4 में से 1 कर्मचारी अपने वेतन के कर-बचत विकल्पों को नहीं समझते

नई दिल्ली। हाल ही के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि कर के दायरे में आने वाले प्रत्येक चार वेतनभोगी कर्मचारियों में से एक को कुछ कर्मचारी कर लाभों द्वारा प्रदत्त कर बचत संभावनाओं के बारे में जानकारी नहीं है, जो उनके वेतन का एक हिस्सा होता है। निल्सन इंडिया के लिए कराये गये ज़ीटा इंप्लाॅयी बेनेफिट्स स्टडी’ को 7 शहरों के 194 कंपनियों के 1233 कर्मचारियों पर किया गया, इसमें कर्मचारी कर लाभों और भारत में इसकी वर्तमान स्थिति के बारे में गहन अध्ययन किया गया है। इस सर्वेक्षण में यह भी खुलासा किया गया है कि 56 प्रतिशत वेतनभोगी कर्मचारी भुगतान लेना नहीं चाहते हैं और इस प्रकार, उन्हें प्रदान किये जाने वाले कर लाभों की पूरी संभावना का उपयोग नहीं करते हैं। कर्मचारी कर लाभ, कंपनियों द्वारा वेतनभोगी कर्मचारियों को उनके सीटीसी के तहत प्रदान किया जाने वाला कर बचत लाभ है। इनमें ईंधन, टेलीफोन का उपयोग, एलटीए, गैजेट भुगतान अदायगी, गिफ्ट वाउचर्स व अन्य के लिए किये जाने वाले भुगतान शामिल हैं।
देश की 194 कंपनियों और 1233 कर्मचारियों पर किये गये सर्वेक्षण के अनुसार, टेलीकाॅम भुगतान, कंपनियों द्वारा प्रदान किया जाने वाला सबसे लोकप्रिय कर लाभ है, जिसके बाद ईंधन, एलटीए एवं गैजेट भुगतान का स्थान आता है। हालांकि, कर्मचारी कर भुगतान के प्रबंधन की बात आने पर, 94 प्रतिशत कंपनियां अभी भी जटिल एवं अधिक समय लेने वाली कागजी प्रक्रियाओं का उपयोग करती हैं।
सर्वेक्षण किये गये 62 प्रतिशत कर्मचारियों ने कहा कि भुगतान का दावा करने की प्रक्रिया अधिक समय लेने वाली है। सर्वेक्षण में पाया गया कि एक कर्मचारी को एक अकेले बिल क्लेम को जमा करने में औसतन 23 मिनट का समय लगता है और 41 प्रतिशत कर्मचारियों को प्रत्येक क्लेम के लिए एक क्लेम फाॅर्म जमा करना होता है। जहां तक काॅर्पोरेट का संबंध है, लगभग 47 प्रतिशत कंपनियां कागजी बिल्स के प्रबंधन का दावा करती हैं और खास कर, अस्पष्ट एवं अमान्य बिल उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होते हैं। दरअसल, 71 प्रतिशत कंपनियां प्रत्येक क्लेम को प्रोसेस करने में 8 दिनों से अधिक का समय लेती हैं और कुछ कंपनियां तो 2-2 हफ्ते तक का समय लेती हैं।
ज़ीटा के सीटीओ एवं सह-संस्थापक, रामकी गद्दीपति ने कहा, ‘‘भारत में कर्मचारी लाभों की व्यवस्था कई मायने में पीछे है। यह सर्वेक्षण हमारी इस मान्यता की अभिपुष्टि करता है कि कर्मचारी अपना अच्छा-खासा उपयोगी समय सामान्य गतिविधियों में बर्बाद करते हैं, जैसे-बिल को संभाल कर रखना, कागजी रूप में दावा जमा करना। भारत की मात्र 6 प्रतिशत कंपनियां भुगतान की अदायगी के लिए पूर्णतः डिजिटल प्रक्रिया का उपयोग करती हैं। जटिल एवं अधिक समय खाने वाली कागजी-कार्रवाई के चलते, अधिकांश कर्मचारी लाभ लेना नहीं चाहते हैं, क्योंकि वे इस लाभ का महत्व नहीं समझ पाते हैं।’’
