“दोरजी खांडू” के बहाने अरुणाचल की बात

देश के आम जनमानस की बात करें, तो पूर्वोत्तर के राज्यों के बारे में लोग कम ही जानते हैं। वहां का समाज, शासन आदि के बारे में कम ही जानकारियां रखते हैं। ऐसे में सुदूर अरुणाचल प्रदेश, जो कि सामरिक दृष्टिकोण से काफी अहम है, के बारे में विस्तार से लिखा है दो पत्रकारों ने। अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दोरजी खांडू को केंद्र में रखकर पुस्तक लिखी गई है – ‘कर्मवीर खांडू’। करीब पौने दो सौ पन्नों की इस पुस्तक में दोरजी खांडू के बहाने अरुणाचल प्रदेश की राजनीति, कला-संस्कृति, समस्या और विकास की चर्चा की गई है। दोरजी खांडू सेना में कार्यरत रहे और 71 के युद्ध के बाद उन्हें गोल्ड मेडल से भी नवाजा गया। वे बाद में चार बार जनता द्वारा चुने भी गए। मुख्यमंत्री रहते हुए हेलिकॉप्टर दुर्घटना में उनकी असमय मृत्यु हो गई। दोरजी खांडू ने अरुणाचल पर चीन के दावे का हमेशा सीना ठोंककर विरोध किया था। खासकर बौद्ध धार्मिक गुरु दलाई लामा के पिछले तवांग दौरे चीन के ऐतराज का उन्होंने जमकर विरोध करते हुए कहा था कि अरुणाचल प्रदेश के लोग भारत के अभिन्न अंग हैं और रहेंगे। उनके धार्मिक नेता को अरुणाचल में आने के लिए चीन की अनुमति की जरूरत नहीं है। वह बौद्ध धर्म के परम अनुयायी थे और इसलिए नवनिर्मित मुख्यमंत्री आवास का उद्घाटन उन्होंने दलाई लामा से करवाया था। जहां भी दौर पर जाते तो स्थानीय बौद्ध मठ जाना नहीं भूलते। चीन के दावे को देखते हुए वे भारत के चीन से सटे इलाके के विकास के लिए प्रयासरत थे। वे चाहते थे कि चीन से सटी भारतीय सीमा में सड़क नेटवर्क का जाल बिछे और इसके लिए उन्होंने केंद्र सरकार से एक महत्वाकांक्षी योजना भी मंजूर करवा ली थी। ऐसे ही कई प्रसंगों की इस पुस्तक में चर्चा है।
वरिष्ठ पत्रकार अनंत अमित और सुभाष चंद्र ने मिलकर इस पुस्तक को लिखा है।  सरोजिनी पब्लिकेशंस द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का मूल्य है 300 रुपये। दोरजी खांडू के जीवन से जुड़े कई रंगीन चित्रों के माध्यम से उनकी विकास-यात्रा को बड़े ही सलीके से प्रस्तुत किया गया है।

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