भारत जोड़ो यात्रा से क्या हासिल ?

 

कमलेश भारतीय

राहुल गांधी की कन्याकुमारी से शुरू हुई यात्रा आखिरकार कल 30 जनवरी को कश्मीर में तिरंगा फहराने के साथ संपन्न हो जायेगी । लगभग पैंतीस सौ किलोमीटर से ज्यादा लम्बी पदयात्रा से क्या हासिल हुआ ? क्या कांग्रेस सत्ता में आ पायेगी ? क्या कांग्रेस एकजुट हो पायेगी ? क्या काग्रेस की टूट फूट खत्म होगी या नेताओं में वही रस्साकशी जारी रहेगी ? कन्याकुमारी से कश्मीर तक आते आते राहुल ने नफरत से भरी राजनीति में मोहब्बत की दुकान खोलने की बात लगातार कही । क्या यह मोहब्बत मानी जाये कि फारूक अब्दुल्ला , महबूबा मुफ्ती , उमर अब्दुल्ला तक भारत जोड़ो यात्रा में आकर जुड़ गये ? क्या यह सफलता मानी जायेगी कि कांग्रेस छोड़कर गयी उर्मिला मातोंडकर फिर से राहुल गांधी के साथ कदमताल करती दिखी कश्मीर में ! क्या यह सफलता मानी जायेगा कि कमल हासन जैसे दक्षिण भारतीय सितारे ने अपनी चाल राहुल गांधी के साथ मिलाई ? काम्या पंजाबी ने भी कुछ कदम राहुल गांधी के साथ चलकर उम्मीदें जगाईं । लगभग सारी यात्रा में योगेंद्र यादव साथ साथ रहे । फिर भी पंजाब में यात्रा के बाद मनप्रीत बादल ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का कलम थाम लिया ? क्या यह गुटबाजी खत्म नहीं हो पायेगी ? ये कांग्रेस कब जुड़ेगी? उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में न अखिलेश और न ही मायावती खुलकर यात्रा मे आई । कैसे खुलेगा खाता बुलडोजर बाबा के सामने ?

विरोधी यही सवाल लगातार पूछते आ रहे हैं । पहले क्रांग्रेस जोड़ो, फिर हाथ से हाथ भी जोड़ लेना । अभी कांग्रेस हाथ से हाथ जोड़ो अभियान भी शुरू करने जा रही है । फिर भी एक बात स्पष्ट है कि कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वालों को जवाब मिल गया और उनको राहुल गांधी के पीछे पीछे रैलियां रखनी पड़ रही हैं ! यह भारत जोड़ो यात्रा का असर कहा जा सकता है । वैसे भी अब अगले लोकसभा चुनाव के चलते ये रैलियां और हाथ जोड़ने की यात्रायें जारी रहने वाली हैं ! पर यह बात चलते चलते जरूर कहना चाहता हूं कि मुगल गार्डन का नाम बदलना जरूरी था क्या ? पता नहीं क्यों राहत इंदौरी की पंक्तियां याद आ रही हैं :
सभी का खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है । किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है।

(पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी )

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