सर्वेक्षण में शामिल प्रत्येक तीन कंपनियों में से दो कंपनियों को यह लगता है कि कर लाभ का प्रबंध करने में लगा समय और लागत कर्मचारियों को मिलने वाले वास्तविक लाभ से अधिक होता है। इस सर्वेक्षण में विभिन्न इंडस्ट्रीज के एचआर मैनेजर्स से बात की गयी और यह पता चला कि 81 प्रतिशत कंपनियों के पास भुगतान अदायगी की देखरेख के लिए डेडिकेटेड टीम इन-हाउस है और विभिन्न इंडस्ट्रीज में टीम का औसत आकार लगभग 6 लोगों का है। उच्च रनिंग लागत और लाॅजिस्टिक्स प्रबंधन के चलते, 35 प्रतिशत कंपनियों ने एक या एक से अधिक भुगतान अदायगी कार्यक्रमों को बंद कर दिया ळें
अधिकांश कर्मचारी लाभ के मूल्य और इसके द्वारा हो सकने वाली बचत को नहीं समझते हैं या नहीं देख पाते हैं। यह धारणा है कि कर लाभों को छोड़ देने से हाथ में मिलने वाला वेतन अधिक होता है। बचत के प्रति परिपक्व एप्रोच के लिए इस सोच को बदलने की आवश्यकता है। लाभों को हासिल करने की प्रक्रिया को आसान एवं कम थकाऊ बनाने के लिए भी यह महत्वपूर्ण है, ताकि इन लाभों को प्रदान करने में कंपनियों व कर्मचारियों द्वारा खर्च किया जाने वाला समय एवं पैसा तर्कसंगत हो।
इस सर्वेक्षण में साक्षात्कार लिये गये 100 प्रतिशत कर्मचारियों के पास स्मार्टफोन था और उनके लिए दैनिक रूप से इंटरनेट उपलब्ध था। 90 प्रतिशत कर्मचारियों ने कहा कि उन्हें पूर्णतः डिजिटल भुगतान अदायगी प्रक्रिया पसंद है। यह इस तथ्य के बिल्कुल विपरीत है कि सर्वेक्षण में शामिल सभी कंपनियों में से मात्र 6 प्रतिशत कंपनियां यह देती हैं। मिशाल पहले से मौजूद है। भारत में दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ रहा स्मार्टफोन बाजार है। यह उन कंपनियों के लिए पहल करने का समय है, जिन्होंने अब तक डिजिटल कर लाभ का तरीका नहीं अपनाया है। जब भारत के अधिकांश कार्यबल को डिजिटल प्रक्रिया पसंद है, तो इस दिशा में पहल करने का यह उपयुक्त समय है, चूंकि इस तरह की सेवाएं और प्लेटफाॅम्र्स बाजार में मौजूद हैं ही।
रिपोर्ट के बारे में अपने विचार साझा करते हुए, ज़ीटा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और सह-संस्थापक, भाविन तुरखिया ने कहा, ‘‘90 प्रतिशत कर्मचारी कागजी प्रक्रिया के आधार पर डिजिटल दावों को पसंद करते हैं। चूंकि भारत अधिक डिजिटल-आधारित राष्ट्र बनने की दिशा में तेजी से प्रयत्नशील है, इसलिए हम जिस तरह से अपने संगठनों को चलाते हैं उसके तरीके में भी बदलाव लाये जाने की आवश्यकता है। यद्यपि हमारे यहां कर्मचारियों के लिए अनेक लाभ व सुविधाएं उपलब्ध हैं, फिर डिजिटलीकरण का अभाव एक चिंता का क्षेत्र है, विशेषकर इस तथ्य के मद्देनजर कि हमारे देश में युवा एवं तकनीक का जानकार कार्यबल मौजूद है। सबसे महत्वपूर्ण रूप से, डिजिटल ट्रांजिशन से तीव्र प्रक्रियाएं, कंपनियों के लिए लागत में काफी बचत और पारदर्शी कार्यप्रणाली सुनिश्चित की जा सकेगी।’’

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