विश्व टीबी दिवस : टीबी के रोकथाम के मामले में छ.ग. अन्य राज्यों से बेहतर
रायपुर। हवा के जरिए एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने वाला ट्यूबरक्लोसिस बैसिलि (टीबी), दुनिया के सर्वाधिक 10 खतरनाक जानलेवा बीमारियों में से एक है। टीबी का जीवाणु खासकर कुपोषित, कमजोरों को सबसे पहले अपने चपेट में लेता है। 24 मार्च 1882 में जर्मन वैज्ञानिक राबर्ट कोच ने टीबी के जीवाणु खोजने के दावा किया था। इस के खोज के 110 वर्षों के बाद विश्व स्वास्थ संगठन ने टीबी के भयावहता को समझते हुए 24 मार्च को विश्व स्तर पर विश्व टीबी(तपेदिक) दिवस मनाने की घोषणा की। तबसे लेकर निरंतर प्रति वर्ष टीबी को पराजित करने के लिए अभियान चलाया जा रहा है।विश्व स्वास्थ संगठन ने अपने शोध के आधार पर यह अनुमान लगाया है कि दुनिया का एक तिहाई आबादी मायको बैक्ट्रियम ट्यूबरक्लोसिस बैसिलि नामक जीवाणु से संक्रमित है।
विश्व स्वास्थ संगठन के रिपोर्ट के मुताबिक टीबी से प्रतिदिन 4658 लोगों की मौत दुनिया भर में हो जाती है। विकासशील देशों में टीबी संक्रमण से मरने वाले लोगों की संख्या 95 प्रतिशत है। जबकि भारत में प्रति 3 मिनट में 2 व्यक्तियों की मौत इस जानलेवा क्षय रोग से हो जाती है। इस लिहाज से ये भारत में मौत का यह आंकड़ा 1400 व्यक्ति प्रतिदिन का बैठता है। यह आंकड़ा सीरिया या इराक जैसे युद्ध में मरने वाले लोगों के तुलना में काफी अधिक है। पिछले साल केंद्रीय स्वास्थय मंत्रालय ने जो रिपोर्ट निकाली थी उसमें विश्व स्वास्थ संगठन के हवाले से लिखा गया है कि पूरे विश्व में 104 लाख नए टीबी के मरीज जुड़ें। भारत में यह आंकड़ा 27.9 लाख है जो विश्व के टीबी मरीजों के 24 फीसद के करीब है। भारत में टीबी के करीब 10 प्रतिशत मामले बच्चों में पाए गए हैं लेकिन इसका दुःखद पहलु यह है कि इसमें से केवल 6 प्रतिशत मामले ही अस्पताल तक पहुंच पाते हैं। टीबी के मरीजों की सही समय पर पहचान नहीं होने से स्थिति खतरनाक होती जा रही है और उनसे लड़ने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। विभिन्न कारकों के कारण समय पर रोग की पहचान न होना, दवा का संपूर्ण कोर्स नहीं कर पाना आदि के कारण टीबी का जीवाणु दिनों-दिन मजबूत होकर दवाओं का प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है। टीबी के जीवाणु का मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट टीबी (एमडीआर टीबी) स्वरूप अख्तियार करना संपूर्ण विश्व के विशेषज्ञों के लिए लगातार कठिन चुनौति बन कर उभर रहा है। इंडियन सोसायटी फॉर क्लिनिकल रिसर्च (ISCR) के मुताबिक एमडीआर टीबी मामलों में सफलतापूर्वक इलाज की दर 50 फीसदी से भी कम है।
टीबी को वश में करने के लिए भारत सरकार ने भी पहल करते हुए नेशनल स्ट्रेटिजिक प्लान 2017-25 बना रखा है। जिसका गंभीरता से पालन छत्तीसगढ़ सरकार कर रही है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ में क्षय रोग के नए मरीजों की संख्या 30,000 से भी कम है वहीं उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश 2,16000 से भी कहीं अधिक नये मरीजों के साथ पहले नंबर पर है। टीबी के इलाज में सही समय पर दवा की प्रचुर खुराक एवं पोषण दिया जाए तो टीबी के मरीजों की संख्या में कमी आती है। इसलिए टीबी को लेकर लोगों में बनी भ्रांतियों को जागरूकता फैलाकर दूर करने की आवश्यकता है। छत्तीसगढ़ सरकार ने इसके मद्देनजर अस्पतालों में मुफ्त टीबी की दवा देने की व्यवस्था करवा रखी है, समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाते रहती है। टीबी मरीजों को मुख्यमंत्री क्षय पोषण योजना के तहत विशेष आहार प्रदान की जाती है, जिससे मरीजों को बहुत फायदा हुआ है।इसके बावजूद इस बीमारी पर जल्द ही नकेल कसने की आवश्यकता है।
यह बीमारी महामारी का रूप अख्तियार कर पूरे मानव जीवन के अस्तित्व को ही संकट में डाल सकता है। अतः इस बात पर चिंता करते हुए टीबी से निपटने के लिए पोलियो सरीखे एक कारगर रणनीति बनाने के लिए पूरे विश्व के राष्ट्राध्यक्ष इसी साल सितंबर में संयुक्त राष्ट्र के बैनर तले न्यूयार्क में बैठक करेंगें। संयुक्त राष्ट्र संघ ने सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (एसडीजी) के तहत 2030 तक टीबी को काबू करने का लक्ष्य लिया है।