जो जीता वही सिकंदर

गुजरात के चुनाव नतीजों से भाजपा और कांग्रेस दोनों खुश हैं। भाजपा को इस बात की खुशी है कि उसने लगातार छठी बार चुनाव जीत लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गए गुजरात चुनाव में भाजपा प्रतिष्ठा बचाने में कामयाब रही। दूसरी और कांग्रेस इस बात से खुश है कि उसने भाजपा को कड़ी टक्कर दी। मोदी और शाह के गृह राज्य में प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने भाजपा के दोनों राष्ट्रीय नेताओं को जमीन पर उतार दिया। अपने राज्य में अगर मोदी और शाह को अपना गढ़ बचाने के लिए इतनी मेहनत करनी पड़ी तो इसका मतलब यह निकल रहा है कि दूसरी जगह उनको इससे कड़ी टक्कर दी जा सकती है और हराया भी जा सकता है।

अखिलेश अखिल

गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों ने एक बार फिर संकेत दे दिया है कि नकारात्मक राजनीति से उबरकर विकास के प्रति रचनात्मक दृष्टि लेकर चलने की आवश्यकता है। यह बात बीजेपी और कांग्रेस दोनों पर लागू होती है। दोनों ने नाकारात्मक राजनीति की थी। इन चुनावों ने एक बार फिर संकेत दिया है कि हम नकारात्मक राजनीति से उबरकर विकास के प्रति, पूरे देश के प्रति एक रचनात्मक दृष्टि लेकर चलें तो अच्छा होगा। जो जीत रहा है, वही सिकंदर है। जीत का कोई विकल्प नहीं हो सकता है। इस जीत से दोनों बड़ी पार्टी को सिख लेने की जरूरत है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दावा किया था कि गुजरात के नतीजे चौंकाएंगे। ये बात तब सच साबित हुई, जब 150 प्लस सीटों का दावा करने वाली बीजेपी 100 के आंकड़े के आस-पास रही।खबर लिखे जाने तक बीजेपी 99 सीटों पर आगे चल रही है जबकि कांग्रेस 80 सीटों पर। गुजरात में इस बार मोदी सीएम चेहरा नहीं थे। जीएसटी के फैसले से व्यापारी नाराज थे। इसके अलावा कांग्रेस का कास्ट कार्ड भी था। इनके चलते कांग्रेस और बीजेपी के बीच अंतर कम हुआ। हालांकि, प्रेस कॉन्फ्रेंस में अमित शाह ने दावा किया कि ये कांटे की टक्कर नहीं थी। यहां उन पांच वजहों की चर्चा की जा रही है जिसने गुजरात में बीजेपी की जीत को मुश्किल बनाया।
बीजेपी सरकार बना तो रही है लेकिन बीजेपी के वोट शेयर बढ़ने के साथ ही सीटें घटीं है। गुजरात में 19 साल से बीजेपी सत्ता में है। 15 साल में पहली बार मोदी सीएम कैंडिडेट नहीं थे। इसका असर भी भी मतदाताओं पर पड़ा। मोदी के केंद्र में जाने के बाद बीजेपी को 2 सीएम बदलने पड़े। 2012 में बीजेपी को 47.9% वोट शेयर था, तब उसे 115 सीट मिली थीं। 2017 में वोट शेयर में करीब 1% की बढ़ोत्तरी तो हुई, लेकिन रुझान के मुताविक करीब 12 सीट कम हो गई हैं। उधर, 2012 में कांग्रेस का वोट शेयर 38.9% था, तब 61 सीट खाते में आई थीं। इस साल वोट शेयर में करीब 2% का इजाफा और करीब 16 सीट का फायदा होता दिख रहा है। तीन साल पहले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 60.1% वोट मिले थे और 162 असेंबली सीट पर बढ़त बनाई थी। उधर, 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई थी। उस वक्त वोट शेयर 33.5% था और 17 असेंबली पर बढ़त बनाई थी।
