी के श्रोतों का अत्याधिक दोहन हुआ, उसका हानिकारक प्रभाव पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरणीय असंतुलन एवं पानी के सूखते स्रोंतों के रूप में पड़ा है। संयुक्त राष्ट्र को इसका अंदेशा काफी पहले से हो गया था। इसलिए आज से 25 वर्ष पहले 1993 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक प्रस्ताव पास कर पूरे विश्व बिरादरी को जल संरक्षण के प्रति सचेत करने के लिए 22 मार्च के दिन को विश्व जल संरक्षण दिवस घोषित कर दिया। तब से लेकर आज तक पूरे विश्व भर में इस दिन को विश्व जल संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जात है और इस बात की चिंता की जाती है कि उपलब्ध पीने के पानी की स्रोतों को कैसे संरक्षित किया जाए। अब सवाल उठता है कि जल संरक्षण करना क्यूं आवश्यक है वो भी छत्तीसगढ़ प्रदेश में जहां पर प्रचुर संख्या में नदी-नाले हैं, कुयें, पोखर, तालाब आदि हैं, मानसून के समय में इंद्र देव भी वर्षा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं। मॉनसून का सीजन जून से प्रारंभ हो कर अगस्त-सितंबर तक चलता है।
गर्मी आने के साथ ही यहां भी कमोबेस वही हालात रहते हैं जैसा भारत के किसी और राज्य में रहता है। पीने के पानी के लिए जद्दोजेहद, मारा-मारी, नारे-बाजी, प्रदर्शन  सब दिख जाता है। इसके पीछे का कारण है- समाज के एक बड़े तबके को पानी के महत्व को न समझना या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करना और पानी का दुरूपयोग करना। पानी के दुरूपयोग में बुद्धिजीवी से लेकर अनपढ़ तक समाज के सभी वर्गों थोड़ी बहुत हिस्सेदारी है। पानी के स्रोतों को संकट में डालने में औद्योगिक ईकाइयों द्वारा भू-जल से लेकर पानी के अन्य श्रोतों को अंधाधुंध इस्तेमाल, फैक्ट्रीयों के दूषित जल को पानी के स्रोतों में सीधे छोड़ना आदि शामिल है। ऐसा दुरूपयोग सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व भर  में दिख जाएगा। जिसका खामियाजा आम लोग, गरीब, महिलाओं, आदिवासियों आदि को उठाना पड़ता है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरे विश्व में करीब 900 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिल पा रहा है और जो पानी मिल रहा है वो विषाणुओं,औद्योगिक अपशिष्ट एवं हानिकारक रसायनों से युक्त है। जिससे जानलेवा जलजनित बीमारियां फैल रही है। जलजनित रोगों से विश्व में हर वर्ष 22 लाख लोगों की मौत हो जाती है।
बात भारत की करें तो प्रतिवर्ष लगभग चार करोड़ भारतीय जलजनित बीमारियों के चपेट में आ जाते हैं। भारत में हर रोज लगभग 1600 व्यक्ति हैजा से मरतें है। हजारों किसानों ने गत वर्ष भी सिंचाई के जल के अभाव में आत्महत्या की है। कावेरी जल विवाद जैसे कई जल-विवाद लोगों के सामने मुंह बाये खड़ी है। पानी का अभाव लोगों को युद्धोन्मादी बना देता है क्योंकि सवाल, अस्तित्व का हो चलता है। इसलिए करीब दो दशक पहले से यह भविष्यवाणियां की जाने लगी है कि  तीसरा विश्व-युद्ध पानी के लिए लड़ा जा सकता है। ये कुछ ऐसा ही है जैसे के खाड़ी के देशों में तेल पर कब्जा करने के लिए होता है।
पर इससे मसला नहीं सुलझेगा। पानी का संकट हथियार से नहीं, सहयोग का हाथ बढ़ाने से सुलझेगा। इसके लिए जुगत बिठानी पड़ेगी। पानी के बेहिसाब खर्च पर लगाम लगानी पड़ेगी, हमें लोगों को समझाना पड़ेगा कि पानी के स्रोतों को आनेवाली पीढ़ी के लिए बचाना सब की जिम्मेदारी है। इसके लिए हमे नदियों को जोड़ने वाली मुहिम से लेकर भूजल का स्तर बढ़ाने के लिए तामिलनाडु सरकार द्वारा वर्षा जल को संचयन हेतु वाटर हार्वेस्टिंग सिद्धांत को अपनाना पड़ेगा। राजस्थान से पानी संरक्षण के गुर सीखने, पूर्वजों द्वारा दिए गए मंत्रों पर अमल करने के साथ-साथ वैज्ञानिक पद्धति से पानी सहेजने की जरूरत है। इसी विचारधारा को आत्मसात करते हुए डा. रमन सिंह की सरकार ने 2016 में जल सुराज अभियान की शुरूआत की और पूरे प्रदेश भर में जल संरक्षण के लिए अभियान छेड़ दिया। हजारों की संख्या में तालाब खोदे गए, तालाबों, कुओं और पानी के श्रोतों का जीर्णोद्धार किया गया। नदियों में छोटे-छोटे चेक डैम बनाए गए।सरकार ने सभी नए सरकारी भवनों के लिए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना अनिवार्य कर दिया। जल का दुरूपयोग करने वाले औद्योगिक ईकाइयों को दंडित किया गया और यह सिलसिला अभी भी चल रहा है। परतुं पानी का संपूर्ण संरक्षण करना किसी भी सरकार के अकेले बूते की बात नहीं है इसके लिए पूरे समाज को साथ आना होगा। क्योंकि जल है तो कल है, वर्ना वो दिन भी दूर नहीं की पूरे पृथ्वी पर से डायनासोर की तरह मानव का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा।

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