इस बार कांग्रेस ने पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (पास) के नेता हार्दिक पटेल से हाथ मिलाया। जिसकी वजह से बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा। पाटीदारों के असर वाली 83 सीटों में से 21 पर बीजेपी और 18 पर कांग्रेस को बढ़त है। 5 साल पहले 2012 के इलेक्शन में इनमें से 59 यानी 71% सीटें बीजेपी ने जीती थीं।
राहुल गांधी गुजरात चुनाव के दौरान एक नए अंदाज में नजर आए। उन्होंने विकास पागल हो गया, गब्बर सिंह टैक्स, अमित शाह के बेटे जय शाह का मामला और किसानों के मुद्दे उठाए। इससे लगा कि वे बीजेपी की कमजोर नब्ज पर हाथ रखने में काफी हद तक कामयाब रहे। राहुल ने 57 जगहों पर रैलियां कीं। नवसृजन यात्रा निकाली। 8 बार गुजरात आए। चुनाव कैम्पेन के दौरान 27 बार मंदिर गए। कास्ट फैक्टर और राहुल के ज्यादा एक्टिव होने की वजह से मोदी को भी कैम्पेन पर ज्यादा फोकस करना पड़ा। उन्होंने सात बार गुजरात का दौरा किया। 5 बार मंदिर गए। पहले 60 दिनों के 4 बड़े मुद्दे थे जीएसटी, नोटबंदी, गुजरात में विकास और आरक्षण। लेकिन आखिरी 11 दिनों के 4 बड़े मुद्दे- हिंदुत्व, मंदिर, गुजराती अस्मिता, पाकिस्तान से बीजेपी को फायदा हुआ। सच तो यही है कि मोदी इन मुद्दों को बेहतर ढंग से भुनाया और पार्टी की जीत हासिल हुयी।
कांग्रेस यहां लोकल लीडर्स- जिग्नेश, हार्दिक, अल्पेश के सहारे ओबीसी, दलित और पटेल-पाटीदार वोटरों को अपने फेवर में करने में कामयाब रही। राहुल गांधी ने गुजरात में अपना चुनाव प्रचार सौराष्ट्र से ही शुरू किया था। उन्होंने द्वारकाधीश मंदिर से नवसृजन यात्रा शुरू की थी। सौराष्ट्र में कुल 54 सीटें हैं। इनमें से कांग्रेस को 29 पर तो बीजेपी को 25 पर बढ़त है। 2012 के चुनाव में बीजेपी को 35, कांग्रेस को 16 कांग्रेस और अन्य को 3 मिली थीं। यह नुकसान इसलिए भी बड़ा है, क्योंकि सौराष्ट्र बीजेपी का गढ़ था। यहां केशुभाई पटेल की बगावत के बावजूद बीजेपी कमजोर नहीं हुई थी।
कपड़े पर 5 फीसदी जीएसटी लगाने के विरोध में सूरत में कपड़ा कारोबारियों ने हड़ताल पर चले गए थे। 17 जुलाई को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उन्हें उनकी मांगें जीएसटी काउंसिल में रखने का आश्वासन दिया। इसके बाद करीब दो हफ्ते तक चली यह हड़ताल समाप्त कर दी गई। सरकार को अनुमान था कि उसे 5 महीने बाद होने जा रहे गुजरात चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। ऐसे में सरकार को जीएसटी के रेट में कटौती करनी पड़ी। तमाम कोशिशों के बाद बीजेपी सूरत में डैमेज कंट्रोल करने में काफी हद तक कामयाब रही। काउंटिंग की शुरुआत में तो यहां घाटा दिख रहा था, लेकिन बाद में बीजेपी ने यहां की 16 में से 15 सीटें जीत लीं, कांग्रेस को 1 सीट पर जीत मिली। यह कांग्रेस के लिए बड़ा नुक्सान है। सूरत से कांग्रेस को बड़ी उम्मीद थी। और अंत यही है कि जिसके हाथ बाजी लगी सिकंदर वही है। एक बात जरूर है है कि कांग्रेस को भले ही सत्ता नहीं मिली लेकिन जो चुनाव परिणाम हैं कांग्रेस को मजबूत बता रहे हैं।

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